प्रदेश की सभी 29 सीट नहीं जीत पाए मोहन तो क्या होगा?

What will happen if Mohan does not win all the 29 seats in the state?

MP Lok Sabha Chunav 2024: सूबे की सभी 29 लोकसभा सीटों पर मतदान हो चूका है. चुनावी मैदान में उतरे प्रत्याशी परिणाम के तारीख की बड़ी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं. खैर 4 जून को प्रदेश के दो नए नेतृत्व की अग्नि परीक्षा होगी। उनका राजनीतिक भविष्य लिखा जाएगा। अब तक आप समझ ही गए होंगे की हम बात मुख्यमंत्री मोहन यादव और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी की कर रहे हैं.

MP Political News: चतुर शिवराज विधानसभा चुनाव के परिणाम के दिन ही छिंदवाड़ा पहुंचे और प्रदेश की सभी 29 सीटों को जीतकर मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने का एलान कर दिया। राजनितिक पंडितों की माने तो शिवराज (EX CM Shiv Raj Singh Chauhan) को अंदाजा हो गया था कि मुख्यमंत्री की मेरी कुर्सी अब जाने वाली है. तब शिवराज ने 29 फूलों की माला का बयान देकर नए नेतृत्व के सामने प्रदेश की सभी सीटों को जितने की चुनौती पेश कर दी. ऐसे में प्रदेश की सभी सीटों को जीताने की जिम्मेदारी नए नवेले मुख्यमंत्री मोहन यादव के कंधो पर आ गई. 2019 लोकसभा चुनाव के परिणाम के मुकाबले अगर एक भी सीट बीजेपी की कम होती है तो वह मोहन यादव प्रदेश नेतृत्व की व्यक्तिगत हार मानी जाएगी। राजनीतिक जानकारों की माने तो ये परिणाम सीएम के राजनीतिक भविष्य पर भी बाधा बन सकता है.

Mohan Yadav And Jitu Patwari: वहीं कांग्रेस की बात करें तो विधानसभा चुनाव 2023 में करारी हर के बाद प्रदेश की कमान जीतू पटवारी के हाथों में थमा दी गई, हालांकि जीतू राऊ से विधायकी का चुनाव हार गए थे. जीतू इन दिनों प्रदेश कांग्रेस के चश्मों चिराग है. पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट जीत पाई थी. ऐसे में अगर इस चुनाव में कांग्रेस दो, चार सीटें भी ज्यादा लती है. तब पटवारी अपने आप को प्रदेश की राजनीति में स्थापित करने में सफल हो जाएंगे। और अगर परिणाम वही पुराना आता है तो जीतू पटवारी के राजनीतिक हैसियत पर इसका सीधा असर पड़ेगा। कुलमिलाकर प्रदेश के दो नए नेतृत्व मोहन यादव और जीतू पटवारी की अग्नि परीक्षा है. जीतू के लिए समस्या और बड़ी इसलिए हो जाती है. क्योंकि प्रदेश के कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं को दरकिनर कर जीतू को इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौपीं गई है। जिसका खूब विरोध भी देखने को मिला था, तब के तात्कालिक प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने कई महीनो तक अपने ट्विटर अकाउंट से प्रेसिडेंट ऑफ मध्य प्रदेश कांग्रेस का टैग नहीं हटाया था. उस समय ये खबर चली थीं कि कमलनाथ कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व के इस फैसले से बेहद नाराज हैं.

वो अलग बात है कि प्रदेश की 29 सीटों में सिर्फ एक सीट पर सिमट चुकी कोंग्रेस के लिए दो सीटें भी उपलब्धि के तौर पर देखि जाएगी। लेकिन जीतू पटवारी के लिए सही मैंने में उपलब्धि वही होगी जो अप्रत्याशित सीट हो क्योंकि जिस छिंदवाड़ा, राजगढ़ और रतलाम लोकसभा में कांग्रेस मजबूत बताई जा रही है. उसकी वजह कांग्रेस का कोई शीर्ष नेता नहीं बल्कि खुद उस क्षेत्र के प्रत्याशी हैं. कुलमिलाकर हम यह कह सकते हैं कि जीतू पटवारी के लिए यह कठिन परीक्षा है।

अब बात कर लेते हैं कि इस चुनाव में दोनों पार्टियों के नेतृत्व की क्या भूमिका रही. शुरुआत बीजेपी से करते हैं, भारतीय जनता पार्टी ने धुआँधार प्रचार किया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर, जेपी नड्डा, अमित शाह, राजनाथ सिंह, शिवराज सिंह चौहान, से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जमकर प्रचार किया। यु कह सकते हैं कि केंद्रीय नेतृत्व ने भी जमकर पसीना बहाया। चुनाव की तारीखों के एलान के साथ ही बीजेपी का प्रचार अभियान भी शुरू हो गया, [9

लेकिन कांग्रेस शुरुआत के दिनों सुस्त नजर आई. जीतू पटवारी को छोड़ दें तो कांग्रेस का कोई भी नेता प्रचार में इतना एक्टिव नहीं दिखा। जितना की बीजेपी। कांग्रेस के शीर्ष नेता इक्का- दुक्का सीटों को छोड़ दें तो नजर ही नहीं आए. वहीं प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता अपने क्षेत्र से ही नहीं निकल सके. ऐसे में कांग्रेस शुरू से ही बैकफुट में नजर आई. रही सही कसर दलबदल ने पूरी कर दी. पार्टी के कई नेता यहां तक की प्रत्याशी भी ऐंन वक़्त में पार्टी को टाटा बाए-बाए कर गए. अब देखना यह होगा की कांग्रेस अपने पुराने रिकॉर्ड में सुधार करती है. या बीजेपी अपने मिशन 29 की 29 हासिल करने में.

अगर संभावित चुनावी परिणाम की बात करें तो कांग्रेस के लिए सिर्फ छिंदवाड़ा ही एक ऐसी जहां कांग्रेस का जितना लगभग तय सा लगता है. बाकी कुछ सीटों में जैसे मंडला, राजगढ़, भिंड, रतलाम और सतना ऐसी सीट हैं जहां टफ फाइट है. परिणाम किसी के भी पक्ष में जा सकते हैं.

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