जब कलकत्ता की जगह दिल्ली देश की राजधानी बनी

दिल्ली हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों के कारण चर्चित हुई, दिल्ली जो एक राज्य है, दिल्ली या यों कहें नई दिल्ली, भारत देश की भी राजधानी है, आज ही नहीं बल्कि अतीत में भी दिल्ली कई साम्राज्यों की राजधानी रहा है, लेकिन शासन के प्रारंभिक दौर में अंग्रेजों की सत्ता का केंद्र सुदूर पूर्व में स्थित कलकत्ता था, लेकिन कई लोगों का यह विचार था, ब्रिटीशर्स द्वारा शासित भारत की राजधानी दिल्ली ही होनी चाहिए थी। इतिहासकार मानते हैं इतिहास में दिल्ली कई बार बसी और उजड़ी, जो दिल्ली अंग्रेजों ने आबाद की वह 7वां शहर था।

किंग जॉर्ज पंचम ने दिल्ली दरबार में की घोषणा

वर्ष 1911 के प्रारंभिक महीने में ही 22 मार्च को एक राजज्ञा जारी की गई कि, इसी वर्ष दिसंबर के महीने में, दिल्ली दरबार आयोजित किया जाएगा, ताकि कुछ समय पहले ही ब्रिटेन के राजा बने जॉर्ज पंचम को भारत का सम्राट घोषित किया जा सके। किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी 11 नवंबर को पोर्ट्समाउथ से आरएमएस मैडिना में सवार होकर भारत की तरफ चले। कई राज्यों से गुजरते हुए 7 दिसंबर को राजदंपत्ति ने दिल्ली में भव्य प्रवेश किया। इस बार का दिल्ली दरबार कुछ खास होने वाला था, क्योंकि भारतीय साम्राज्य की राजधानी बदलने की योजना बनाई जा रही थी।

जब कलकत्ता की जगह दिल्ली देश की राजधानी बनी

पहले भी 1905 में लॉर्ड कर्ज़न ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखकर दिल्ली राजधानी स्थानांतरित करने की मांग कर चुके थे, अंततः 12 दिसंबर 1911 को, भारत के सम्राट बने लॉर्ड कर्ज़न ने लगभग एक लाख लोगों के समक्ष साम्राज्य की राजधानी कलकत्ता की जगह दिल्ली को बनाए जाने का एलान किया।

अंग्रेज दिल्ली को राजधानी क्यों बनाना चाहते थे

कलकत्ता की जगह दिल्ली को राजधानी बनाने के पीछे दो बड़ी वजहें थीं, पहली थी बंगाल का विभाजन, दरसल 1905 में भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड कर्ज़न ने धर्म के आधार पर बंगाल का विभाजन किया था, जिसका बंगाल में खासा विरोध हुआ, जिसके कारण कई आंदोलन, हिंसा, उत्पात और आगजनी की घटनाएँ हुईं, इसके अलावा देश भर में स्वराज की मांग भी होने लगी, अंग्रेज और ईस्ट कंपनी बंगाल से मजबूत होकर पूरे देश को अपना राज कायम किया था, और बंगाल में ही उनकी जड़ें कमजोर हो रहीं थीं। दूसरा प्रमुख कारण था कलकत्ता भारत के पूर्वी कोने में था, जबकि दिल्ली देश के मध्य में थी, जिसके कारण साम्राज्य को सुचारु ढंग से चलाया जा सकता था, इसके अलावा दिल्ली का प्रतीकात्मक महत्व भी था, अतीत में भी कई बार दिल्ली कई बड़े साम्राज्यों की राजधानी थी।

जब हुई नई दिल्ली की स्थापना

अब दिल्ली को राजधानी बनाने की घोषणा तो कर दी गई, लेकिन दिल्ली में अब कुछ बचा था नहीं, मुग़लों द्वारा बनाई गई राजधानी शाहजहाँनाबाद भी 1857 की क्रांति के बाद बर्बाद हो चुका था, और इसके अलावा तत्कालीन समय के जरूरत के अनुसार उसमें संरचनाएँ भी नहीं थीं, इसीलिए इसको आधुनिक ढंग डिजाइन करवाने का जिम्मा दिया गया एडवर्ड लुटीयंस और हर्बट बेकर को, इन दोनों ने शाहजहाँनाबाद के दक्षिणी क्षेत्र के मैदानी इलाकों को चुना। उस समय भारत के गवर्नर जनरल रहे लॉर्ड हार्डिंग, दिल्ली को केवल चार साल के अंदर आबाद करवाना चाहते थे, लेकिन तभी प्रथम विश्वयुद्ध छिड़ गया, जिसके कारण इसका इसका काम पिछड़ता ही रहा, अंततः 10 फरवरी 1931 को तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन ने इसका विधिवत उद्घाटन किया।

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