मृतक के कपड़ों को जलाने की प्रथा क्यों है?

Why is it customary to burn the clothes of the deceased?

आप सभी ने अक्सर देखा होगा की जब किसी घर में किसी की मृत्यु हो जाती है तो उस व्यक्ति की चिटा जलाने के साथ साथ मृतक के कपड़े और उससे जुडी खास वस्तुओं को भी या तो जला दिया जाता है या फिर किसी को दान दे दिया जाता है. लेकिन क्या अपने कभी इसके पीछे का कारण जानने की कोशिश की है. मृतक के कपड़े जलाना यह परंपरा सदियों पुरानी है, लेकिन अक्सर लोगों के मन में सवाल उठता है कि ऐसा क्यों किया जाता है? क्या इसका धार्मिक कारण है या इसके पीछे कोई वैज्ञानिक सोच भी छिपी है? आइए विस्तार से समझते हैं.

पवित्रता की दृष्टि से

इस बात को ले कर कई सारे पहलु सामने आते हैं जिसमें सबसे ज्यादा पवित्रता और धार्मिक पहलु को ज्यादा तवज्जु दी जाती है. हिन्दू धर्म में मृत्यु को शरीर का अंत और आत्मा की यात्रा का आरंभ माना जाता है। मृतक के वस्त्र उस शरीर से जुड़े होते हैं जो अब अशुद्ध माना जाता है। इसलिए उन्हें जलाना आत्मा की शुद्धि और मोह-माया से मुक्ति का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है की इससे परिवार को मृतक के इस दुनिया को छोड़ के जाने का दुःख कम होता है. मान्यता है कि मृतक के कपड़े जलाने से आत्मा को सांसारिक बंधनों से मुक्ति मिलती है। ये वस्त्र व्यक्ति की सांसारिक पहचान का हिस्सा होते हैं, जिन्हें त्याग देना आत्मा की नई यात्रा के लिए आवश्यक माना गया है।

प्रेत बाधा की दृष्टि से

धार्मिक मान्यता के हिसाब से अगर देखा जाये तो ऐसा माना जाता है की मृतक की आत्मा उससे जुडी तमाम वस्तुओं से जुडी हुई होता है. इस वजह से यदि उसकी कोई प्रिय वस्तु, कपड़े आदि यदि जलाएं ना जाए तो मृतक की उन वस्तुओं के सहारे मृत्यु लोक में ही फसी रह जाती है. कुछ लोग मानते हैं कि यदि मृतक के कपड़े नहीं जलाए गए तो उनकी आत्मा उन वस्त्रों से जुड़ी रह सकती है, जिससे प्रेत बाधा या आत्मा के लौट आने का डर होता है। इसलिए यह क्रिया एक तरह की सुरक्षा प्रक्रिया भी है।

वैज्ञानिक दृष्टि से

धर्म और पवित्रता के बिलकुल परे एक और पहलू है इस बात को लेकर। वैज्ञानिक तौर पर यदि गौर किया जाये तो ऐसा संक्रमण, और बिमारियों से बचने के लिए किया जाता है, हालाकिं लोग इस पहलू को ज्यादा महत्त्व नहीं देते हैं.

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