नेहरू ये गलती न करते तो भारत का राज्य होता नेपाल

नेपाल ने भारत से विलय का प्रस्ताव कब दिया था/When did Nepal propose to merge with India: भारत की आजादी के बाद नेपाल द्वारा भारत में विलय का प्रस्ताव (Did Nehru Rejected India Nepal Merger Proposal)और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा इसे अस्वीकार करना एक ऐसी ऐतिहासिक भूल मानी जाती है, जिसने भारत की भू-राजनीतिक और रणनीतिक स्थिति को कमजोर किया। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की आत्मकथा The Presidential Years, आरएसएस प्रमुख के.एस. सुंदरशन, वरिष्ठ भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, और Shodhganga थीसिस जैसे स्रोतों के आधार पर यह दावा किया जाता है कि नेपाल ने भारत में शामिल होने का ऑफर दिया था, लेकिन नेहरू ने इसे ठुकराकर (Nehru rejected the merger of Nepal) भारत को दीर्घकालिक नुकसान पहुंचाया।

नेपाल ने भारत के साथ विलय का प्रस्ताव कब दिया था

When did Nepal propose to merge with India: 1950-51 में, जब नेपाल में राणा शासन (Rana Regime) का पतन हुआ, राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह ने भारत की मदद से सत्ता हासिल की। प्रणब मुखर्जी की आत्मकथा के अनुसार, राजा त्रिभुवन (Raja Tribhuvan) ने नेहरू को नेपाल को भारत का प्रांत (Province) बनाने का सुझाव दिया। इसी तरह, के.एस. सुंदरशन ने 2008 में दावा किया कि 1947 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोहन शमशेर राणा या मातृका प्रसाद कोइराला ने विलय का प्रस्ताव रखा। सुब्रमण्यम स्वामी ने 2020 में ट्वीट कर कहा कि 1950 में राणा शासकों ने यह ऑफर दिया था। Shodhganga थीसिस में भी राजा त्रिभुवन की भारत के साथ निकट एकीकरण (India Nepal Unification) की इच्छा का जिक्र है।

नेपाल भारत का राज्य क्यों बनना चाहता था?

Why did Nepal want to become a state of India: राणा शासन के पतन के बाद नेपाल में अराजकता थी। भारत ने राजा त्रिभुवन को समर्थन दिया, जिससे नेपाल भारत पर निर्भर हो गया। 1949 में चीन की कम्युनिस्ट क्रांति और 1950 में तिब्बत पर कब्जे (Tibet Annexation) ने नेपाल को असुरक्षित किया। भारत के साथ विलय को सुरक्षा के रूप में देखा गया। पाल की आर्थिक स्थिति कमजोर थी। भारत के साथ एकीकरण से स्थिरता की उम्मीद थी।

नेहरू ने नेपाल विलय का प्रस्ताव क्यों ठुकराया

Why did Nehru reject the proposal to merge Nepal: नेहरू का यह निर्णय उनकी सबसे बड़ी भूल (Mistake) माना जाता है। उनके पास नेपाल को भारत का हिस्सा बनाने का सुनहरा अवसर था, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया। नेहरू भारत को साम्राज्यवादी नहीं दिखाना चाहते थे। लेकिन यह निर्णय भारत की रणनीतिक ताकत को कमजोर करने वाला साबित हुआ। नेहरू की गुट-निरपेक्षता की नीति ने उन्हें नेपाल जैसे स्वतंत्र राष्ट्र की संप्रभुता का सम्मान करने के लिए प्रेरित किया, लेकिन यह भारत के लिए नुकसानदायक रहा. नेहरू को लगा कि नेपाल का विलय भारत में रियासतों के एकीकरण की प्रक्रिया को जटिल कर सकता था।

अगर नेपाल भारत का हिस्सा होता तो क्या होता?

What would happen if Nepal was a part of India: नेपाल के हिमालयी क्षेत्र (Himalayan Region) भारत को चीन के खिलाफ मजबूत रणनीतिक स्थिति देते। वर्तमान में नेपाल में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए सिरदर्द है। नेपाल के जल संसाधन और पर्यटन स्थल भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करते। कालापानी और लिपुलेख जैसे विवाद (Kalapani Dispute) नहीं होते। लेकिन, सांस्कृतिक और भाषाई विविधता के कारण कुछ चुनौतियां भी हो सकती थीं। फिर भी, नेपाल का विलय भारत को क्षेत्रीय महाशक्ति बनाने में मदद करता।

नेहरू का नेपाल के विलय प्रस्ताव को ठुकराना एक ऐतिहासिक भूल (Historic Blunders Of Nehru) थी, जिसने भारत को रणनीतिक और आर्थिक रूप से कमजोर किया। प्रणब मुखर्जी, के.एस. सुंदरशन, और सुब्रमण्यम स्वामी जैसे दिग्गजों के दावे इसकी गंभीरता को दर्शाते हैं। यदि नेहरू ने यह प्रस्ताव स्वीकार किया होता, तो भारत आज और मजबूत स्थिति में होता। हालांकि, इस प्रस्ताव के लिखित ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *