Aatm Manthan :सबसे नाज़ुक धागा कौनसा होता है ! शायद वही जिसे खींचना और तोड़ना आजकल सबसे आसान हो गया है जी हाँ जिसकी तलाश में सबकुछ पाकर भी इन्सान भटकता रहता है पर हर बार परख-परख कर कहत है सच्चा प्यार नहीं मिला ! क्यों ये तड़प रह जाती है ज़्यादातर लोगों में। क्या सच में हम गुणीजनों की बात भूल गए हैं कि अगर प्रेम आत्मा से होता है तो इसकी परख भी आत्मा से होनी चाहिए, जिसमें बाहरी रूप रंग सब फीके पड़ जाएँ और प्रेम का रंग सबसे गहरा चढ़े।
कितना नाज़ुक होता है ये धागा :-
इसके नाज़ुकपन की बात रहीम दास जी ने बड़े प्यार से हमें समझाई है कहते हैं -“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय। टूटे से फिर न मिले, मिले गाँठ परिजाय॥” यानी प्रेम का रिश्ता बहुत नाज़ुक होता है। इसे झटके से तोड़ना यानी ख़त्म करना ठीक नहीं होता क्योंकि प्रेम का बंधन एक बार टूट जाता है तो फिर इसे जोड़ना बहोत मुश्किल होता है और यदि जुड़ भी जाए तो टूटे हुए धागों या रिश्तों के बीच में गाँठ पड़ जाती है।
गाँठ सुलझती क्यों नहीं :-
अगर हम ग़ौर से सोचें तो हम रिश्तों को परखने के चक्कर में ही उन रिश्तों में दूरी पैदा कर लेते हैं जो हमें बहोत अज़ीज़ होते हैं और जिनमें दरार पड़ने से हमें तकलीफ भी बहोत होती हैं इसके बावजूद दूसरी तरफ ये भी सच है कि अगर हम बाद में पछताएँ भी या इनमें पड़ी गाँठ खोलने की कोशिश भी करें तो पूरी उम्र बीत जाती है पर रिश्ता पहले सा नहीं हो पाता।
प्रेम की उत्पत्ति :-
इसलिए किसी भी रिश्ते को ,उसके प्रेम के धागे को ज़ोर से खींचना यानी ज़बरदस्ती अपने मुताबिक ढालना नहीं चाहिए क्योंकि प्रेम त्याग और समर्पण से ही पनपता है और वो ज़बरदस्ती किसी से नहीं कराया जा सकता वो जब भी होगा किसी के अंतर्मन की भावना में ही विकसित होता है और उसके लिए पहले आपको किसी के मन में उतरना होगा उसे अपने प्रेम से प्रभावित करना होगा।
क्या करें प्रेम पाने के लिए :-
किसी से प्यार की चाहत रखने से पहले आप उसे प्रेम करें ,उसके दिल में अपनी जगह बनाएँ तब उससे प्रेम की उम्मीद करें। उसका सम्मान करें जो आप से प्रेम करता है, क्योंकि अगर उसके रिश्ते की कोई कसौटी है तो आपके रिश्ते की भी कसौटी होगी जिस पर आपको भी खरे उतरना होगा। उस अपने की नज़रों में जिसे आप परख रहे हैं। याद रखें, सख़्ती से रिश्ते ख़त्म होते हैं बनते नहीं हैं। प्यार के बंधन बाँधने के लिए होते हैं, झटक कर तोड़ देने के लिए नहीं ,इसमें अनमोल प्रेम का ,आत्मीयता का सुख होता है। ग़ौर ज़रूर करियेगा इस बात पर फिर मिलेंगे आत्म-मंथन की अगली कड़ी में ,धन्यवाद।
