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Who Is Rana Sanga | Rajput History | कौन थे राणा सांगा? क्या है उनका इतिहास?

History Of Rana Sanga In Hindi: “हर कि आमद ब-जहां अहले-फ़ना खाहिद बूद आं कि पायंदा व बाक़ीस्त ख़ुदा ख़ाहिद बूद”
अर्थात – हर आदमी को यह याद रखना चाहिए, जो भी इस संसार में आया है उसका विनाश निश्चित होता है, सिर्फ परमेश्वर ही ऐसा है, जिसका विनाश नहीं होता है। फ़ारसी की यह पंक्तियाँ बाबरनामा से हैं, बाबरनामा जो बाबर का आत्मकथात्मक चरित्र है, जो चगतई भाषा में लिखा गया था। यह पंक्तियाँ बाबर ने तब कहीं थीं, जब वह मेवाड़ के राणा सांगा के विरुद्ध युद्ध के लिए जा रहे थे और उनकी सेना राजपूतों से युद्ध से पहले अत्यंत घबराई हुई थी। राणा सांगा जिन्हें ब्रिटिश ऑफिसर कर्नल जेम्स टॉड घायल सैनिकों का भग्नावेश के नाम से संबोधित करता है, आखिर कौन थे राणा सांगा ? क्या है उनका इतिहास, आइए जानते हैं।

कौन थे राणा सांगा

राणा संग्राम सिंह सिसौदिया, मेवाड़ के 8 वें राणा थे, जिन्हें राणा सांगा के नाम से जाना जाता है। उनका जन्म 1482 चित्तौड़ में मेवाड़ के महाराणा रायमल और उनकी एक पत्नी झाली रानी रतन कुंवर के यहाँ हुआ था। हालांकि उनके जन्म का वर्ष अज्ञात है, लेकिन कुंभलगढ़ प्रशस्ति में दिए गए ज्योतिष और नक्षत्रिय गणना के आधार पर सुप्रसिद्ध इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने राणा सांगा का जन्म वर्ष 1482 निश्चित किया है। राणा रायमल के विभिन्न रानीयों से उनके 13 पुत्र थे, जिनमें पृथ्वीराज, जयमल और सांगा गद्दी के प्रमुख दावेदार थे। राणा रायमल के बीमार होने के बाद तीनों पुत्रों में गद्दी के लिए दावेदारी प्रारंभ हो गया।

राणा सांगा का मेवाड़ का शासक बनना

राणा रायमल के जीवित अवस्था में ही उनके तीनों प्रमुख पुत्रों में गद्दी के लिए दावेदारी प्रारंभ हो गई, राजस्थानी लोककथाओं और ग्रंथों में कुंवरों के संघर्ष पर तीनों भाइयों ने एक ज्योतिषी को अपनी कुंडली दिखाई, ज्योतिष ने बताया ग्रह तो तीनों के ही ठीक हैं, लेकिन सांगा के राणा बनने की प्रबल संभवना है। इस पर दोनों बड़े भाई सांगा से लड़ने लगे और उनको मारने का इरादा करने लगे, लेकिन उनके काका रावत सारंगदेव ने तीनों भाइयों के बीच बचाव किया, और उन्हें नाहरमगरा में रहने वाली चारण स्त्री के पास जाने की सलाह दी, जो देवी करणी की भक्त थी। अपने काका के साथ तीनों भाई चारण स्त्री के पास पहुंचे जो उस समय मंदिर में नहीं थी, कुँवर पृथ्वीराज और जयमल एक आसन पर बैठ गए, लेकिन आसन ना होने पर सांगा वहीं रखी बाघ की खाल को बिछाकर बैठ गए, चारण स्त्री ने आते ही ऐलान किया, जो सिंह की सवारी करता है वही मेवाड़ का राजा बनेगा, यह भविष्यवाणी सुनकर दोनों भाई तलवार निकाल कर सांगा को मारने लगे, लेकिन उनके काका ने वह वार रोक लिया, जिसके कारण सांगा की जान तो बच गई, लेकिन उनकी एक आँख फूट गई, सांगा वहाँ से निकल कर भाग गए और छिप कर अजमेर के निकट श्रीनगर के ठाकुर कर्मचंद पँवार के यहाँ सैनिक हो गए।

राणा सांगा का मेवाड़ का शासक बनना

बाद कुँवर पृथ्वीराज और जयमल के असमय काल कलवित होने के बाद, राणा रायमल ने उन्हें मेवाड़ बुलाया। बाद में पिता के मृत्यु के बाद 1509 में वह मेवाड़ के राणा बनें। राणा बनने के बाद उन्होंने मेवाड़ का बहुत ज्यादा विस्तार किया, और बहुत सारे युद्ध किए, यह माना जाता है कि उन्होंने लगभग 100 युद्ध किए थे, उनके शासन के समय उनका साम्राज्य संपूर्ण राजस्थान गुजरात के पश्चिमी क्षेत्रों, दक्षिण-पूर्व मालवा और आज के हरियाणा और सिंध के कुछ क्षेत्रों में भी था। यह माना जाता है उनके साम्राज्य की सीमा आगरा से 16 किलोमीटर पीलियाखार नदी तक था, आगरा उस समय लोदी सुल्तानों की राजधानी थी। बाबरनामा में बाबर ने स्वयं लिखा है, मेवाड़ का राणा अपने तलवार के जोर से हिंदुस्तान का सबसे बड़ा शासक बन गया है उसके राज्य की आमदनी लगभग 1 करोड़ है। उस समय भारत में दो ही हिंदू शक्तियां थीं दक्षिण में कृष्णदेव राय के नेतृत्व में विजयनगर साम्राज्य और उत्तर में राणा सांगा का राज्य, बकि उस समय सब मुस्लिम शक्तियां थीं।

राणा सांगा द्वारा मालवा, गुजरात और दिल्ली के सुल्तानों की पराजय

राणा सांगा जिन्होंने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को बैक टू बैक दो बार 1517 में खतौली तथा 1519 में धौलपुर में पराजित किया। उन्होंने 1519 में हुए गागरोनके युद्ध में मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय को पराजित कर कैद कर लिया, वह लगभग 6 माह उनके कैद रहा, लेकिन बाद में सांगा ने उदारता दिखाते हुए सुल्तान को मुक्त कर दिया। गुजरात सल्तनत की सेनाओं को 1514 से 1517 के बीच तीन बार ईडर में पराजित किया। बार-बार ईडर में दखल के कारण यह युद्ध हो रहे थे, जिसके बाद 1520 में उन्होंने गुजरात पर आक्रमण कर दिया, गुजरात का सुल्तान मुजफ्फरशाह राजधानी अहमदाबाद छोड़कर चंपानेर चला गया। 1521 में मंदसौर के युद्ध में उन्होंने गुजरात और मालवा सल्तनत की संयुक्त फ़ौजों को हराया। 1521 में उन्होंने रणथम्भौर के निकट फिर दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम की फ़ौजों को हराया। उन्होंने 1529 में हुए बयाना के युद्ध में उन्होंने मेहंदी हसन के नेतृत्व वाली मुग़ल फ़ौजों और उसके सहयोगी कई अफगान सरदारों को भी हराया।

बाबर का भारत आगमन

बाबर फरगना का शासक था, वह पिता की ओर से तैमूर और माँ की ओर से चंगेज खान का वंशज था, लेकिन उसे उज़्बेकों ने बहुत परेशान किया, समरकंद और फरगना के उसके राज्य भी छीन लिए गए, जिसके बाद वह काबुल के बीहड़ क्षेत्रों में रहता था, अपने राज्य खो देने के बाद वह हिंदुस्तान में अपने साम्राज्य की संभावनाएँ तलाश रहा था, इसी क्रम में उसने लोदी सुल्तानों द्वारा शासित हिन्दुस्तानी क्षेत्रों पर कई छोटे-छोटे आक्रमण किए थे, संभवतः यह आक्रमण वह लोदी सुल्तानों की शक्ति परीक्षा के लिए कर रहा था। इसी बीच उससे लाहौर के लोदी गवर्नर दौलत खान लोदी और सुल्तान इब्राहीम के चाचा आलम खान लोदी, इब्राहीम के व्यवहार और रवैये से नाराज थे, इसीलिए उन्होंने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के आमंत्रित किया। उजबेकों के साथ युद्ध के बाद बाबर समझ गए थे, अब यहाँ उनके लिए कुछ बचा नहीं है, इसीलिए वह हिंदुस्तान को समझ रहे थे, यहाँ की कमजोर लोदी सत्ता और राजनैतिक अस्थिरता, बेशुमार दौलत, यहाँ के मीठे आम और पान उसे लुभा रहे थे। बस उसने ख़ुदा का शुक्रिया किया और हिंदुस्तान की ओर चल पड़ा। 21 अप्रैल 1526 में पानीपत के मैदान में उसने अफगानों को करारी शिकस्त दी, और आगरा में रुक गया और अफगान काबिज पूर्वी क्षेत्रों पर अफगानों का दमन करने की योजनाएं बना रहा था। लेकिन वह पश्चिम की तरफ से भी आगाह था, जहां मेवाड़ के राणा ने गुजरात और मालवा सल्तनतों को रौंद डाला था, दिल्ली के सुल्तान को दो बार हराया था और लगातार आगरा की तरफ बढ़ रहा था।इसीलिए बाबर ने ग्वालियर, बयाना और धौलपुर के अफ़गान सरदारों से संधि कर ली।

जब मुग़ल खेमे में था भय का माहौल

बयाना युद्ध में पराजित होने के बाद मुग़ल सैनिक भागकर बाबर के खेमे में पहुंचते हैं और राजपूतों के युद्ध और शौर्य का वर्णन किया, बाबरनामा में बाबर स्वयं लिखता है उसके सैनिकों में सांगा और उनके सेनाओं से भय थे, कई मुग़ल सरदार और खुद शहजादा हुमायूँ बार-बार काबुल लौट जाने की सलाह दे रहे थे, लेकिन बाबर के लिए यह करो और मरो की स्थिति थी, क्योंकि काबुल में केवल गरीबी और दुर्दशा थी, और बाबर को यह अब मंजूर नहीं था, इसीलिए उसने अपने सैनिकों में जोश भरने के लिए वह बात की थी, जो हमने प्रारंभ में लिखी थी। इसके अलावा उसने शराब पीने पर पाबंदी लगा दी, शराब के सारे बर्तन भी तोड़ दिए, इसके अलावा उसने मुस्लिमों के ऊपर से तमगा कर हटा दिया और सर्वप्रमुख उसने अपने सैनिकों में जोश भरने के लिए जिहाद का ऐलान किया।

खानवा का युद्ध

बयाना के युद्ध में मुग़लों को पराजित करने के बाद राणा सांगा आगरा की तरफ बढ़े, उनके साथ लगभग 7 राजा, 9 बड़े राव, 104 सरदार उनके साथ थे, इतिहासकारों का मत है उनके साथ लगभग 80 हजार सैनिक थे, उनके साथ मारवाड़ और आमेर के साथ लगभग पूरे राजपूताना के शासक थे, रायसेन के पुरबिया सरदार सिलहदी और चँदेरी के प्रतिहार राजा मेदिनीराय भी उनके सबसे प्रमुख सरदारों में से एक थे। जबकि बाबर के खेमे में कुछ कम सैनिक थे, इतिहासकारों का यह भी मानना है बाबर ने बाबरनामा में राजपूत सैनिकों की संख्या बहुत बढ़ा चढ़ा कर बताई है। दोनों सेनाएँ भरतपुर के निकट खानवा के मैदान 16 मार्च 1527 को आमने सामने आईं, युद्ध लगभग 9 बजे शुरू हुआ, प्रारंभ में राजपूत सेना मुग़लों पर भारी पड़ रही थी, लेकिन मुग़ल सेनाओं के तोपखाने के आगे वह पस्त पड़ने लगे, इधर हाथी पर बैठकर युद्ध कर रहे राणा सांगा को एक गोली आकर लगी, जिसके बाद वह मूर्छित होकर घायल हो गए, उनके सरदारों ने उन्हें युद्धक्षेत्र से बाहर निकाला, झाला सरदार अज्जा ने राणा का छत्र इत्यादि धारण कर युद्ध का नेतृत्व किया, लेकिन वह राणा सांगा की तरह सेना का नेतृत्व नहीं कर पाए और मुग़ल द्वारा वह काल-कलवित हुए, हाथी में अपने नायक को ना पाकर युद्धक्षेत्र में राजपूतों में भगदड़ मच गई, और मुग़ल यह युद्ध जीत गए। युद्ध में पराजय के कारण अलग-अलग इतिहासकारों द्वारा अलग-अलग बताये जाते हैं, लेकिन सभी इतिहासकर कुछ किन्तु-परंतु के साथ मुग़ल तोपखाने की श्रेष्ठता को स्वीकार करते हैं।

राणा सांगा की मृत्यु

घायल होने पर राणा सांगा को उनके सामंतों द्वारा बसवा ले जाया गया जहाँ होश पर आने के बाद वे अपने सरदारों पर बड़ा क्रोधित हुए और उन्हें उलाहना दी। प्रण लिया जब तक बाबर को पराजित ना कर लूँ मेवाड़ नहीं लौटूंगा, पगड़ी नहीं पहनूंगा। इसीलिए वह बसवा में ही रहे, कुछ इतिहासकार कहते हैं वे रणथम्भौर में रहे। लेकिन वे मेवाड़ नहीं लौटे, वे इतने घायल हो गए थे कि वस्त्र तक पहन नहीं सकते थे बल्कि पूरे देह में पट्टी बांध कर रहते थे। अभी वह पूरी तरह स्वस्थ भी नहीं हो पाए थे कि खबर मिली की बाबर उनके प्रमुख सहयोगी और मित्र चंदेरी के मेदिनी राय प्रतिहार के विरुद्ध सैनिक अभियान कर रहा है। स्वाभिमानी राजपूतयोद्धा फिर से बाबर से भिड़ने को तैयार हो गया था, जबकि अभी भी वह पूरी तरह स्वस्थ नहीं थे। वे चंदेरी की तरफ चले और एरिच तक बढ़ आये जो आजकल झाँसी जिले में आता है। उन्होंने अपने सामंतों को भी आने का बुलावा भेजा, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण रहा उन्हीं के किसी सामंत ने उन्हें विष दे दिया, क्योंकि बाबर चंदेरी फ़तेह कर चुका था मेदिनी राय और दूसरे राजपूत लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो चुके थे और लगभग 1600 राजपूत स्त्रियों ने जौहर कर लिया था। अब तक खानवा से राजपूत उबरे नहीं थे, चंदेरी के पतन ने उन्हें सशंकित कर दिया, हालांकि उन्हें विष एरिच में दिया गया था, लेकिन उनकी मृत्यु कालपी में 30 जनवरी 1528 को हुई। हुई। शायद उनका उद्देश्य बाबर की लौटती हुई फ़ौजों से टकराने का था जो संभवतः संभल और कन्नौज की तरफ जाने वाली थीं, लेकिन यह हो ना सका। राणा सांगा में अतुलनिय साहस था, आप सोचिये जिस व्यक्ति की एक आँख, एक हाथ और एक पैर बेकार हो चुके थे, खानवा के युद्ध में बेहद घायल थे इसके बाद भी वे बाबर के विरुद्ध आगे बढ़ते हैं, वह भी तब जब राजपूतों की खानवा में बड़ी हानि हो चुकी थी। महाराणा सांगा के निधन के बाद राजपूतों में कोई ऐसा नेतृत्व नहीं हुआ जो उन्हें एक झंडे तले ला सके।

क्या बाबर को राणा सांगा ने बुलाया था

बाबरनामा में बाबर लिखता है राणा सांगा ने उसके वादा खिलाफी की, उसने वादा किया था जब मुगल दिल्ली पर आक्रमण करेंगे तो वह आगरा की तरफ लोदियों पर आक्रमण करेंगे। इसी बात को आधार बनाकर कुछ लोग कहते हैं की बाबर को हिंदुस्तान राणा सांगा ने बुलाया था, लेकिन यह सत्य नहीं है कोई भी इतिहासकार इस बात को सत्य में मानने में संदेह प्रकट करते हैं, क्योंकि समकालीन दूसरे स्त्रोतों में और कोई भी साक्ष्य मिलते नहीं हैं। लेकिन कुछ इतिहासकार यह मानते हैं संभवतःबाबर ने ही लोदियों के विरुद्ध राणा सांगा से मदद मांगी थी, और कूटिनीति के हिसाब से राणा ने इसे स्वीकार कर लिया था, लेकिन बाद में शायद उन्होंने उसे मदद देने से इंकार कर दिया।

रीवा के राजा ने भी खानवा के युद्ध में सैनिक भेजे थे

जब राणा सांगा का शासन था, तब रीवा अर्थात बांधवगढ़ और गहोरा में राजा वीरसिंह बघेला शासन किया करते थे, वह भी बेहद पराक्रमी शासक माने जाते थे, खानवा के युद्ध में उन्होंने भी राजपूत गठबंधन में भाग लिया था और लगभग 4000 हजार घुड़सवार सैनिकों को राणा सांगा के पक्ष में युद्ध करने के लिए भेजा था।

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