The Amazing Singing Of Kumar Sanu : ‘सोचेंगे तुम्हें प्यार करें कि नहीं ….’,’मेरा दिल भी कितना पागल है …..’,’बस एक सनम चाहिए आशिक़ी के लिए …,’
ये कुछ ऐसे गीत हैं जो हमें बरबस ही अपनी ओर खींच लेते हैं , और हर दफा हमें कुमार सानू की आवाज़ और गायकी का दीवाना बना देते हैं। मानो इन गीतों ने हमारे दिल में कुछ ऐसा मक़ाम बना लिया है कि वक्त कोई हो ,हमारी उम्र कोई हो ,इन नग़्मों का ख़ुमार नहीं जाता। कुमार सानु पहले तो शौकिया गाते थे ,बतौर किशोरकंठी पूजा पंडालों में भी गा लेते थे पर वर्ष 1989 में इन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की।
किसको मानते थे गायकी का उस्ताद :-
कोलकता में जन्मे कुमार सानू का मूल नाम केदारनाथ भट्टाचार्य है। उनके पिताजी भी एक अच्छे गायक और संगीतकार थे , उन्होंने ही कुमार सानू को गायकी और तबला बजाना सिखाया था। सानू दा जैसे-जैसे बड़े हुए गायक किशोर कुमार को अपना आदर्श मानने लगे और गायकी में अपना खुद का मुख़्तलिफ़ अंदाज़ बना लिया जिसमें उनकी दिलनशीं आवाज़ ने और चार चांद लगा दिया। कुमार सानू ने 1983 से सानू भट्टाचार्य के रूप में अपना फ़िल्मी सफर शुरू किया और 1986 में, शिबली सादिक द्वारा निर्देशित बांग्लादेशी फिल्म ‘तीन कन्या’ में गीत गाए ।
जगजीत सिंह ने दिखाया बॉलीवुड का रास्ता :-
बॉलीवुड फिल्मों की तरफ उन्होंने तब रुख़ किया, जब उन्हें जगजीत सिंह ने कल्याणजी आनंद जी से मिलवाया और फिर 1988 की फिल्म ‘हीरो हीरालाल ‘, 1989 में आई फिल्म ‘जादूगर’ और 90 में रिलीज़ हुई ‘आँधियाँ’ के लिए कुमार सानू ने गीत गाए ,उनके सुझाव पर ही , सानू ने अपना नाम “सानू भट्टाचार्य” से बदलकर अपने आदर्श ,किशोर कुमार के नाम पर “कुमार सानू ” कर लिया और इसके बाद सानू मुंबई आ गए , जहां उन्हें एक के बाद एक लगातार ऐसे गाने मिलने लगे कि उन्होंने 1993 से एक दिन में अधिकतम 28 गाने रिकॉर्ड करने का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बना लिया और फिल्मों को भी म्युज़िकली हिट कराने का न्य ट्रेंड शुरू किया ,एक वक़्त तो समीर के लिखे , नदीम-श्रवण के संगीत बद्ध किये और कुमार सानू के गाए गाने, किसी भी फिल्म को हिट कराने का फार्मूला बन गए थे।
क्यों नहीं पसंद आता आजकल का संगीत :-
वो क़रीब दस हज़ार से ज़्यादा गाने गा चुके हैं। कुमार सानू का आज के दौर के संगीत के बारे में कहना है कि ‘आज के संगीत से मेलोडी, सुर, ताल आदि कहीं गुम होता जा रहा है और उसकी जगह शोर ले रहा है यही वजह है कि आज के अधिकतर गीत यादगार नहीं बन पाते ,उनकी चाहत हमेशा रही कि काश उन्होंने सचिन देव बर्मन के साथ कोई गाना गाया होता।
बहुत समय से वे बंगाली फिल्मों में ज़्यादा सक्रिय हैं , लेकिन जब फिल्म ‘राउडी राठौर’ ‘में गीत ‘छम्मक-छल्लो छैल छबीली’ के गीत में उनकी आवाज़ हिंदी फिल्मों में एक अंतराल के बाद गूंजी तो लोग झूम उठे फिर सन् 2014 की रिलीज़ यशराज फिल्म निर्मित ‘दम लगा के हईशा’ फिल्म में गीत ‘दर्द करारा’ गाया तो मानो युवा दिलों की धड़कनों में भी घर कर गए फेवरेट सिंगर बनकर।
कई सालों तक जीतने नहीं दिया किसी को बेस्ट सिंगर का अवार्ड :-
कुमार सानू के 1990 के दशक की फ़िल्मों में गाए गीतों ने उन्हें वर्सेटाइल सिंगर के रूप में पहचान दिला दी थी जिसमें गायकी के हर अंदाज़ का शुमार था पर कुछ गीतों को ,तो उन्होंने ऐसे गाया कि यूं लगा कि वो किसी भी जज़्बात ए बयाँ की इंतहा तक दिल को छू गए ,उनको ‘ज़ुर्म’ फिल्म के “जब कोई बात बिगड़ जाए” गीत से पहली कमियाबी मिली थी लेकिन ‘आशिक़ी ‘के गानों ने उन्हें सिंगिंग का सुपरस्टार बना दिया, यूँ तो पहले फिल्म की कहानी लिखी जाती है फिर गीत बनते हैं लेकिन ‘आशिक़ी ‘फिल्म के गाने पहले बने ,क्योंकि इसके गाने कुमार सानू ने इसलिए पहले गा दिए क्योंकि ये गीत एल्बम के लिए लिखे गए थे फिर महेश भट्ट को ये इतने पसंद आए कि उन्होंने इन गीतों को अपनी फिल्म में शामिल करने का मन बना लिया ,इसके बाद रॉबिन भट्ट और आकाश खुराना ने गाने सुनकर फिल्म की कहानी लिखी ,’अब तेरे बिन जी लेंगे हम ‘गीत गाने के लिए कुमार सानू ने फिल्म फेयर में बेस्ट मेल सिंगर का अवॉर्ड भी जीता। इस फिल्म से ये अवॉर्ड जीतने की शुरुआत करने के बाद लगातार पाँच सालों तकआपने, 1991 से लेकर 1995 तक फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक पुरस्कार जीता। जो एक कीर्तिमान है। उन्होंने उस समय के लगभग सभी संगीतकार के लिये गीत गाए हैं:- आनंद-मिलिंद, जतिन-ललित और अनु मलिक, लेकिन वो संगीतकार नदीम-श्रवण है जिनके साथ उनकी सफलता की शुरुआत हुई और उन्हें सबसे ज़्यादा कामयाबी मिली।
विवादों में घिरने के बाद भी गाते रहे गाने :-
1990 के दशक में वे प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँचे और बॉलीवुड में सबसे प्रमुख आवाज़ों में से एक बन गए, और अनगिनत हिट गानों में अपनी आवाज़ दी। सानू के रोमांटिक गानों ने उन्हें संगीत प्रेमियों के लिए हर दिल अज़ीज़ बना दिया। अब गायकी के गुर सिखाते वो हमें बतौर जज भी रियल्टी शोज़ में नज़र आ जाते हैं। एक बार उन्होंने एक क़िस्सा सुनाया था कि एक दफ़ा उन्हें अपना गाना ‘मै दुनिया भुला दूंगा ’16 बार बन्दूक की नोक पर गाना पड़ा था क्योंकि उन्हें कुछ गुंडे मिल गए थे जिन्हें ये गाना बहोत पसंद था और वो बस मुझे सुनते ही रहना चाहते थे। ख़ैर हमेशा मुस्कुराते नज़र आने वाले कुमार सानू की निजी ज़िंदगी के बारे में भी कई चर्चाएँ होती रहती हैं उनकी पर्सनल लाइफ़ कई उतार चढ़ावों से गुज़री है ख़ासकर उनकी पूर्व पत्नी और बेटे के बयान के बाद लेकिन वो अपना काम पूरी शिद्दत और पुर जोशी से करते रहते हैं ये एक सच्चे कलाकार की पहचान है।
हिंदी के अलावा, उन्होंने मराठी, नेपाली,असमिया ,भोजपुरी ,गुजराती ,मणिपुरी ,तेलुगु ,मलयालम ,कन्नड़ ,तमिल ,पंजाबी ,ओडिया ,छत्तीसगढ़ी , उर्दू ,पाली ,अंग्रेजी और अपनी मूल भाषा बंगाली में भी गाने गाए हैं। चलते चलते आपको ये भी बता दें कि सन 2000 में उन्हें आई आई एफ ए सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक पुरस्कार – फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम ‘–के गीत ‘आँखों की गुस्ताखियाँ .. ‘गाने के लिए मिला और 2009 में आपको भारत सरकार द्वारा ‘पद्म श्री ‘से सम्मानित किया गया।
