Nitish Kumar Oath Ceremony: बिहार में कई दिनों से चल रही राजनितिक भूचाल आखिरकार थम गई. नीतीश कुमार एक बार फिर एनडीए के साथ हाथ मिला चुके हैं. नीतीश अपने 17-18 साल के कार्यकाल के दौरान नौवीं बार मुख्यमंत्री की शपथ ले चुके हैं. ये भी अपने आप में एक इतिहास है.
Bihar Politics: बिहार में पिछले 4-5 दिनों में राजनितिक भूचाल में आखिरकार लगाम लग ही गई. नीतीश कुमार ने रविवार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद शाम तक फिर से शपथ ग्रहण कर लिया। INDIA गठबंधन के सूत्रधार रहे नितीश कुमार की NDA में वापसी ने न सिर्फ विपक्षी एकता को झटका दिया है बल्कि आगामी लोकसभा चुनाव में NDA की एकतरफा जीत की संभावनाओं को भी प्रबल कर दिया है.
बिहार में मौजूदा विधानसभा सीटों की बात करें तो यहां पर कुल 243 लोकसभा सीटें हैं और सरकार बनाने के लिए 122 सीटों के आंकड़े को पार करना होता है. मौजूदा आंकड़ों की बात करे तो जेडीयू अपने 45 और बीजेपी 78 विधायकों के साथ ये बहुमत के आंकड़ों को पार कर लेती जबकि एनडीए गठबंधन में ये आंकड़ा 128 तक पहुंच जाता है. वहीं आरजेडी, कांग्रेस का गठबंधन 114 तक ही पहुंच पाता है और बहुमत से पीछे छूट जाता है.
हम ये बात ऐसे ही नहीं कर रहे हैं बल्कि इसको लेकर जो आंकड़े हैं वो खुद इस बात की गवाही देते हैं. ऐसे में हम आपको यह बताने की कोशिश करेंगे की नीतीश कुमार को एनडीए में शामिल कराने के पीछे भारतीय जनता पार्टी का उदेश्य विपक्षी एकता को कमजोर करना नहीं था. बल्कि एक तीर से दो शिकार करना था हालांकि इस गठबंधन में फायदा बीजेपी से ज्यादा जेडीयू का है. कैसे आइये समझते हैं.
2019 में सिर्फ एक सीट जीत पाया था विपक्ष
2019 के लोकसभा चुनावों की बात करे तो बीजेपी,जेडीयू और लोक जनशक्ति पार्टी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. बीजेपी और जेडीयू ने प्रदेश की 17-17 सीटों पर तो वहीं लोक जनशक्ति पार्टी 6 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. तीनों पार्टियों ने 54.34 प्रतिशत सयुंक्त वोट शेयर के साथ 40 में से 39 सीटें अपने नाम की तो वहीं पर विपक्ष का सूपड़ा पूरी तरह साफ हो गया. आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन को भले ही 31.23 प्रतिशत वोट शेयर मिला लेकिन वो 19 में से एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई. कांग्रेस ने 9 सीटों पर चुनाव लड़ा और जेडीयू के खिलाफ एक सीट पर जीत हासिल की. यहां गौर करने वाली बात है कि बिहार में बीजेपी (24.06) जेडीयू (22.26) के बाद आरजेडी (15.68) के पास ही सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत थे.
2014 में दो सीटों पर सिमट गई थी जेडीयू
साल दो 2014 की बात करे तो जेडीयू NDA गठबंधन से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ा था. तब पार्टी ने 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. हालांकि मोदी लहार में 16.04 प्रतिशत वोट शेयर के बावजूद उसके खाते में सिर्फ 2 सीटें ही आई. वहीं बीजेपी, एलजीपी और अन्य पार्टियों के साथ मैदान में उतरे एनडीए गठबंधन ने 31 सीटें अपने नाम की तो वहीं आरजेडी- एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन के खाते में 30.24 प्रतिशत वोट शेयर होने के वाबजूद सिर्फ 7 सीटें ही आई.
2009 में बीजेपी-जेडीयू साथ थे तब 32 सीटें लगी थी हाथ
बात 2009 लोकसभा चुनावों की करें तो इस दौरान बीजेपी-जेडीयू गठबंधन में सबकुछ ठीक था और दोनों ने साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा। इन चुनावों में बीजेपी-जेडीयू गठबंधन ने 37.97 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 32 सीटें अपने नाम की। जहां जेडीयू ने जिन 25 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे उनमें से 20 सीटों पर जीत हासिल की तो वहां पर बीजेपी ने 15 में से 12 अपने नाम किए। कांग्रेस जो उस समय चुनाव जीतकर सत्ता में थी उसे बिहार में सिर्फ 2 ही सीटों पर जीत मिली जबकि उसने 37 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। आरजेडी-एलजेपी गठबंधन को 25.81 प्रतिशत वोट शेयर मिला लेकिन वो 4 सीटें अपने नाम कर सकी।
कैसा रहा कांग्रेस का प्रदर्शन
जहां भारतीय जनता पार्टी हर लोकसभा चुनाव में अपने प्रदर्शन में सुधार कर रही है, तो वहीं कांग्रेस 1984 के चुनावों के बाद से ही अहम रोल में नजर नहीं आई है. 1990 के चुनावों में जनता दल राज्य में मुख्य पार्टी की भूमिका निभा रही थी। तो वहीं पर 1999 में अलग हुई आरजेडी ने आगे ये भूमिका निभाई। 2003 यहां की सत्ता की चाबी लगातार 3 क्षेत्रीय पार्टियों के हाथ में ही नजर आती है.
जेडीयू को कैसे फायदा होगा
आंकड़े साफ बताते हैं कि नीतीश कुमार जब भी बीजेपी के साथ हाथ मिलाकर चुनाव लड़ते हैं तो उनकी पार्टी को जीत मिलती है। सिर्फ यही नहीं राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा में विपक्षी पार्टियों का शामिल न होना और उनके अनरगल बयान भी जेडीयू को नुकसान पहुंचा रहे थे। इतना ही नहीं इंडिया गठबंधन के लिए सभी पार्टियों को साथ लाने वाले नीतीश कुमार को न तो संयोजक का पद दिया गया और न ही उन्हें विपक्ष के पीएम पद का दावेदार बनाया गया। सीट शेयरिंग पर भी लगातार बनी अनिश्चितता से नीतीश कुमार को लोकसभा के साथ-साथ अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में भी भारी नुकसान होता नजर आ रहा था।इंडिया गठबंधन से नीतीश कुमार का निकल जाना न सिर्फ लोकसभा चुनावों में बल्कि बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिहाज से भी विपक्ष को भारी पड़ने वाला है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि तीर भले बीजेपी का था लेकिन दोहरा शिकार जेडीयू ने किया है।