Pink For Girls And Blue For Boys: रंग जो खुशियों और मनुष्य के जिंदगी की कई अवधारणाओं के प्रतीक माने जाता हैं, क्या उनका भी कोई जेंडर होता है? यह एक बहुत ही दिलचस्प सवाल है! लेकिन हाँ रंगों का जेंडर होता है। नीला रंग लड़कों के लिए और गुलाबी रंग लड़कियों का माना जाता है, हालांकि इसको लेकर इतिहास में कोई जुड़ाव की परंपरा नहीं मिलती है, लेकिन पश्चिम देशों से शुरू हुई परंपरा समय के साथ पूरी दुनिया में फैल गई।
इतिहास और परंपरा
पहले के समय में रंगों का किसी लिंग के साथ कोई विशेष जुड़ाव नहीं था। लेकिन 20वीं शताब्दी की शुरुआत में, पश्चिमी देशों में रंगों का उपयोग लिंग के आधार पर किया जाने लगा। उस समय गुलाबी रंग को लड़कों के लिए और नीले रंग को लड़कियों के लिए माना जाता था। यह इसलिए था क्योंकि गुलाबी रंग को एक मजबूत और बोल्ड रंग माना जाता था, जबकि ब्लू को एक नरम और शांत रंग माना जाता था।
समय के साथ बदलाव
लेकिन 1940 के दशक तक आते-आते रंगों बंटवारा हो गया और यह परंपरा बदल गई। ब्लू को लड़कों के लिए और पिंक को लड़कियों के लिए माना जाने लगा। हालांकि ऐसा हुआ क्यों इसकी कोई भी स्पष्ट और ठोस वजह नहीं बताई जा सकती है। लेकिन फिर भी माना जाता है, यह अवधारणा फ्रेंच फैशन उद्योग के कारण विकसित हुई। माना जाता है यह बदलाव विज्ञापन और फैशन उद्योग के कारण हुआ, जिन्होंने रंगों का उपयोग लिंग के आधार पर करना शुरू किया।
फ्रेंच फैशन ने किया लिंगों के लिए रंग का निर्धारण
फ्रांस की राजधानी पेरिस को फैशन की राजधानी माना जाता है, लेकिन यह आज से ही नहीं बल्कि 1940 के दशक में विश्व भर के फैशन की दुनिया की राजधानी बन गया था, उसी दौर में महिलाओं के लिए गुलाबी और पुरुषों के लिए नीले रंगों के कपड़ों को प्राथमिकता दी जाती थी। इसीलिए कहते हैं हैं फ्रांस का यह फैशन धीरे-धीरे वहाँ से निकलकर पूरे यूरोप और अमेरिका और फिर भारत समेत दूसरे देशों तक पहुँच गया, आज यह दोनों कलर ही लिंगों के साथ रूढ़ हो गए हैं।
भारत में स्थिति
भारत के इतिहास में किसी भी जेंडर को लेकर रंगों की रूढ़ता कभी नहीं रही है, लेकिन फिर भी पश्चिमी देशों के कारण यहाँ भी कल्चर प्रभावित हुआ है, सार्वजनिकक्षेत्रों जैसे मेट्रो में पिंक कोचेस होते हैं, जो खासतौर पर महिलाओं के लिए होते हैं, इसी तरह मतदान इत्यादि के समय पिंक बूथ की अवधारणा भी इसी कारण बनी है।
निष्कर्ष
ब्लू और पिंक कलर्स का लिंग के साथ जुड़ाव एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परंपरा है, जो समय के साथ विकसित हुई है। यह जरूरी नहीं है कि हर कोई इस परंपरा का पालन करे, और रंगों का उपयोग व्यक्तिगत पसंद के आधार पर किया जा सकता है। इसीलिए यह जरूरी नहीं है कि जो लड़की है, उसे गुलाबी रंग पसंद हो और जो लड़का हो उसे नीला रंग पसंद हो।