Narak Chaturdashi kyu manai jati hai. (Why we celebrate Narak Chaturdashi).
दिवाली के पर्व की शुरुआत धनतेरस के साथ होती है। 5 दिनों तक चलने वाले दिवाली पर्व का दूसरा दिन नरक चौदस या चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। नरक चौदस का त्योहार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। दिवाली के एक दिन पूर्व आने वाले इस त्योहार को छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। नरक चौदस को कुछ अन्य नामों से भी जाना जाता है जैसे- रूप चौदस और काली चौदस। नरक चतुर्दशी मनाने के पीछे कई रोचक कहानियां जुड़ी हुई हैं।
नरक चतुर्दशी मनाने का कारण
नरक चतुर्दशी मनाने के पीछे सबसे प्रचलित कथा श्री कृष्ण से जुडी हुई है। पौराणिक मान्यतओं के अनुसार, द्वापर काल में प्राग्ज्योतिषपुर के राजा नरकासुर ने देवी-देवताओं, ऋषि-मुनियों सहित 16 हज़ार कन्याओं को भी बंधक बना लिया था। नरकासुर के अत्याचार से सभी लोकों में खलबली मची हुई थी। सभी देवताओं ने श्री कृष्ण से मिलकर नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाने की गुहार लगाई। श्राप के कारण नरकासुर की मृत्यु किसी स्त्री के हांथो होना लिखी थी। इस लिए देवताओं की गुहार सुन कर श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा को साथ लेकर प्रागज्योतिषपुर पहुंचे और सत्यभामा की सहायता से कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध कर 16 हज़ार कन्याओं को बंधक से मुक्त कराया।
कृष्ण की 16 हज़ार रानियाँ
नरकासुर की कैद में रहने के कारण 16 हज़ार कन्याओं को समाज बहिस्कृत न कर दे, इसलिए इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए श्री कृष्ण ने सभी कन्याओं से विवाह कर लिया। इस प्रकार श्री कृष्ण की 16 हज़ार रानियां हुंई ।
तेल उबटन लगाकर नहाने का महत्व
नरक चतुर्दशी के दिन सूर्योदय के पूर्व अभ्यंग स्नान की परम्परा है। नरकासुर के वध के पश्चात् श्री कृष्ण ने तेल और उबटन लगा कर स्नान किया था, तभी से इस दिन तेल और उबटन लगाकर स्नान करने की परंपरा चली आ रही है। माना जाता है कि इस प्रकार तिल या सरसों के तेल और औषधियों का उबटन लगा कर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है और स्वर्ग और सुंदरता की प्राप्ति होती है। इस दिन तेल में लक्ष्मी जी और सभी जल में गंगा जी का वास होता है जिससे लक्ष्मी जी सहित सभी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। स्नान के बाद तिल वाले जल से यमराज को तर्पण करने से नर्क की यातनाओं से मुक्ति मिलती है।
जब हनुमान ने सूरज को समझा फल
एक दिन बालक हनुमान की भूख माता अंजनी के दिए भोजन के बाद भी शांत नहीं हुई तो बालक हनुमान सूरज को ही फल समझ कर खाने के लिए आकाश की ओर चल दिए। देवताओं द्वारा रोके जाने के प्रयास के बाद भी बाल हनुमान सूरज देव को निगल गए। जिसके बाद संपूर्ण जगत में अंधकार छा गया। भगवान् इंद्र द्वारा मारुति नंदन के हनु(जबड़े ) में प्रहार के बाद सूर्य देव हनुमान के पेट से बहार आ गए।
यह घटना कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को घटित हुई थी। इसलिए इस दिन हनुमान जी की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है। इस दिन भक्ति भाव से हनुमान जी की आराधना कर हम अपने जीवन के अन्धकार को दूर भगा सकते हैं।
हनुमान जन्मोत्सव
वाल्मीकि रामायण के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था। हनुमान जी का एक नाम संकट मोचन भी है इसलिए इस दिन हनुमान जी की पूजा करने से संकटों से मुक्ति पाई जा सकती है।
इस दिन क्यों जलाते हैं यमराज के नाम का दिया
हिन्दू मान्यता के अनुसार इस दिन यमराज के नाम का दीपक घर की दक्षिण दिशा में शाम के समय जलाने से अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है। यमराज की पूजा करने और दीपदान से जीवन की परेशानियों से मुक्ति मिलती है और लम्बी आयु का वरदान मिलता है। नकारात्मक ऊर्जा से मुक्ति मिलती है और सकारात्मक’ऊर्जा का संचार होता है।