Indian Railway Interesting Facts: इंडियन रेलवे अपने काम और आधुनिकीकरण के दम पर उस मुकाम तक पहुंच गई है कि इसका नाम दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्कों में शुमार हो चुका है. गौर करने वाली बात यह है कि, सुविधाओं के मामले में इंडियन रेलवे अपने यात्रियों का पूरा ध्यान रखती है, फिर चाहे वो ट्रेनों में मिलने वाली तत्काल स्वच्छता सेवा हो या फिर टिकट संबंधी समस्याओं का तेज समाधान. ऐसे ही कई क्षेत्रों में भारतीय रेलवे उल्लेखनीय काम कर रहा है. लेकिन, वहीं एक समस्या लोको पायलटों के वॉशरूम जाने की भी है वो भी तब जब वे ट्रेन के इंजन में होते हैं. दरअसल, ट्रेनों के इंजन में टॉयलेट नहीं बने होते हैं. अब इसके पीछे क्या वजह है इसके बारे में भी हम आपको बता देते हैं.
ट्रेन में दो इंजन क्यों होते हैं
यदि आपको नहीं पता है तो सबसे पहले आपको बता दें कि, दो इंजन वाली ट्रेनों को मल्टीपल यूनिट ऑपरेशन कहा जाता है. ट्रेनें ज्यादा वजन खींचने की क्षमता रखें इसलिए दो इंजन लगे होते हैं. वैसे खासकर मालगाड़ियां, कोयला, सीमेंट, तेल और भारी कंटेनरों से लदी ट्रेनों में एक इंजन पर्याप्त वहीं होता है यही वजह है कि, डबल इंजन का इस्तेमाल होता है. लंबी दूरी की सुपरफास्ट ट्रेनों में भी कभी-कभी डबल इंजन लगाया जाता है, ताकि स्पीड और नियंत्रण दोनों बेहतर बने रहें। ध्यान दीजिए कि, दोनों इंजनों का नियंत्रण एक ही लोको पायलट के पास होता है.
इंजन में टॉयलेट क्यों नहीं होता
इंजन में लोको पायलट के बैठने के लिए सिर्फ एक सीट होती है. ट्रेन के इंजन में टॉयलेट इसलिए नहीं होता क्योंकि जगह की भारी कमी होती है, इंजन सिर्फ तकनीकी उपकरणों और कंट्रोल पैनल से भरा होता है, और सुरक्षा कारणों से भी यह संभव नहीं है. इंजन बेहद संवेदनशील होता है और टॉयलेट जैसी व्यवस्था सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है, इसलिए केवल जरूरी उपकरण ही होते हैं.
क्या करते हैं ड्राइवर
हालांकि रेलवे अब कुछ लोकोमोटिव (इंजनों) में छोटे पोर्टेबल या वाटर-लेस टॉयलेट लगाने की पहल कर रहा है, ताकि लोको पायलटों की सुविधा बढ़ाई जा सके. मगर वर्तमान में लोको पायलट (ड्राइवर) टॉयलेट के लिए अगले स्टेशन पर रुकने या पोर्टेबल सुविधाओं का सहारा लेते हैं. अगले स्टेशन पर इन्हें टॉयलेट जाने का समय मिल जाता है. स्टेशनों पर ड्राइवरों के लिए विशेष टॉयलेट होते हैं.
इंजन के पीछे स्थित स्टाफ लगेज रेक (SLR) कोच में स्टाफ के लिए शौचालय तो हैं, लेकिन वहां तक जल्दी पहुंचना मुश्किल है इसलिए चालक कभी-कभी रुकने के दौरान ट्रैक के पास की झाड़ियों का इस्तेमाल करते थे, जिसे यूनियनों द्वारा “अमानवीय” बताया गया था. ऐसा दावा किया जाता है कि, अगर ट्रेन को सिग्नल या स्टेशन पर ट्रेन रोकनी पड़ती है जिसके लिए अनुमति की आवश्यकता होती है, जिससे कार्यक्रम में देरी हो सकती है.
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