कौन होते हैं ‘दलाई लामा’ और क्या होती है उनके चुनाव की प्रक्रिया

Dalai Lama Election Process: 6 जुलाई 2025 को तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा 90 वर्ष के हो गए हैं। तिब्बतियों के लिए दलाई लामा न केवल धार्मिक नेता हैं, बल्कि उनकी संस्कृति और अस्तित्व के प्रतीक भी हैं। वर्तमान दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, 14वें अवतार माने जाते हैं। जैसे-जैसे उनकी उम्र बढ़ती जा रही है, दुनियाभर में यह चर्चा फिर तेज हो गई है कि उनका अगला पुनर्जन्म कहां और कैसे होगा। हालांकि दलाई लामा ने खुद भी अपने उत्तराधिकारी के चयन और पुनर्जन्म को लेकर समय-समय पर कई बार महत्वपूर्ण संकेत दिए हैं। आखिर दलाई कौन होते हैं? और उनके चुनाव की क्या प्रक्रिया है?

कौन होते हैं दलाई लामा

दलाई लामा तिब्बती बौद्ध धर्म में गेलुग पंथ के सर्वोच्च आध्यात्मिक गुरु होते हैं। यह पद न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। वर्तमान (14वें) दलाई लामा का नाम है तेन्जिन ग्यात्सो, जिनका जन्म 1935 में हुआ था। दलाई लामा को अवलोकितेश्वर अर्थात करुणा के बोधिसत्व का अवतार माना जाता है। ऐसा विश्वास है कि जब एक दलाई लामा की मृत्यु होती है, तो उनकी आत्मा पुनर्जन्म लेती है और वही अगला दलाई लामा होता है। यह परंपरा सदियों से चलती आ रही है।

दलाई लामा के परंपरा की शुरुआत

1557 ईस्वी में, मंगोल शासक अल्तान खान ने बौद्ध गुरु सोनम ग्यात्सो को “दलाई लामा” की उपाधि दी थी। ‘दलाई’ मंगोल भाषा में ‘समुद्र’ और ‘लामा’ तिब्बती में ‘गुरु’ को कहते हैं, अर्थात् दलाईलामा का अर्थ हुआ, ‘ज्ञान का समुद्र’। सोनम ग्यात्सो को तीसरा दलाई लामा माना गया, जबकि पहले दो ग्येन्दुन द्रुपा और ग्येन्दुन ग्यात्सो को मरणोपरांत यह पदवी दी गई थी।

दलाई लामा को चुने जाने की प्रक्रिया

  • दलाई लामा की मृत्यु के बाद उनका उत्तराधिकारी खोजने की प्रक्रिया अत्यंत जटिल, परंपरागत और रहस्यमयी होती है।
  • दरसल मृत दलाई लामा प्रायः संकेत छोड़ जाते हैं, जो उनके अगले जन्म के स्थान या समय का अनुमान लगाने में मदद करते हैं।
  • इसके अलावा उनके निधन के समय, शव की दिशा और भिक्षुओं को आए स्वप्नों की भी व्याख्या की जाती है।
  • दिशा और संभावित स्थानों का निर्धारण ज्योतिषाचार्यों द्वारा किया जाता है।
  • फिर उसके बाद शुरू होती है, संभावित बच्चों की खोज, जिसके लिए उस समय जन्मे विशेष बच्चों की पहचान की जाती है, जो असाधारण गुणों वाले होते हैं।
  • इसके बाद सबसे प्रमुख परीक्षण की प्रक्रिया प्रारंभ होती है।
  • जिसके तहत बच्चे के सामने, दिवंगत दलाई लामा की वस्तुएं रखी जाती हैं।
  • यदि वह सही चीजें पहचान लेता है और कहता है ‘यह मेरा है’, तो यह पुनर्जन्म की पुष्टि मानी जाती है।

वर्तमान दलाई लामा की पहचान कैसे हुई

तेन्जिन ग्यात्सो, वर्तमान 14वें दलाई लामा का जन्म 1935 में तिब्बत के ताक्तेसर गांव में हुआ था। मात्र 2 वर्ष की उम्र में, बौद्ध साधुओं ने 13वें दलाई लामा की निशानियों की मदद से उनकी पहचान की। बच्चे के सामने चश्मा, घंटी और छड़ी सहित कई वस्तुएं रखी गईं। उसने बिना झिझक सही वस्तुएं उठाकर कहा- ‘यह मेरा है।’ जब उसने छड़ी को सीने से लगा लिया, तो भिक्षुओं को पूरा विश्वास हो गया कि यह वही पवित्र आत्मा है आत्मा है। 6 साल की उम्र में उसे औपचारिक धार्मिक शिक्षा दी जाने लगी और 1950 में, चीन के तिब्बत में प्रवेश के बाद, उन्होंने राजनीतिक और धार्मिक दोनों जिम्मेदारियाँ संभालीं।

भारत में हो सकता है अगला जन्म

दलाई लामा ने कई बार कहा है कि उनका अगला जन्म भारत में हो सकता है। चीन द्वारा तिब्बत पर जबरन नियंत्रण और बौद्ध परंपराओं में हस्तक्षेप को देखते हुए उन्होंने कहा था- “अगर तिब्बत की स्थिति नहीं सुधरी, तो मैं भारत में पुनर्जन्म लेना पसंद करूंगा।” दरसल यह बयान एक राजनीतिक संकेत भी है कि दलाई लामा, चीन द्वारा नियंत्रित किसी प्रक्रिया को स्वीकार नहीं करते। यह उनके अनुयायियों को यह समझाने की कोशिश है कि अगला दलाई लामा चीन द्वारा घोषित नहीं बल्कि उनके इच्छानुसार कहीं और हो सकता है।

पुनर्जन्म की परंपरा को खत्म करने का इशारा

2011 में दलाई लामा ने एक चौंकाने वाला बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि, “दलाई लामा की संस्था अब जरूरी नहीं रही, यह परंपरा समाप्त भी हो सकती है।” दरसल इस बयान को तिब्बती बौद्ध परंपरा में एक क्रांतिकारी सोच माना गया था। उन्होंने यह भी कहा था कि जब तक लोग चाहेंगे, तभी तक पुनर्जन्म होगा। यानी पुनर्जन्म अब अनिवार्य नहीं है, बल्कि तिब्बती जन इच्छा पर आधारित होगा। यह बयान यह भी दर्शाता है कि चीन द्वारा अपने मनमाफिक उत्तराधिकारी थोपने के प्रयासों को वे मान्यता नहीं देंगे।

‘अवतार की पहचान’ की प्रक्रिया को आधुनिक बनाने का सुझाव

पारंपरिक रूप से, दलाई लामा का अगला जन्म विशेष आध्यात्मिक संकेतों और खोज के माध्यम से खोजा जाता है। लेकिन दलाई लामा ने संकेत दिया था कि, इस प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और आधुनिक तरीकों से किया जा सकता है। उन्होंने कहा था कि, “21वीं सदी में हम हर परंपरा की पुनर्समीक्षा कर सकते हैं।” इसका मतलब यह हो सकता है कि अब केवल रहस्यमय तरीकों पर ही नहीं, बल्कि विचार-विमर्श और तर्क पर आधारित प्रक्रिया से भी उत्तराधिकारी तय हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *