Best Age for Marriage: ये सवाल युवाओं में बड़ा कॉमन है कि शादी कब करोगे लेकिन युवा असमंजस में तब पड़ जाते हैं, जब उन्हें ज़माने के चलन के हिसाब से कभी जल्दी शादी करनी होती है या कभी उस वक़्त नहीं करनी होती जब दुनिया वाले कहते हैं पर क्या आप जानते हैं ,इन सब बातों के बावजूद शादी कब करनी चाहिए? क्या शादी के लिए 25 या 30 साल की उम्र सही है? शादी करनी भी चाहिए या नहीं ? तो आइये आज शादी से जुड़े इन्हीं मसलों को सुलझाने की कोशिश करते हैं।
पुरुषों और महिलाओं के लिए आदर्श उम्र क्या होनी चाहिए ? शादी के लिए किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इन सब सवालों के जवाब जानने से पहले ये समझना ज़रूरी है कि अमूमन 25 साल के बाद हमारे यहाँ शादी का ज़िक्र शुरू हो जाता है। जिससे कभी-कभी हम खुश भी हो जाते हैं तो कभी हममें से कुछ झुंझला भी जाते हैं कि अभी हमारी उम्र ही क्या है कर लेगें जब मन करेगा। लेकिन बहोत बहस के बाद भी सबके अपने रीज़न होते हैं शादी अलग-अलग वक़्त पर करने और न करने पे भी।
शादी क्यों है ज़रूरी :-
जी हाँ कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो शादी करना ही नहीं चाहते इसके लिए भी सबके पास अपनी-अपनी अलग वजह होती हैं लेकिन शादी करना ज़रूरी इसलिए है क्योंकि हमें एक मेंटली सपोर्ट मिलता है एक साथी बना लेने से। वो भी जब पूरे समाज के सामने हम किसी को अपना कहते हैं तो एक अलग ही संतुष्टि मिलती है दोनों पार्ट्नर्स को, जिससे हम पूरे अधिकार के साथ सुख- दुख तो बाँटते ही हैं। अपना एक संसार भी बनाते हैं ,जिससे हमारे न रहने पर भी हमारा अस्तित्व इस जहाँ में बना रहता है ,हमारा कोई नाम लेवा रहता है।
सही उम्र से ज़्यादा भी क्या कुछ है ज़रूरी :-
जब हम अपना एक साथी चुनते हैं तो उसके प्रति भी हमारे कुछ दायित्व बन जाते हैं और उन्हें पूरा करना हमारा कर्तव्य या फ़र्ज़ होता है इसलिए हम कह सकते हैं कि शादी के लिए परफेक्ट उम्र से ज़्यादा हमारी तैयारी होना ज़रूरी हैं ,वो तैयारी जिसमें हम किसी को सहारा देने के क़ाबिल हो जाएँ, अपने साथ किसी और का भी ख्याल रख सकें और ये तभी होगा जब हम मानसिक और शारीरिक रूप से तो सक्षम हों हीं साथ ही आर्थिक ज़िम्मेदारी उठाने के लिए भी किसी एक पर इस तरह न निर्भर हो जाएँ कि अगर कभी वो कमज़ोर पड़ जाए तो हमारी अर्थव्यवस्था ही चरमरा जाए।
फिर क्यों एक उम्र निर्धारित है शादी की:-
कुछ वैज्ञानिक, सामाजिक और मानसिक कारणों की वजह से हम कहते हैं कि शादी की एक उम्र होती है इसलिए शादी में जल्दबाज़ी या देरी दोनों ठीक नहीं। क्योंकि दोनों में हम ज़िम्मेदारी उठाने के क़ाबिल नहीं होते जल्दी में झुंझला जाते हैं और देरी में थक जाते हैं। सही समय पर शादी करने से फैमिली प्लानिंग आसान हो जाती है और आगे चलकर संतान सुख भी हमें आसानी से प्राप्त होता है यानी परेशानी कम होती है। बच्चों की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए भी हम शारीरिक रूप से सक्षम होते हैं। उनका पालन पोषण करने में हमें परेशानी नहीं बल्कि सुख और आनंद की अनुभूति होती है।
महिला और पुरुष के लिए अलग -अलग उम्र क्यों निर्धारित :-
क़ानूनी तौर पर भी महिलाओं और पुरुषों के लिए शादी की उम्र अलग-अलग तय की गई है,जो लड़कियों के लिए 18 साल और लड़कों के लिए 21 साल है, क्योंकि इस उम्र में शरीर स्वस्थ और फिट रहता है और फर्टिलिटी यानी बच्चा पैदा करने की क्षमता की संभावना सबसे अच्छी होती है। लड़कियों की शादी सही उम्र में हो तो गर्भावस्था के दौरान जटिलताएं (कॉम्प्लिकेशन) भी कम होती हैं। इस उम्र से शादी के दायरे में आने के बाद भी लड़की ,लड़के से 3 – 4 साल छोटी हो तो अच्छा माना जाता है क्योंकि वो लड़कों के मुक़ाबले ज़्यादा संवेदनशील होती हैं और शारीरिक संरचना जैसे – पीरियड्स (मासिक धर्म) की वजह से भी कमज़ोर पड़ जाती हैं । ज़्यादा उम्र की महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान जटिलताएँ होने की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं या ज़्यादा उम्र हुई तो मेनोपॉज (Menopause) के लक्षण भी दिखने लगते हैं।
क्या करें अगर देर से शादी करनी ही पड़े :-
इन सब तथ्यों के बाद भी अगर किसी को 35 के बाद शादी करनी हो तो सावधानी बरतना ज़रूरी है। समय रहते संतान सुख के लिए एग या स्पर्म फ्रीजिंग जैसी तकनीकों का इस्तेमाल कर लेना चाहिए जिससे आगे चलकर परेशानियों से बचा जा सके इसके अलावा फर्टिलिटी में आने वाली गिरावट से निपटने में मदद मिले और IVF जैसी प्रजनन तकनीकों से माता-पिता बनने का सुख प्राप्त करने का विकल्प खुला रहे।
शादी से सुख मिलता है या दुख :-
“प्यार” नाम का सुरूर अक्सर तयशुदा उम्र में ही चढ़ता है जो प्यार मिल जाने पे सुख देता है क्योंकि इस वक़्त औरत या आदमी दोनों की फिटनेस अच्छी होती है। फीलिंग्स भी क़रीब -क़रीब सेम होती हैं इसलिए ये “प्यार” इंसानी जज़्बातों का समुन्दर बनके हमारी ज़रूरत में शामिल हो जाता है पर ये प्रेम का बंधन बाँध लेना आसान भी नहीं होता सबके लिए, इसमें त्याग और समर्पण के बाद ही सुख मिलता है इसलिए हम कह सकते हैं कि सुख पाने के लिए सही उम्र का होना तो ज़रूरी है।
“शादी का लड्डू जो खाए वो भी पछताए जो न खाए वो भी पछताए।”
बाल विवाह का विरोध करते -करते अब हम शादी की सही उम्र से भी आगे बढ़ते जा रहे हैं पर सही वक़्त पर शादी का फैसला नहीं कर पा रहे हैं जो बेहद ज़रूरी है इसलिए पूरी कोशिश करना चाहिए कि हम शादी की सही उम्र तक खुद को इस क़ाबिल बना सकें कि शादी के लिए ज़रूरी सभी कसौटियों पर खरे उतर सकें ,समझौता करना भी पड़े तो वहाँ करें जहाँ हमें कम नुकसान पहुँचे या उस नुकसान की भरपाई हो सके, हम बेबस या कमज़ोर न महसूस करें। इसी में समझदारी है क्योंकि उम्र निकल जाने के बाद प्यार नाम का पंछी कहीं खो जाता है और और हम उसे ढूढ़ते हुए भटकने लगते हैं फिर शारीरिक ज़रूरतें उस पर हावी हो जाती हैं और बुढ़ापा आते देर नहीं लगती और जब तक हम शारीरिक कष्टों से भी घिर जाते हैं इसलिए कहावत भी बनी है “शादी का लड्डू जो खाए वो भी पछताए जो न खाए वो भी पछताए।” सारा सुख और सही उम्र का ही खेल है इसलिए शादी तब करें जब ये आपको बोझ न लगे ,हम अपने साथी को सुख दें और उससे सुख प्राप्त कर सकें। अपना दाम्पत्य जीवन आनंदमय व्यतीत कर सकें।
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