जो क़िस्मत को था मंज़ूर…

RA (1)

Hindi Story :बड़े अरमान थे मेरे ज़िंदगी को लेकर ऐसा करुँगी वैसा करुँगी अभी ये ख़्वाब आँखों में पल ही रहे थे कि विवेक का रिश्ता मेरे लिए आया और सबने बिना सोचे समझे मेरी शादी के लिए हाँ कर दी शायद इसलिए कि मै ज़रा साँवली थी और मेरे घर वालों को लगता था कि मुझे कोई अच्छा लड़का नहीं मिलेगा इसलिए जहां से रिश्ता आया उन्होंने फ़ौरन हाँ करदी मैंने भी कुछ न नुकुर नहीं की और हमारी शादी हो गई। मैंने सोचा था मै अपना कोई बिज़नेस करुँगी और विवेक तो प्राइवेट नौकरी में है तो उसे दिक्कत नहीं होगी लेकिन मैंने शादी के कुछ वक़्त बाद जब अपना ड्रेस डिज़ाइनिंग का बिज़नेस शुरू करने को कहा तो विवेक ने मुझे कहा क्या करोगी बिज़नेस कर के, मै इतना तो कमा ही लेता हूँ कि घर गृहस्थी अच्छे से चल जाए पर मैंने उसे कहा कि ठीक है ,थोड़े पैसे मै भी कमा लूँगी तो उससे और अच्छे से चलेगी बल्कि दौड़ेगी तो वो मना नहीं कर पाया और मैंने घर से ही बिज़नेस शुरू कर दिया।

वक़्त बीतने के साथ ही मेरे बिज़नेस ने ज़ोर पकड़ लिया और मै पहले से ज़्यादा बिज़ी हो गई, एक दिन विवेक ने मुझ पर इलज़ाम लगाया कि तुम घर पर ध्यान नहीं दे रही हो मै कुछ दिनों से रोज़ ठंडा खाना खा रहा हूँ। ‘मैंने चुप होके अपनी ग़लती मान ली और कहा अब तुम्हें शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।

अगले दिन मैंने अपने घर से लगी शॉप पर जाने से पहले विवेक को खाना परोस दिया ,थोड़ी देर घर में रुक भी गई कि विवेक ऑफिस चला जाए फिर मै शॉप के लिए निकलूं लेकिन विवेक तो ऑफिस के लिए तैयार ही नहीं हुआ और जाके आराम करने लगा मैंने पूछा क्या हुआ ऑफिस नहीं जाओगे तो बोला मैंने पिछले महीने ही ऑफिस छोड़ दिया अब तुम कमा तो रही हो क्या ज़रूरत है और पैसों की ,मैंने कहा ये क्या बात होती है आख़िर घर में रहकर क्या करोगे तो कहने लगा मै भी अपना बिज़नेस करूँगा ,मैंने कहा. . .अच्छी बात है बताओ क्या करना चाहते हो तो विवेक ने कहा, मैंने अपनी ऑनलाइन साइट बनाई है बस उसके रजिस्ट्रेशन वगैरह में कुछ ज़्यादा पैसे लगेंगे तुम दे देना मैंने कहा ठीक है दे दूँगी।

इतना कहके मै अपनी शॉप चली गई फिर धीरे – धीरे विवेक मुझसे आए दिन पैसे माँगने लगा ये सिलसिला तब तक नहीं रुका जब तक मेरी पूरी, जमा पूँजी ख़त्म नहीं हो गई, एक दिन मैंने विवेक को झुंझलाते हुए कहा. . अब मेरे पास और पैसे नहीं हैं मैंने तुमसे तो कभी अपने लिए पैसे नहीं माँगे पर तुमने तो मेरी मेहनत से कमाई एक एक पाई ख़त्म करदी, तो विवेक मुझपर खूब चिल्लाने लगा मानो उसने नहीं मैंने उसका नुकसान कर दिया हो।

उस दिन मेरा मूड बहोत ऑफ था इसलिए मै शॉप पर भी नहीं गई फोन पर वर्कर्स को काम समझाया फिर एक कप चाय बनाकर लाई और सोफे पर बैठ गई सोचा आज घर की सफाई ही कर लेती हूँ, विवेक भी नाराज़ होके जाने कहाँ चला गया था चाय पीकर जब सफाई करने में लगी तो मुझे जाने किस लड़की के कपड़े एक कोने में रखे दिखे ये माजरा समझते मुझे देर नहीं लगी कि विवेक मेरी पीठ पीछे रंगरलियाँ मना रहा था फिर मैंने उसकी बताई कम्पनी को उसके ही लैपटॉप पर सर्च किया तो वो मुझे कहीं नहीं मिली न उसका कोई काम दिखा ,दिखी तो सिर्फ लड़कियों से की गई वो चैटिंग्स जिसे देखकर मुझे यक़ीन हो गया कि विवेक ने सिर्फ मेरा फायदा उठाया है। बस उसी पल मैंने विवेक से अलग होने का फैसला कर लिया उसे फोन करके बता भी दिया कि मै जा रही हूँ और तलाक़ का नोटिस भेजवा दूँगी।

ख़ैर विवेक ने कभी नहीं माना कि उसने कुछ ग़लत किया है और मुझे उसकी सफाई की कोई ज़रूरत थी भी नहीं इसलिए मैंने अपना बिज़नेस दूसरे शहर में शिफ़्ट कर लिया और कुछ ही दिनों में वहाँ भी मेरा बिज़नेज़ चल निकला , शायद इसलिए कि मेरा काम अच्छा था लोगों को पसंद आता था।

साल बीतते गए और ऐसे ही एक दिन एक लड़का अपनी ऑर्डर की हुई ड्रेस लेने आया तो मैंने उसकी ड्रेस पैक करवाके उसे दिलवा दी पर थोड़ी देर में वो फिर लौट आया और कहने लगा आपने शायद मुझे ग़लत ड्रेस दे दी है तो मैंने रीचेक किया और सच में ग़लती मेरी थी क्योंकि दो कस्टमर का नाम संध्या था पर सरनेम अलग -अलग थे, जिस पर हम ध्यान नहीं दे पाए , मैंने उन्हें सॉरी कहा और फिर उनका सही ड्रेस दिया पर इस बार वो अकेला नहीं था ,एक लड़की भी उसके पीछे खड़ी मुस्कुरा रही थी मैंने उसे ग़ौर से देखा तो वो मेरी बचपन की सहेली संध्या थी और मुझे पहचान कर ही मुस्कुरा रही थी फिर वो मेरे पास आई हैलो कहा और फिर हम बातों में लग गए तो वो लड़का फिर हमारे पास आया और संध्या से कहा संध्या हम लेट हो रहे हैं ‘ संध्या ने हँसके कहा “हाँ भइया हम तो बस बचपन की यादों में खो गए थे इनसे मिलिए ये मेरी बचपन की सहेली अनन्या है और अनन्या ये मेरे जेठ जी हैं पर अनमैरिड हैं ,इन्होंने मुझे जेठानी का सुख नहीं दिया क्योंकि आज तक इनको कोई लड़की नहीं पसंद आई “मैंने भी उनसे नमस्ते किया और संध्या जाने लगी तो अपनी नन्द की शादी का कार्ड देते हुए बोली शादी पे आना अभी मुझे तुमसे बहोत सारी बातें करनी हैं , मैंने भी कह दिया हाँ आऊँगी पर मेरा कुछ ख़ास मन नहीं था फिर शादी वाले दिन उसने मुझे दो बार फ़ोन करके कहा कि मुझे आना ही है किसी भी हाल में, तो मैंने भी बिना मन के वादा कर लिया आने का शाम को पहुँची तो काफी तैयारियाँ बाक़ी थीं , मै भी संध्या का हाँथ बटाने में लग गई घर के सब लोगों से मिली उसके जेठ अभिषेक जी तो मुझे पहचानते ही थे फिर रात में वो मुझे घर भी छोड़ने आये।

इसके बाद से अक्सर संध्या मुझे घर बुलाती और मै कभी कभार चली भी जाती नहीं तो वो मेरे घर आ जाती ,मैंने उससे कुछ नहीं छुपाया था, हमारी बचपन की दोस्ती आज भी पहले जैसी ही गहरी थी ,एक दिन उसने कहा अनन्या अब तो विवेक को छोड़े हुए तुझे काफी वक़्त हो गया, दूसरी शादी कर ले अंकल,-आंटी भी इस दुनिया में नहीं हैं, कैसे गुज़रेगी इतनी लम्बी ज़िंदगी ,मैंने हँसकर कहा. .. अरे जैसे इतनी गुज़र गई आगे भी गुज़र ही जाएगी तू चिंता न कर तो वो कहने लगी सुन अभिषेक भइया तेरी बहोत तारीफ करते हैं ,मुझे लगता है, तुझे दिल ही दिल में पसंद भी करते हैं, तू कहे तो मै उनसे बात कऊँ ,ये सुनकर मैंने कहा अरे पगली तुझे तो ऐसे ही शक हो रहा है “वो भला मुझ जैसी लड़की को क्यों पसंद करेंगे ” तो कहने लगी ठीक है जब मुझे यक़ीन हो जाएगा तो मै अब तुझसे इजाज़त लेने नहीं आऊँगी बस भइया को ही डायरेक्ट तेरे पास भेज दूँगी तुझे जैसा ठीक लगे तू करना।

कुछ दिन बाद अभिषेक जी मेरे पास आये और मुझे प्रपोज़ किया, मुझे लगा मै कोई सपना देख रही हूँ लेकिन ये सच था और मैंने बड़ा झिझकते हुए पूछा अभिषेक जी आप मेरे अतीत के बारे में नहीं जानते तो वो बोले मै जितना भी जानता हूँ वो बहोत है इसके आगे मुझे कुछ जानना भी नहीं है ,बस आप ये बता दीजिये कि मै आपके क़ाबिल हूँ कि नहीं ये सुनकर मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े और मैंने शादी के लिए हाँ कर दी। आज हमारी शादी को एक साल हो गए हैं और मै बहोत खुश हूँ अभिषेक के साथ पर ये सोच रहीं हूँ कि क्या अभिषेक को मेरा ही इंतज़ार था जो उसे इतने साल तक कोई लड़की नहीं पसंद आई थी और मुझमें अगर कुछ अच्छा था तो विवेक ने क्यों मेरी क़द्र नहीं की।

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