About Devi Durga In Hindi: हिंदू धर्म में देवी दुर्गा को आदिशक्ति माना जाता है, जिसका अर्थ होता है, समस्त चराचर जगत की प्रथम शक्ति। माना जाता है देवी ही इस संसार की सृष्टिकर्ता मानी जाती हैं। देवी को भगवान शिव की अर्धांगिनी माना जाता है, माना जाता है एककार होने के बावजूद भी देवी अपनी माया से अनेक हो जाती हैं। मान्यता है देवी ने ही इस समस्त चराचर जगत में जीवन की रचना की है, समस्त जगत का पालन करती हैं। ब्रम्हा, विष्णु और भगवान शिव की शक्ति भी यही देवी मानी जाती हैं। यही शक्ति हैं माँ दुर्गा, जिनके बारे में कहा जाता है देवी विंध्य पर्वत के ऊंचे शिखरों पर निवास करती हैं।
प्राचीन ग्रंथों में देवी दुर्गा का जिक्र
देवी का पहला जिक्र वेदों और उपनिषदों में आया है, ऋग्वेद और अथर्ववेद में दुर्ग शब्द का अर्थ अभेद्य माना जाता है, पाणिनी के व्याकरणीय व्याख्यायों के ग्रंथों में भी दुर्गा शब्द का जिक्र है। इसके अलावा भी वेदों में उषा, संध्या, सावित्री, अदिति और रात्रि देवियों की स्तुति की गई है। रामायण और महाभारत जैसे आदि महाकाव्यों की कथाओं में भी देवी दुर्गा की कथाएँ हैं, लंका पर चढ़ाई से पहले भगवान राम और महाभारत युद्ध से पहले श्रीकृष्ण के आदेश पर अर्जुन द्वारा विजय प्राप्ति के लिए देवी दुर्गा की स्तुति की गई।
क्या है दुर्गा का शाब्दिक अर्थ
दुर्गा का शाब्दिक अर्थ होता है- दुर्गम, अभेद्य और अजेय, अर्थात जिसे जीता ना जा सके, जो अभेद्य। दुर्गा शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है दुर और गम अर्थात जिसे पार करना कठिन हो। कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी ने दुर्गम नाम के एक दैत्य का वध किया, जो देवताओं के लिए अजेय था, जिसके बाद देवी ने उसका पराजित कर उसे मार डाला, तब से देवी को दुर्गा कहा जाने लगा।
कैसे हुआ देवी का प्रादुर्भाव
पौराणिक कथाओं और दुर्गा शप्तशती के अनुसार माना जाता है देवी की उत्पत्ति भगवान श्रीहरि विष्णु के योगनिद्रा से हुई थी, जब ब्रम्हा जी ने मधू-कैटभ नाम के राक्षसों का वध करने लिए भगवान श्रीहरि विष्णु की स्तुति की, लेकिन भगवान विष्णु तो एक अव्यक्त शक्ति के प्रभाव के कारण योगनिद्रा में लीन थे, तब ब्रम्हदेव ने इन्हीं शक्ति की आराधना कर जगत पालक भगवान विष्णु को निद्रा से मुक्त करने की प्रार्थना की थी। तब देवी ने भगवान को निद्रा के प्रभाव से मुक्त कर दिया था, और उसके बाद श्रीहरि विष्णु ने लगभग 5 हजार वर्ष तक बाहुयुद्ध करके मधु-कैटभ का वध किया था, मान्यता है जो शक्ति भगवान विष्णु के अंगों से बाहर आईं थीं, वही देवी शक्ति थीं, जिन्होंने कालांतर में देवताओं की प्रार्थना पर समय-समय पर असुरों का वध किया, यही देवी दुर्गा, काली, चंडी और चामुंडा नाम से विख्यात हुईं।
महिषासुर वध
इन्हीं देवी शक्ति ने जो दुर्गम के वध के बाद दुर्गा के नाम से जानी गईं, बाद में समय-समय पर देवताओं के विनम्र निवेदन पर कई असुरों का वध किया। इन्हीं में से एक असुर था महिषासुर जो रंभ नाम के दानव का पुत्र था, उसे ब्रम्हा जी से असीम शक्तियां प्राप्त थीं, बल के घमंड में उसने समस्त देवताओं का राज और उनका अधिकार छीन लिया, तब समस्त देवता अपनी विनय लेकर ब्रम्हा जी के पास गए, ब्रम्हा जी समस्त देवताओं को लेकर विष्णु जी और शिव जी के पास पहुंचे, शिव जी और विष्णु जी के मुख से और समस्त देवताओं के शरीर से एक तेज पुंज निकला जिसने एकाकार मिलकर एक स्त्री का रूप का धारण कर लिया, बाद में समस्त देवताओं ने देवी को अपने अस्त्र-शस्त्र दिए, देवी ने जाकर महिषासुर को युद्ध के लिए ललकारा और उसके साथ कठिन युद्ध करते हुए, उसका वध उस अवस्था में किया जब वह आधा मनुष्य और आधा भैंसे के रूप में था। महिषासुर के वध के बाद देवी महिषासुरमर्दिनी के नाम से जानी गईं।
देवी पार्वती से दुर्गा और काली का प्रादुर्भाव
देवी ने अट्ठाईसवें मन्वंतर में उत्पन्न महापराक्रमी असुरों शुंभ और निशुंभ का भी वध किया, ये दोनों भाई भी ब्रम्हा जी का वरदान पाकर आतताई हो गए, इन्होंने भी समस्त जगत को त्रास देते हुए देवताओं का राज और अधिकार छीन उन्हें निर्वासित कर दिया। पाताल निवासी दो अत्यंत भंयकर असुर चंड और मुंड उनके सेनानायक थे। असुरों द्वारा परेशान होने के बाद देवताओं ने फिर देवी दुर्गा कि स्तुति की, तभी वहाँ देवी पार्वती गंगा स्नान के लिए जा रहीं थीं, देवताओं की करूण पुकार सुनकर उन्होंने पूछा आप लोग किसकी स्तुति कर रहे हैं, तभी उनके रोमकूपों से एक गौर वर्ण की स्त्री का प्रादुर्भाव हुआ, जो जगत में कौशिकी नाम से विख्यात हुईं। शरीर से गौर वर्ण की देवी के उत्पन्न होने के कारण देवी अत्यंत काल वर्ण की हो गईं, यही देवी काली नाम से विख्यात हुईं, जबकि गौरवर्ण की उत्पन्न शक्ति दुर्गा कहलाई।
शुंभ-निशुंभ का उनके सेनानायकों के साथ वध
देवी कौशकी के रूप का वर्णन चंड-मुंड ने अपने स्वामी शुंभ-निशुंभ से कहा, जिसके बाद उन दोनों असुरों ने धूम्रलोचन को देवी के पास विवाह प्रस्ताव के लिए भेजा, लेकिन देवी ने हुँ शब्द के उच्चारण मात्र से उस असुर का वध कर दिया। इससे क्रोधित हो शुंभ-निशुंभ ने अपने सेनानायकों चंड-मुंड को देवी को पकड़ने के लिए भेजा, लेकिन देवी काली ने उन दोनों असुरों का वध कर डाला, जिसके बाद वह चामुंडा नाम से विख्यात हुईं, इसी तरह देवी दुर्गा और उनकी शक्तियों ने मिलकर रक्तबीज सहित पूरी दानव सेना का वध कर डाला और अंत में दोनों असुर भाइयों शुंभ-निशुंभ का भी।
अन्य असुरों का वध
देवी माहात्म्य के अनुसार देवी ने भीम नाम के असुर का भी वध किया, जिसके बाद वह भीमादेवी नाम से विख्यात हुईं। वैप्रचित्त नाम के दानवों का भक्षण करने के कारण उनके दांत लाल अनार जैसे लाल हो गए थे, जिसके बाद वह रक्तदंतिका नाम से विख्यात हुईं। अरुण नाम के दैत्य का वध करने के लिए उन्होंने छः पैरों वाले भ्रमरों का रूप धरा था, जिसके बाद वह भ्रामरी कही गईं। कहते हैं एक बार 100 वर्षों तक पृथ्वी में वर्षा नहीं हुई, भारी अकाल पड़ा, जिसके बाद मुनियों के स्तवन के बाद उनके नेत्रों में करुणा आ गई, जिससे उनके आँसू पृथ्वी पर गिरे, जिससे विशेष प्रकार के शाक उत्पन्न हुए, जिससे समस्त जगत का भरण-पोषण हुआ और देवी शाकंभरी नाम से जानी जाती हैं।
देवी दुर्गा में हैं त्रिगुण शक्ति
माना जाता है देवी दुर्गा त्रिगुण स्वामिनी हैं, उनमें सतगुण, रजगुण और तमोगुण तीनों प्राप्त होते हैं, इसके बाद भी देवी को विकारों से रहित माना गया है। देवी के इन्हीं त्रिगुणों का प्रतीक त्रिदेवियाँ हैं। माना जाता है प्रकृति रूपी देवी के तीन रूप हैं महासरास्वती, महालक्ष्मी और महाकाली, यहीं तीनों क्रमशः सत, रज और तम की प्रतीक मानी जाती हैं।
कौन हैं नवदुर्गा
नवदुर्गा देवी दुर्गा के नौ रूप हैं, माना जाता है माता पार्वती के जीवन चक्र को ही नवदुर्गा का प्रतिनिधित्व माना जाता है। पुराणों के अनुसार शैलपुत्री, ब्रम्हचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री, यही नवदुर्गा मानी जाती हैं। लेकिन कुछ प्राचीन पुराणों और ग्रंथों के अनुसार चंडी, चामुंडा, ब्रम्हाणी, माहेश्वरी, वाराही, नृसिंही, नारायणी, कौमारी और ऐन्द्री, नवदुर्गा के नाम से जानी जाती हैं। माना जाता है शुम्भ-निशुम्भ और उनकी सेनाओं से लड़ने के लिए, देवी कौशिकी और काली के मदद के लिए आईं ब्रम्हा, विष्णु और शिव इत्यादि देवताओं की शक्तियाँ जो उन्हीं की तरह उन्हीं की तरह विभूषित और शक्ति संपन्न थीं, यह देवियाँ नवदुर्गा मानी गई हैं।
देवी दुर्गा के 32 नाम
ॐ दुर्गा, दुर्गतिशमनी, दुर्गाद्विनिवारिणी, दुर्गमच्छेदनी, दुर्गसाधिनी, दुर्गनाशिनी, दुर्गतोद्धारिणी, दुर्गनिहन्त्री दुर्गमापहा, दुर्गमज्ञानदा, दुर्गदैत्यलोकदवानला, दुर्गमा, दुर्गमालोका, दुर्गमात्मस्वरुपिणी, दुर्गमार्गप्रदा, दुर्गम विद्या, दुर्गमाश्रिता, दुर्गमज्ञान संस्थाना, दुर्गमध्यान भासिनी, दुर्गमोहा, दुर्गमगा, दुर्गमार्थस्वरुपिणी, दुर्गमासुर संहंत्रि, दुर्गमायुध धारिणी, दुर्गमांगी,
दुर्गमता, दुर्गम्या, दुर्गमेश्वरी, दुर्गभीमा, दुर्गभामा, दुर्गभा, दुर्गोतोद्धारिणी।