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भारत का वर्तमान इंफ्रास्ट्रक्चर इतना कमजोर क्यों है?

infrastruture collaps

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हम भारत के अभी और पहले के इंफ्रास्ट्रक्चर को देखते हैं तो मन में ये सवालआता है कि, आख़िर आज की बनी बिल्डिंग्स पहले की बिल्डिंग्स से इतनी कमज़ोर क्यों होती हैं। पहले का बना इंफ्रास्टक्टर आज भी उतनी ही मज़बूती से खड़ा है जैसे हावड़ा ब्रिज, छत्रिपति शिवाजी महाराज टर्मिनल, कुतुबमीनार, हवा महल इसके अलावा और भी कई सारी इमारतें हैं जो मन में सवाल लाती हैं कि आज की इमारतों को बनाने में आखिर क्या कमी रह जाती है, जो कुछ ही सालों में धराशाही हो जातें हैं। इसकी कई वजह हैं, जानने के लिए लेख को पूरा पढ़े…….

भ्रष्टाचार ;

ज्यादातर आज के इंफ्रास्ट्रक्चर में उन आर्किटेक्ट और इंजीनियर को निर्माण काम दिया जाता है जिनका लिंक नेतओं से ज्यादा होता है जिस वजह से इमारत को बनाने में लगने वाली लागत को कम करके अपना घर भरने का काम किया जा सके। इसमें कंस्ट्रक्टर्स को व्यक्तिगत लाभ होता जिसमेें वो अपना लाभ पॉलिटीशियन्स और ब्यूरोक्रेट्स के साथ मिलकर साझा करते हैं। निर्माण में लगने वाली लगत से ज्यादा स्टीमेट या सामान की चोरी कर के अपना लाभ देखा जाता है।

2024 की एक रिपोर्ट के मुताबिक  ”1,902 परियोजनाओं के कार्यान्वयन की कुल मूल लागत 27,08,030.44 करोड़ की थी, जबकि इन परियोजनाओं को पूरा करने की कुल अनुमानित लागत 32,00,507.55 करोड़ रुपये मांगी गयी थी। यह कुल लागत में 4,92,477.11 करोड़ रुपये की वृद्धि को बताता है। लागत में होने वाली अनावश्यक वृद्धि का हिसाब निकला जाये तो वो ठेकेदारों के साथ भारत के ब्यूरोक्रेट्स और नेताओ को जाए। काम डिजिटली हिसाब से कितना भी करवाया जाये पर इन कामों में पारदर्शिता कम ही होती जा रही है।”

अच्छी विधि का इस्तेमाल न किया जाना ;

स्टैंडर्ड स्ट्रक्चर बनाने के लिए स्टैंडर्ड्स नहीं बल्कि लोकल एलिमेंट को जोड़ा जाता है, निर्माण के लिए कंक्रीट के डिफरेंट एलिमेंट को एक साथ जोड़ कर बनाना चाहिए। इंफ्रास्ट्रक्चर को ड्यूरेबल और मज़बूत बनाने के लिए टेक्सटाइल डिटेलिंग की जानी चाहिए। पैसे बचाने के लिए कम गुणवत्ता वाले एलिमेंट्स जोड़ दिए जाते हैं। विदेशो में होने वाले इंफ्रास्ट्रचर्स निर्माण में भारत की तुलना में ज्यादा अच्छी विधियों का इस्तेमाल किया जाता है।

काम लागत के मटेरिअल का इस्तेमाल होना ;

भारत की तुलना में विदेशो के इंफ्रास्ट्रक्चर में इस्तेमाल होने वाली लागत ज्यादा होती है। भारत के कंक्रीट की 1 किलोमीटर में लगने वाली कंक्रीट की कीमत लगभग 25 करोड़ होती है। इमारतों को बनाने में कम वज़न और गुणवत्ता वाले स्टील जोड़े जाते हैं। पहले के इंफ्रास्ट्रक्चर को बनाने में स्टील का उपयोग अच्छी मात्रा में किया जाता था जिससे इमारतों की मज़बूती बनी रहती थी पर अब ये वर्त्तमान में नहीं किया जाता है।

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