Kaun Hain Aghori: अघोरी शब्द असल में संस्कृत के शब्द अघोर से निकला हुआ है. जिसका अर्थ है जो निडर हो. अघोरी साधु भगवान शिव को मोक्ष का मार्ग मानते हैं और उनकी गहन पूजा करते हैं। साथ ही शिव को सर्वज्ञ, सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान मानते हैं. अघोरी संप्रदाय 18वीं शताब्दी में हुए बाबा कीनाराम का अनुसरण करता है.
Who are Aghori: संगम तट पर महाकुंभ का इन दिनों जनसैलाब उमड़ रहा है। साथ ही पूरे विश्व से साधु संतों का जमावड़ा लगा हुआ है. आस्था के इस समागम कुंभ में सभी अखाड़ों के संतों के अलावा महामंडलेश्वर और अघोरी साधु भी शामिल हो रहे हैं. आज हम आपको अघोरी साधुओं की रहस्यमयी दुनिया के बारे में बताएंगे. क्योंकि इन्हें लेकर लोगों के बीच कई गलतफहमी और मान्यताएं हैं. साथ ही आम धारणा के अनुसार लोग इन अघोरी साधुओं को तांत्रिक मानते है जिससे कई बार आम इंसान इनके पास आने से भी डरते हैं. हम आपको (aghori kaun hain) अघोरी बनने की प्रक्रिया, इनका रहन सहन, इनके इष्ट देव और नागा साधु व इनके बीच के अंतर को बताएंगे.
अघोरी शब्द असल में संस्कृत के शब्द अघोर से निकला हुआ है. जिसका अर्थ है जो निडर हो. अघोरी साधु भगवान शिव को मोक्ष का मार्ग मानते हैं और उनकी गहन पूजा करते हैं। साथ ही शिव को सर्वज्ञ, सर्वव्यापी और सर्वशक्तिमान मानते हैं. अघोरी संप्रदाय 18वीं शताब्दी में हुए बाबा कीनाराम का अनुसरण करता है. उनके द्वारा किए गए कार्यों को अपनी परंपरा का हिस्सा मानता है. अघोरी को जन्म और मृत्यु के भय से परे माना जाता है और इसी कारण से वे श्मशान में भी रहते हैं. अघोरी शिव के उपासक माने जाते हैं और मुख्य रूप से कापालिक परंपरा का पालन करते हैं। इसीलिए कपाल यानी नरमुंड हमेशा उनके साथ रहते हैं. शिव के अलावा शक्ति स्वरूप माता काली को भी अघोरी उपासक मानते है. इसी कारण से वे अपने शरीर पर भस्म लपेटे रहते हैं, रुद्राक्ष की माला और नरमुंड भी उनकी वेशभूषा का हिस्सा हैं.
3 प्रकार कि साधना करते हैं अघोरी
“अघोरी: एन टोल्ड स्टोरी” नाम की किताब लिखने वाले मयूर कालबाग कहते हैं कि अघोरियों के बारे में धारणा है कि वे इंसानों का मांस खाते हैं, शराब पीते हैं और उन्हें तांत्रिक के रूप में दिखाया जाता है. लेकिन इसके पीछे की पूरी सच्चाई ये नहीं है. यह भी उनकी साधना का एक हिस्सा है. अघोरी की उत्पत्ति सबसे पहले काशी से हुई और तभी से वे देशभर के मंदिरों में फैल गए. अघोरी मुख्य रूप से तीन प्रकार की साधना करते हैं- पहली शव साधना, जिसमें मृत शरीर पर मांस और शराब चढ़ाया जाता है। दूसरी है शिव साधना, जिसमें शव के ऊपर एक पैर पर खड़े होकर भूत भावन भगवान शिव की साधना की जाती है. तीसरी है श्मशान साधना, जहां अघोरी अपनी साधना को सिद्ध करने के लिए हवन करते है. खास बात यह है कि अघोरी शव के मांस से लेकर जीवित रहने के लिए कुछ भी खा सकते हैं.
नागा साधु और अघोरी में मुख्य अंतर
Naga aur Aghori main Antar: कहा जाता है कि नागा धर्म के रक्षक और शास्त्रों में पारंगत होते हैं. जबकि अघोरी साधु केवल शिव की भक्ति में लीन रहते हैं. अघोरी और नागा (difference between naga sadhu and aghori) साधुओं के बीच एक बड़ा अंतर यह है कि नागा साधु ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं और जीवित रहते हुए ही अपना अंतिम संस्कार करते हैं. अघोरियों में ब्रह्मचर्य का पालन करने की कोई बाध्यता नहीं है. नागा साधु भिक्षा मांगकर अपना गुजारा करते हैं और जो भी मिलता है उसी में संतुष्ट रहते हैं. वहीं अघोरी शव से लेकर जीवित रहने के लिए कुछ भी खा सकते हैं.
अघोरी साधुओं का निवास स्थान
Where do Aghori Live: नेपाल के काठमांडू में स्थित (aghori kahan rahte hain) अघोर कुटी अघोरी साधुओं के प्राचीन स्थानों में से एक है. वहीं भारत में पश्चिम बंगाल के रामपुरहाट स्थित सिद्धपीठ कालीमठ और तारापीठ मंदिर को अघोरी साधुओं का प्रमुख स्थान कहा जाता है. इसी तरह यूपी का चित्रकूट, जहां भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था, जिन्होंने घर छोड़ दिया और मोक्ष की तलाश में अघोरी बन गए. अघोरी साधु उनके मंदिर के दर्शन के लिए चित्रकूट भी आते हैं.