इस जग को क्या दें ,इससे क्या लें और क्या छोड़ दें !

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Aatm Manthan : यूँ तो ये जग माया जाल है ,यहाँ रहकर कोरी आत्मा पर पाप का मैल न चढ़े पुण्य भी मिल जाए ऐसा ज्ञान कहाँ से लाएँ क्योंकि रहना तो हमको यहीं है फिर स्वयं को श्रेष्ठ कैसे बनाए क्या कोई मार्ग है? तो चलिए आज इसी सवाल का जवाब ढूंढते हैं।

क्या दान से पुण्य मिलता है :-

ये तो आपने सुना ही होगा कि दान करते रहना चाहिए इससे पुण्य मिलता है पर क्या सबको पुण्य मिल सकता है ? इससे हमारे पाप धुल सकते हैं दान से ? शायद नहीं और भी कुछ चाहिए इस संतुष्टि के लिए फिर भी अगर कुछ दान करके हमें सुख की अनुभूति हो रही है तो हम कह सकते हैं कि “कुछ देना हो तो दान देना चाहिए।”

इस जग में किसका भंडार है :-

जब हमारे पास जग को कुछ देने लायक़ था और हमने दे भी दिया तो क्या इस जग में कुछ नहीं है जो हम ले सकें! ऐसा तो नहीं है क्योंकि ये जग ज्ञान का भण्डार है ,हर पल यहाँ हमें कुछ न कुछ नया सीखने को मिल जाता है इसलिए जब “इस जग से कुछ लेना हो तो ज्ञान लें ” , जिसकी ज़रूरत हमें हमेशा रहती है फिर चाहे हम सामर्थ्यवान हों या असमर्थ तो वो ज्ञान ही है जिसे हमें हमेशा ग्रहण करना चाहिए ये हमारे जीवन को आसान और सुखमय बनाता है। फिर अगर छोड़ने की बात करें तो हमें क्या त्याग देना चाहिए ! चलिए इस पर भी विचार करते हैं।

आप जो भी लेंगे ,वो सबको दिखेगा :-

अगर आपने दान दे दिया और ज्ञान की भी तलाश में हैं तो बेशक कहीं न कहीं से आपको ज्ञान मिल ही जाएगा इसकी कोई सीमा नहीं है,ये आपकी इच्छा अनुसार कहीं से, किसी भी उम्र में मिल सकता है और ये भी आपके ऊपर ही निर्भर है कि आप किस तरह का ज्ञान लेना चाहते हैं क्योंकि आपकी नज़र आपकी मर्ज़ी के मुताबिक ही उसे तलाश करती है। इस जग में अच्छा बुरा सबकुछ है पर मर्ज़ी आपकी ही है कि आप क्या ग्रहण करना चाहते हैं इसी लिए आप क्या लेना चाहते है ये आपके अलावा कोई नहीं जानता पर जो आप लेगें उसका असर आपके व्यक्तित्त्व पर सबको दिखेगा।

दान कब बेकार हो जाता है :-

भले ही हमने कितना भी दान दिया हो और कितना भी ज्ञान लेने की कोशिश की हो पर हम तब तक श्रेष्ठता को नहीं पा सकते जब तक अहंकार को नहीं त्यागते क्योंकि ये सब अधूरा है अगर हमारे अंदर दान को देकर और ज्ञान को लेकर ज़रा भी घमंड आया इसलिए ज़रूरी है कि हम “अभिमान को त्याग दें।”इसलिए कहते हैं दान छुपाकर करना चाहिए ,किसी के लिए कुछ करके अगर ढिंढोरा पीट दिया या एहसान जता दिया तो दान देने का क्या मतलब।

अहंकार के आगे सब व्यर्थ है :-

अहंकार ,श्रेष्ठता की मार्ग में वो बाधा है जो हमें किसी श्रेष्ठ का सम्मान नहीं करने देती ,और जब हम किसी का सम्मान नहीं करते तो उसके गुण भी हमें नहीं दिखते इसलिए हम इस भुलावे में ही रहते हैं कि हम सबसे श्रेष्ठ हैं और ये भ्रम हमें ज्ञान को आत्मसात करने ही नहीं देता।

दान ,ज्ञान और अभिमान सब एक दुसरे से जुड़े हैं :-

दान ,ज्ञान और अभिमान ये सब आपस में जुड़े हुए हैं इनकी कड़ियाँ श्रेष्ठता से जुड़ी हैं इसलिए किसी एक को भी भुला कर हम श्रेष्ठ होने की संतुष्टि नहीं पा सकते। दान जहाँ हमें किसी को प्रसन्न करने की ख़ुशी देता है , वहीं अहंकार हमें दुनिया भुलाने को कहता है ,कहता है मुझे किसी की ज़रूरत नहीं तो मै क्यों किसी के काम आऊँ और ज्ञान अर्जित ही नहीं करने देता और सब दान पुण्य ,ज्ञान व्यर्थ हो जाता है। विचार अवश्य करियेगा इस बात पर फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।

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