तानसेन ने क्यों छोड़ी रीवा रियासत? कैसे बने अकबर के नौ रत्नों में एक

tansen biography

भारतीय शास्त्रीय संगीत के इतिहास में “तानसेन” का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। तानसेन की आवाज़, उनकी रचनाएँ और उनके गायन का प्रभाव इतना अद्भुत था कि वे अकबर के “नवरत्नों” में से एक बने। लेकिन क्या आप जानते हैं कि तानसेन का शुरुआती जीवन रीवा रियासत से जुड़ा था और उन्होंने एक लंबा समय वहीं गुज़ारा? तो फिर ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने रीवा छोड़कर मुगल सम्राट अकबर के दरबार का रुख किया? आइए जानते हैं पूरी कहानी…

तानसेन का प्रारंभिक जीवन और रीवा से संबंध

Birth of Tansen: तानसेन का जन्म 1500 के आसपास ग्वालियर के पास हुआ था। उनका असली नाम रामतनु पांडे था। उनके गुरु हरिदास स्वामी थे, जिन्होंने उन्हें ध्रुपद गायन की गहराई से शिक्षा दी। तानसेन बाद में रीवा रियासत के राजा रामचंद्र सिंह के दरबार में राजगायक बने। रीवा रियासत के दरबार में रहते हुए उन्होंने अपनी संगीत कला को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया।

रीवा में तानसेन ने की रागों की रचना

रीवा में रहते हुए तानसेन ने कई रागों की रचना की और शास्त्रीय संगीत को समृद्ध किया। राजा रामचंद्र सिंह भी संगीत प्रेमी थे और उन्होंने तानसेन को पूरा संरक्षण दिया। यह समय तानसेन के जीवन का “सुनहरा दौर” था, जहाँ उन्हें न केवल सम्मान मिला बल्कि अपने संगीत को निखारने का पूरा अवसर भी।

अकबर की पेशकश और राजा रामचंद्र सिंह का निर्णय

अकबर एक संगीत प्रेमी सम्राट थे। वे अक्सर भारत के विभिन्न हिस्सों से विद्वानों और कलाकारों को अपने दरबार में बुलाते थे। अकबर को जब तानसेन की अद्भुत गायन प्रतिभा के बारे में पता चला, तो उन्होंने तानसेन को अपने दरबार में बुलवाने का निर्णय लिया। जब अकबर ने तानसेन को दिल्ली बुलाने का आदेश दिया, तो तानसेन स्वयं जाना नहीं चाहते थे। उन्होंने रीवा को ही अपना घर मान लिया था। लेकिन उस समय मुगल साम्राज्य की शक्ति इतनी प्रबल थी कि राजा रामचंद्र सिंह तानसेन को मना नहीं कर सके। उन्होंने राजनीतिक विवेक से काम लेते हुए तानसेन को अकबर के दरबार में भेजने का फैसला किया। तानसेन रीवा रियासत में रहना चाहते थे, लेकिन मुगलों की आज्ञा को टालना संभव नहीं था। इसलिए वे अपने राजा और रियासत से विदा लेकर अकबर के दरबार में चले गए। यह उनके लिए भावनात्मक रूप से कठिन निर्णय था, परंतु समय और राजनीति के दबाव ने उन्हें मजबूर कर दिया।

अकबर के दरबार में तानसेन ने अपार ख्याति प्राप्त की। उन्होंने राग दीपक, राग मेघ मल्हार जैसे चमत्कारी रागों की प्रस्तुति दी और अकबर के बेहद प्रिय बन गए। उन्हें “मियां तानसेन” की उपाधि दी गई और मुग़ल दरबार के “नवरत्नों” में शामिल किया गया।

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