क्यों लगती हैं हृदयनाथ मंगेशकर की जटिल धुनें इतनी मधुर !

HRIDAY (1)

Hridaynath Mangeshkar, A Master Of Composing Complex Melodies :सुरमई शाम का जादू अपने संगीत से उन्होंने यूं बिखेरा मानों शाम खनक के कह रही हो मेरे रंग में रंग जाओ ,उस पर इस सदा को हम तक गा के पहुँचाया सुरेश वाडकर ने और केवल यही गीत नहीं बल्कि, ‘ लेकिन’ फिल्म का कोई भी गीत आप सुन के देखिए जैसे -मै एक सदी से बैठी हूँ ….
ये झंकार आपको मंत्रमुग्ध कर देगी और आप दीवानों की तरह पंडित हृदय नाथ मंगेशकर की धुनों को बार बार सुनेंगे
हालांकि उनके संगीत निर्देशन में हिंदी गाने कम और मराठी में ज़्यादा गाने हैं , जिन्हें भी ,आप सुन सकते हैं क्योंकि संगीत की केवल एक ही भाषा होती है वो है आनंद , जिसकी अनुभूति ही संगीत प्रेमी की पहचान है।
26 अक्टूबर 1937 को जन्में पंडित हृदयनाथ मंगेशकर , संगीतज्ञ दीनानाथ मंगेशकर के इकलौते बेटे और लता मंगेशकर ,आशा भोसले के छोटे भाई हैं जिन्हें संगीत और फिल्म उद्योग में बालासाहेब के नाम से जाना जाता हैं ।

बतौर संगीतकार मराठी फिल्मों से की शुरुआत :-

हृदयनाथ मंगेशकर ने अपने संगीत करियर की शुरुआत 1955 में मराठी फिल्म ‘आकाश गंगा ‘ से की ,उसके बाद उन्होंने कई मराठी फिल्मों जैसे ‘संसार ‘, ‘चानी ‘, ‘हा खेल सवाल्यांचा’, ‘जानकी’, ‘जैत रे जैत’ , ‘उम्बर्था ‘और निवदुंग के साथ कुछ बॉलीवुड फिल्मों के लिए भी संगीत रचना की है; जिनमें सबसे ज़्यादा याद की जाती हैं ‘सुबह’ , ‘लेकिन’ और ‘माया मेमसाब ‘
इतनी उम्दा धुनों को तराशने के बावजूद भी उन्होंने बहोत कम फिल्में की हैं जिससे पता चलता है कि वो अपने काम को लेकर बहुत चयनात्मक रहे हैं। उन्होंने मराठी और हिंदी में जो गाने बनाए उनके मीटर बहुत कठिन होते हैं जिससे उन्हें गाने के लिए भी ज़्यादा रेंज और गहराई की ज़रूरत होती है यानी बहुत पारंगत गायक ही उसे गा सकते हैं ।

लोकधुनों के साथ किये अनूठे प्रयोग :-

उनकी बनाई कुछ बेहद बेमिसाल धुनों को हम आपको याद दिलाते चलें ,जो हमें मिलीं , 1982 के एल्बम ‘ज्ञानेश्वर मौली ‘ में जिसने मराठी में आधुनिक भक्ति संगीत के लिए मानक स्थापित किए तो वहीं दूरदर्शन के संगीतमय नाटक ‘फूलवंती’ में ।
उन्होंने कुछ लोक गीतों में भी ऐसा संगीत दिया जिसकी धुनें हमारी भावनाओं को सीधे तौर पर हमारी परंपरा से जोड़ती हैं जैसे :- ‘कोली गीत ‘या मछुआरों के गीत जो कोंकण के मछुआरों की पारंपरिक लय को भी दर्शाते हैं इसी श्रृंखला में फिल्म ‘जैत रे जैत’ के लिए उनका संगीत इस शैली में उनके कौशल का एक और उदाहरण है और उनकी सबसे लोकप्रिय कृतियों में से एक है , मराठी फिल्म ‘निवडुंग’ का संगीत ।

गुरु से अलग कैसे बनी शैली :-

एक वक्त पर, हृदयनाथ ,उस्ताद अमीर खान के शागिर्द हुआ करते थे ,पर शायद वो अपनी एक अलग शैली इसलिए विकसित कर पाए क्योंकि उनका घर ही संगीत विद्यालय था जिसमें पिता जी के बाद स्वर साम्राज्ञी ,लता जी, आशा जी, ऊषा जी और मीना जी जैसी शिक्षिकाएँ उन्हें बचपन से संगीत सिखाती रहीं और अपनी बहनों के साथ वो संगीत की धुनों से खेलते हुए संगीत को आत्मसात करते रहे, और जब वो बड़े हुए तो उनकी लता दीदी ने भी उनके संगीत निर्देशन में कई दिलकश गीत गाए ।
उन्हें, महाराष्ट्र राज्य का लता मंगेशकर पुरस्कार , और सर्वश्रेष्ठ गायक के साथ सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक के लिए सात महाराष्ट्र राज्य पुरस्कार मिल चुके हैं और शंकराचार्य ने उन्हें ‘भाव गंधर्व ‘की उपाधि दी थी ।

मीरा के भक्ति पद को सबसे पहले संगीतबद्ध किया :-

उनके संगीत निर्देशन में आए कुछ और सबसे यादगार हिंदी फिल्मी गीत हैं , ‘हरिश्चंद्र तारामती’ , ‘प्रार्थना’ , ‘चक्र’ , ‘लाल सलाम ‘ और यश चोपड़ा की ‘मशाल ‘ में जिसका लोकप्रिय गाना था ,ज़िंदगी आ रहा हूँ मै. …, फिल्म , ‘धनवान ‘ जिसमें मशहूर गीत था ,ये आँखे देखकर हम ,सारी दुनिया भूल जाते हैं . …’और मराठी फिल्म ‘चानी’ जैसी संगीतमय फिल्मों में आप उनके संगीतबद्ध किये बेमिसाल गीत सुन सकते हैं।
वो मीरा की कविताओं और गीतों के साथ एल्बम बनाने वाले पहले भारतीय संगीतकार भी हैं, इनमें
कुछ हम आपको याद दिलाए देते हैं ,’ चला वही देस’ और मीरा भजन ,कबीर और सूरदास की रचनाओं को शामिल करते हुए मीरा सूर कबीरा नाम का एल्बम। उन्होंने ग़ालिब की ग़ज़लों को लेकर भी एक एल्बम तैयार किया , जिसका नाम ही है ग़ालिब , जिसे लता मंगेशकर ने गाया है ।

‘लेकिन’ का बेमिसाल संगीत:-

ह्रदय नाथ मंगेशकर उन संगीतज्ञों में से हैं जो गीत के भावों को भाप कर उसी भाव के साथ संगीत गढ़ते हैं और अपनी इसी क्षमता की वजह से 1990 को ( 38वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार ) – में आपने लेकिन… के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का पुरस्कार जीता और फिर पारंपरिक धुनों के साथ वाद्ययंत्रों के रचनात्मक उपयोग से अपनी मधुर धुनों को तराशने के लिए 2009 में आपको पद्म श्री से सम्मानित किया गया अब गायन कैसे सम्मान से छूटता तो इसके लिए आपने फिल्म ‘साधी मनसा’ के गीत को गाने के लिए सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्वगायक का महाराष्ट्र राज्य फिल्म पुरस्कार जीता।

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