विधवा और निसंतान महिला की संपत्ति में किसका हक़? पढ़ें सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Who has rights in the property of a widow or childless woman: हिंदू विधवा और बिना संतान वाली महिलाओं की संपत्ति पर किसका अधिकार होगा ससुराल वालों का या मायके का? इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि शादी के बाद हिंदू परंपरा के अनुसार महिला का गोत्र बदल जाता है, इसलिए निसंतान विधवा की मौत के बाद उसकी संपत्ति उसके पति के परिवार को मिलेगी, न कि उसके माता-पिता को।

सुप्रीम कोर्ट हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 15(1)(बी) को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था। इस धारा के मुताबिक, बिना वसीयत के मरने वाली विधवा या निसंतान हिंदू महिला की संपत्ति उसके ससुराल वालों को हस्तांतरित हो जाती है।

कोर्ट में दो प्रमुख मामले सामने आए:

पहला मामला: एक दंपत्ति की कोविड-19 से मौत हो गई। दोनों की माताओं ने संपत्ति पर दावा किया। पुरुष की मां ने पूरी संपत्ति पर हक मांगा, जबकि महिला की मां ने अपनी बेटी की संचित संपत्ति पर अधिकार जताया।
दूसरा मामला: एक बिना संतान वाले दंपत्ति की मौत के बाद पुरुष की बहन ने संपत्ति पर दावा ठोका।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के कुछ प्रावधान महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण हैं। उन्होंने तर्क दिया कि केवल परंपराओं के आधार पर महिलाओं को समान उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। वहीं, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा कि यह अधिनियम सोच-समझकर बनाया गया है। याचिकाकर्ता सामाजिक ढांचे को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं।

कोर्ट ने क्या कहा?

बेंच में शामिल जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, “हिंदू समाज की संरचना को नीचा नहीं दिखाना चाहिए। महिलाओं के अधिकार और सामाजिक संरचना के बीच संतुलन जरूरी है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि शादी के बाद कन्यादान की परंपरा के तहत महिला का गोत्र बदल जाता है। विधवा महिला की जिम्मेदारी पति और ससुराल वालों की होती है। हालांकि, ऐसी महिला वसीयत बना सकती है या दोबारा शादी कर सकती है, लेकिन मायके से भरण-पोषण नहीं मांग सकती।

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के तहत बिना वसीयत के मरने वाली निसंतान विधवा की संपत्ति उसके पति के उत्तराधिकारियों को ही मिलेगी। मायके वालों का कोई हक नहीं। यह फैसला हिंदू समाज की परंपराओं को ध्यान में रखते हुए दिया गया है, जो महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक संरचना के बीच संतुलन बनाए रखता है

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