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Victory Day: 1971 के विजय की वीर गाथा; जाने क्यों मनाते हैं विजय दिवस

Victory Day

Victory Day

Victory Day: आजादी के बाद 1947 से पहले का भारत अब दो हिस्सों में बंट चुका था. दूसरे हिस्से का नाम पकिस्तान दिया गया. यह पाकिस्तान भी दो हिस्सों में बंटा हुआ था. एक जहाँ आतंकियों और तानाशाहों को पनाह दी जाती थी, यानि पश्चिमी पकिस्तान, तो दुसरा जहां पश्चिमी पाकिस्तान द्वारा अपने ही लोगों की हत्या और बालात्कार जैसे संगीन जुर्म किये जाते थे. पाकिस्तानियों ने इस हिस्से को पूर्वी पाकिस्तान का नाम दिया था. आजादी के बाद समय की उठापटक जारी रही और फिर साल आया 1970. पूर्वी पाकिस्तान में आम चुनाव के नतीजे आ चुकें थे. अवामी लीग के नेता शेख मुजीबुर रहमान के माथे जीत का सेहरा सज चुका था. पर रहमान को पश्चिमी पाकिस्तान सरकार द्वारा बंदी बना बना लिया जाता है. यहीं से कहानी शुरू होती है बांगलादेश के विजय दिवस की.

क्यों लड़ा गया 1971 का भारत-पाक युद्ध?

नए राष्ट्र की मांग के साथ पूर्वी पाकिस्तान के बड़े नेता शेख मुजीबउर रहमान पूर्वी पाकिस्तान के आम चुनाव में जीत का पताका फहराते हैं. पर करांची में बैठे तानाशाह याह्या खान को यह रास नहीं आता है. लिहाजन शेख मुजीबुर रहमान को जेल में डाल दिया जाता है और बड़ी तादाद में वहाँ के पाकिस्तानी सैनिक आम लोगों को मौत के घाट उतारने लगते हैं. इस घटना के बाद नए राष्ट्र की मांग हवा में आग जैसे फैलने लगती है. दो हिस्सों में बटे पकिस्तान के बीच रिश्ते और खराब होने लगते हैं. हालात इतने बिगड़ जाते है कि वहाँ की सेना लड़कियों के साथ रेप कर उनके परिजानो से भी उनका रेप कराने लगती है. 30 लाख से ज्यादा लोगों को ज़िंदा कटवा दिया जाता है तो 4 लाख से ज्यादा महिलाए बालात्कार के भेंट चढ़ा दी जाती हैं.

भारत ने क्यों दिया बांग्लादेश का साथ?

लोग बड़ी मात्रा में पलायन करने लगतें हैं. एकसाथ 10 लाख लोगों के शरण लेने से भारत पर अंतरष्ट्रीय दबाव बढ़ने लगता है. लिहाजन भारत को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ता है. उस समय की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी, तत्कालीन जनरल सैम मानेकशॉ से बात कर सेना को युद्ध के लिए तैयार होने का आदेश देती हैं. पर बदलते मौसम को ध्यान में रखकर मानेकशॉ ऐसा करने से मना कर देते हैं और प्रधानमत्री से सही समय का इंतजार करने को कहते हैं. यह सही समय ३ दिसंबर 1971 के दिन आता है जिस दिन पकिस्तान चुपके से भारत पर हवाई हमला करता है. पकिस्तान द्वारा भारत पर किया यह हवाई हमला इतना खतरनाक होता है, इतना खतरनाक कि भारत का एक सैनिक भी नहीं मरता है पर युद्ध के इंतजार में बैठे भारत को पकिस्तान पर हमला करने का एक वाजिब कारण मिल जाता है.

पूर्वी पाकिस्तान के अंदर बांग्लादेश के लिए लड़ रही मुक्ति वाहिनी का साथ देने भारत की तीनो सेनाए पहुँचती हैं. युद्ध के हर मकाम पर पाकिस्तान परास्त होता जाता जाता है. आग की लपटों से घिरी करांची PNS ग़ाज़ी के जमींदोज होने के बाद अमेरका को मदद के लिए पुकारती है. अमेरिका भी पानी में युद्ध करने में पारंगत 7वां बेड़ा भेज, अपने दोस्त पाकिस्तान का साथ निभाता है. पकिस्तान की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता, ठहाकों से पूरा पाकिस्तान सराबोर हो उठता है. पर इसके हंसी के ठहाके चीख में बदलने वाली है… इसकी खबर पाकिस्तान को ज़रा भी नहीं होती।

रूस ने निभाई सच्ची दोस्ती

अमेरिका के 7वें बड़े का स्वागत करने के लिया वहां जय और वीरू की जोड़ी पहले से ही खड़ी रहती है. रूस के 40वें बेड़े को देख अमेरिका भारत को सलाम कर चुप-चाप निकल लेता है. अब युद्ध क्षेत्र में बच जाता है तो बस निहथ्था, हारा हुआ पाकिस्तान। अपने किस्मत को कोसता पकिस्तान, जो अपने खाये हुए को ना निगल पाता है और ना ही उगल. सामने कोई रास्ता बचता है तो वो बस आत्मसमर्पण का. लिहाजन 13 दिसंबर 1971 के दिन जनरल नियाज़ी अपने 90 हज़ार सैनिकों के साथ भारत के सामने आत्मा समर्पण कर देता है. फिर विश्व के मानचित्र पर एक नया देश उभर कर सामने आता है जिसका नाम बांग्लादेश रखा जाता है.

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विजय दिवस (Victory Day) के क्या हैं मायने

आपको बता दें कि विजय दिवस (Victory Day) केवल सैन्य विजय का दिन नहीं है बल्कि न्याय, मानवाधिकार और उत्पीड़ितों की रक्षा के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का प्रतीक है। यह भारतीय सशस्त्र बलों की वीरता और स्वतंत्रता और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति उनके अटूट समर्पण के प्रमाण के रूप में खड़ा है। हर साल, विजय दिवस पर, राष्ट्र उन बहादुर सैनिकों को श्रद्धांजलि देता है, जिन्होंने एक नेक काम के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया। इस दौरान विभिन्न श्रद्धांजलि समारोहों का आयोजन किया जाता है, जिसमें पुष्पांजलि समारोह, परेड और सशस्त्र बलों की अदम्य भावना का सम्मान करने वाले कार्यक्रम शामिल होते हैं। विजय दिवस राष्ट्र की सामूहिक स्मृति में गौरव और श्रद्धा के दिन के रूप में अंकित है। यह न्याय के लिए किए गए बलिदानों और भारतीय सशस्त्र बलों को परिभाषित करने वाली स्थायी भावना की याद दिलाता है.

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