Why Saudi Arabia Is Not Attacking Afghanistan: पाकिस्तान और अफगानिस्तान (Pakistan Afghanistan War) के बीच ड्यूरंड लाइन (Durand Line) पर लगातार बढ़ रही तनावपूर्ण झड़पों ने क्षेत्रीय स्थिरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। अफगान तालिबान बलों द्वारा पाकिस्तानी सैन्य चौकियों पर हमलों (Attacks on Pakistani military posts by Afghan Taliban forces) के जवाब में पाकिस्तानी सेना ने कठोर कार्रवाई की है, लेकिन सऊदी अरब की खामोशी ने पाकिस्तान के सहयोगी देशों में चिंता पैदा कर दी है। सितंबर 2025 में दोनों देशों के बीच हुई रक्षा संधि के बावजूद सऊदी अरब ने इसे अपने ऊपर हमला क्यों नहीं माना? विशेषज्ञों का मानना है कि यह संधि मुख्य रूप से बड़े पैमाने की आक्रामकता के लिए है, न कि सीमा विवादों के लिए।
अक्टूबर 2025 की शुरुआत में पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के काबुल में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के ठिकानों पर हवाई हमले किए थे, जिसके जवाब में 11-12 अक्टूबर को अफगान बलों ने कुर्रम जिले (खैबर पख्तूनख्वा) और स्पिन बोल्डक (कंधार) क्षेत्र में 25 पाकिस्तानी चौकियों पर हमला बोला। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में तालिबान के ड्रोन हमलों और पाकिस्तानी जवाबी कार्रवाई के दृश्य दिखाई दिए।
अफगानिस्तान के अनुसार, पाकिस्तानी हमलों में 12 नागरिक मारे गए और 100 से अधिक घायल हुए। तालिबान का दावा है कि उन्होंने 58 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। वहीं, पाकिस्तान ने 25 सैनिकों की मौत स्वीकार की, लेकिन 200 तालिबान लड़ाकों को खत्म करने का दावा किया।
तालिबान प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने पाकिस्तान पर हवाई क्षेत्र उल्लंघन का आरोप लगाया और कहा, “हमने 25 चौकियां कब्जा लीं।” पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने इसे “फितना अल-ख्वारिज” (विद्रोहियों) का हमला बताया और कहा, “हम किसी भी आक्रमण का कड़ा जवाब देंगे।”
सऊदी-पाक संधि: हमला एक पर हमला दोनों पर, लेकिन…
सितंबर 17, 2025 को रियाद के अल यमामा पैलेस में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने “स्ट्रैटेजिक म्यूचुअल डिफेंस एग्रीमेंट” (SMDA) पर हस्ताक्षर किए। संधि के अनुसार, “एक देश पर कोई आक्रामकता दूसरे पर आक्रामकता मानी जाएगी।” यह दशकों पुरानी सैन्य साझेदारी को औपचारिक रूप देती है, जिसमें पाकिस्तान की न्यूक्लियर क्षमता का अप्रत्यक्ष उल्लेख है। सऊदी अधिकारी ने इसे “सभी सैन्य साधनों को शामिल करने वाला व्यापक रक्षा समझौता” बताया।
पाकिस्तान के लिए यह संधि ईरान, भारत या अन्य क्षेत्रीय खतरों से सुरक्षा का कवच है। लेकिन अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा विवाद को सऊदी क्यों अपने ऊपर हमला नहीं मान रहा? (Why is Saudi Arabia not considering the Afghanistan-Pakistan border dispute as an attack on itself?)
सऊदी विदेश मंत्रालय ने 12 अक्टूबर को बयान जारी कर कहा, “हम सीमा क्षेत्रों में तनाव और झड़पों पर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं। दोनों पक्षों से संयम बरतने, वृद्धि रोकने और संवाद व बुद्धिमत्ता अपनाने का आह्वान करते हैं।” कतर और ईरान ने भी संयम की अपील की, जिसके बाद तालिबान ने संघर्ष रोकने की घोषणा की। सऊदी ने सैन्य हस्तक्षेप का कोई संकेत नहीं दिया।
चैथम हाउस के अनुसार, यह संधि दक्षिण एशिया-मध्य पूर्व की सुरक्षा गतिशीलता को प्रभावित करती है, लेकिन इसका फोकस बड़े खतरे (जैसे इजरायल या ईरान से) पर है, न कि स्थानीय सीमा झड़पों पर। रैंड कॉर्पोरेशन के विश्लेषक कहते हैं, “यह संधि न्यूक्लियर डिटरेंस के लिए है, न कि हर छोटे विवाद के लिए। सऊदी भारत जैसे सहयोगियों से संबंध बनाए रखना चाहता है।” मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट के मुताबिक, सऊदी-पाक संबंध आर्थिक और धार्मिक हैं, लेकिन व्यावहारिक हस्तक्षेप सीमित रहेगा।
अफगान विदेश मंत्री अमीर खान मुत्तकी ने नई दिल्ली में कहा कि अफगानिस्तान “सैन्य उद्देश्यों” को हासिल करने के बाद शांति चाहता है। पाकिस्तान ने सीमा पार आतंकी ठिकानों पर हमले जारी रखने की चेतावनी दी है। सऊदी की अपील से संघर्ष रुका है, लेकिन विशेषज्ञ चेताते हैं कि टीटीपी जैसे समूहों से लंबे समय तक तनाव बना रहेगा।
सऊदी की “चुप्पी” वास्तव में कूटनीतिक संतुलन है वह पाकिस्तान का समर्थन करता है, लेकिन क्षेत्रीय शांति को प्राथमिकता देता है। यदि झड़पें बड़े युद्ध में बदलें, तो संधि सक्रिय हो सकती है। फिलहाल, कतर और सऊदी जैसे मध्यस्थों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
