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Story Of Bhagadatta | कौन था भगदत्त? और महाभारत युद्ध में वह अर्जुन को क्यों मारना चाहता था?

Story of bhagdatta: कौरवों और पांडवों के मध्य 18 दिन युद्ध चला, जिसमें पांडवों की विजय हुई, इस युद्ध में भारत-भूमि के लगभग सभी राजा-महाराजा और योद्धा, किसी ना किसी पक्ष की तरफ से युद्ध में शामिल हुए थे। उनमें से एक ऐसा ही राजा और योद्धा था भगदत्त, जो कौरव पक्ष की तरफ से युद्ध में शामिल हुआ था, युद्ध के 12 वें दिन अर्जुन ने उसका वध किया था।

कौन था भगदत्त


भगदत्त कामरूप का राजा था जिसकी राजधानी प्रागज्योतिषपुर हुआ करती थी। यह देवताओं के राजा इंद्र का मित्र था और पांडवकुमार अर्जुन का प्रशंसक लेकिन श्रीकृष्ण का विरोधी और शत्रु था, इसीलिए यह कुरूक्षेत्र के युद्ध में कौरव पक्ष के साथ था। महाभारत के अनुसार भगदत्त नरकासुर का पुत्र था। परवर्ती पुराणों के अनुसार, नरक भूदेवी और भगवान वराह का पुत्र था। कथा है जब भगवान श्री हरि विष्णु ने वराह अवतार लेकर पृथ्वी का उद्धार किया था, तभी उसका जन्म हुआ था, उसका पालन पोषण विदेह राज जनक ने किया था। बाद में उसने दानवों को पराजित कर कामरूप में अपनी सत्ता स्थापित की, नरक का जिक्र महाभारत के साथ साथ रामायण में भी मिलता है, लेकिन श्रीराम या अयोध्या की सेनाओं का कोई भी अभियान नरक के विरुद्ध नहीं हुआ था जो इस बात का प्रमाण है कि वह प्रारम्भ में साम्राज्यवादी नहीं था और ना ही श्रीराम का विरोधी था। जबकि इसके उलट मथुरा के राजा लवण पर कुमार शत्रुघ्न के नेतृत्व में अयोध्या की सेना ने विजयश्री प्राप्त की थी। महाभारत के अनुसार श्रीकृष्ण ने प्रागज्योतिषपुर पर चढ़ाई की थी, और उसके सेनापति मुर के सहित नरकासुर और उसके समस्त पुत्रों का वध कर दिया लेकिन भूदेवी की प्रार्थना पर भगदत्त को जीवनदान दे दिया यही भगदत्त बाद में कामरूप का शासक बना।
युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय अर्जुन ने भगदत्त को पराजित किया था, इसीलिए वह अर्जुन के युद्ध कौशल का प्रशंसक था। महाभारत में जिक्र है वह एक बार कर्ण से भी पराजित हुआ था।

महाभारत युद्ध में कौरव पक्ष की तरफ


महाभारत युद्ध के समय वह अपनी एक अश्वरोहिणी सेना लेकर कौरव पक्ष में शामिल हुआ था लेकिन वह मुख्यतः अपने हाथी सुप्रतीक पर चढ़कर अपनी गजसेना के साथ युद्ध करता था। महाभारत युद्ध के समय उसकी आयु बहुत ज्यादा थी, वह बहुत वृद्ध था उसके चेहरे में इतनी झुर्रिया थीं, कि वह लटक कर उसके आँखों के सामने आ जाती थीं, और उसको दिखाई देना बंद हो जाता था। इस असुविधा से बचने के लिए वह आँखों के कुछ ऊपर की तरफ पट्टी लगा कर रखता था।
महाभारत के अनुसार युद्ध के 12वें दिन दुर्योधन ने भीम को मारने के लिए गजसेना भेजी जिसका नेतृत्व भगदत्त ही कर रहा था, लेकिन भीम के गदा प्रहार से उसके हाथी भागने लगे और कौरव सेना को ही कुचलने लगे, यह देख कर भगदत्त अत्यंत क्रोधित हुआ और अपने हाथी सुप्रतीक के साथ भीम पर आक्रमण कर दिया हाथी ने भीम के रथ, घोड़े और सारथी को कुचल डाला, भीम रथ से कूद कर बच गए, लेकिन रथ को तोड़ते हुए सुप्रतीक घायल हो गया, और वह क्रोधित और मतवाला हो भीम के पीछे दौड़ा, तब युधिष्ठिर ने दशार्न नरेश को उनकी गजसेना के साथ भीम की सुरक्षा के लिए भेजा, भगदत्त और उसके हाथी सुप्रतीक ने दशार्न नरेश और उनके हाथी को भी परास्त कर रौंद डाला। भीम इसी मौके का फायदा उठा बच निकले।

भगदत्त का पराक्रम


जब भगदत्त युधिष्ठिर की तरफ बढ़ने लगा और सुप्रतीक के साथ पांडव सेना को कुचलने लगा, सत्यकि और अभिमन्यु जैसे योद्धा भी भगदत्त को नहीं रोक पाए तब अर्जुन ने उसे युद्ध के लिए ललकारा, वह अर्जुन के रथ को भी कुचलना चाहता था, लेकिन श्रीकृष्ण जैसे कुशल सारथी के रहते यह कहाँ संभव था, अर्जुन ने भगदत्त के धनुष सहित सभी अस्त्र – शस्त्र और ध्वज को भी काट डाला, तब क्रोधित भगदत्त ने अर्जुन पर वैष्णवअस्त्र का प्रहार कर दिया, अर्जुन उसकी काट कर पाते उससे पहले ही श्रीकृष्ण ने वह अस्त्र अपने छाती पर सह लिया, तब क्रोधित अर्जुन ने श्रीकृष्ण के निर्देशानुसार नरीच नाम के बाण का प्रयोग सुप्रतीक पर किया, बाण हाथी के मर्मस्थल पर लगा और वह धराशायी हो गया, तब अर्जुन ने एक बाण से भगदत्त की पट्टी तोड़ दी जिसके कारण उसके आँखों के सामने अंधेरा छा गया, और फिर उसकी छाती पर बाण चलाया और भगदत्त की मृत्यु हो गई। मरते हुए भगदत्त की प्रदक्षिणा अर्जुन ने की क्योंकि वह बेहद वृद्ध था और अर्जुन के जैविक पिता इंद्र का मित्र भी था।
बाद में कामरूप का शासक भगदत्त का पुत्र पुष्पदत्त हुआ वह भी अश्वमेध यज्ञ के समय अर्जुन से पराजित होकर मृत्यु को प्राप्त हुआ।

भौम वंश की ऐतिहासिकता


पौराणिक कथाओं में ही नहीं ऐतिहासिक तौर पर भी नरक का जिक्र है, 7वीं शताब्दी में कामरूप (असम ) में शासन कर रहे वर्मन वंश के आखिरी शासक भाष्करवर्मन के निदानपुर ताम्रपट्ट अभिलेख में दर्ज है की वर्मन वंश का संस्थापक नरक ही था जो तीन हजार वर्ष पहले हुआ था। पौराणिक इतिहासकारों ने इस वंश को भौम वंश भी कहा। कुछ इतिहासकारों का मत है के ये मूलतः किरात रहें होंगे, महाभारत युद्ध के समय भगदत्त के साथ लड़ने वाली सेना को किरात ही कहा गया है। अब जो भी हो इतिहासकार डी सी सरकार ने कामरूप के इतिहास पर विस्तृत लिखा है, पुराणों में धार्मिक तत्व की ही नहीं इतिहास के तत्व की भी विवेचना होनी चाहिए लेकिन उस पर भी एक दिक्कत यह होती है कि लोग इन सब की मनमानी व्याख्या करते हैं, लेकिन फिर भी पुराणों में ऐतिहासिक तत्वों की खोज होनी ही चाहिए।

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