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आचार सहिंता में नेताओं को किन नियमों को पालन करना पड़ता है? रूल्स तोड़े तो क्या होगा

गाड़िया, रैली, गिफ्ट नियम, चुनाव प्रचार से जुड़े सभी सवालों के जवाब यहां मिलेंगे

Election Commision Rules: पांच राज्यों में चुनावी घमासान शुरू हो गया है. छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, और मिजोरम की वोटिंग में तो अब 1 महीने से भी कम समय बचा है. कैंडिडेट्स लिस्ट, रैलियां, रोड शो, मैनिफेस्टो की खबरें इन राज्यों से लगातार आ रही हैं.

Vidhan Sabha Election 2023: चुनावी प्रचार के इस सीजन में आपके मन में काफी सवाल चल रहे होंगे। जैसे की क्या उम्मीदवारों के खर्च करने की कोई सीमा होती है? कितना खर्च कर सकते हैं? ज्यादा खर्च करने पर क्या कार्यवाही हो सकती है? कहां प्रचार कर सकते है और कहां नहीं? ये तमाम मुद्दों पर हम आज आप से चर्चा करेंगे।

नामांकन के बाद उम्मीदवारों को चुनाव प्रचार के लिए वक़्त क्यों दिया जाता है?

चुनाव आयोग जिस दिन उम्मीदवारों की फाइनल लिस्ट जारी करता है. उसके दो हफ्ते के बाद मतदान की डेट दी जाती है. तब तक उम्मीदवार जनता के बीच जाते हैं, और अपने पक्ष में जनता को रिझाने की हर कोशिश करते हैं.

उम्मीदवारों को समय इसलिए भी दिया जाता है ताकि जनता फ्री और ओपन डिस्कशन के जरिये ये समझ सके कि हमारे लिए सही दाल कौन सा होगा। साथ ही उम्मीदवारों को जान-समझकर वोटर्स अपनी राय बना सके और अपना नेता चुन सके.

वोटिंग के कितने घंटे पहले चुनाव प्रचार पर रोक लग जाती है?

मतदान से 48 घंटे पहले साइलेंस पीरियड शुरू हो जाता है। जिसे प्री-इलेक्शन साइलेंस भी कहते हैं। इस दौरान चुनाव प्रचार की हर तरह की गतविधियां रोक दी जाती हैं.

Representation of Peoples Act 1951: रिप्रजेंटेशन ऑफ़ पीपुल्स एक्ट 1951 के सेक्शन 126 के 126A और 135C के तहत ऐसी कार्य जिनसे चुनाव नतीजे प्रभावित हो सकते है. जैसे प्रचार, पब्लिक मीटिंग, रैली, रोड शो, शराब बिक्री पर पूरी तरह से साइलेंस पीरियड में पाबंदी होती है. चुनाव आयोग एक नोटिफिकेशन जारी कर इसे लागु करवाता है.

यह इसलिए किया जाता है कि वोटिंग के वक़्त वोटर्स का दीमक शांत रहे, वोटर अपने विवेक से सही उमीदवार चुन सके.

क्या चुनाव प्रचार में उम्मीदवारों के खर्च की कोई सीमा होती है?

चुनाव आयोग ने उम्मीवारों के खर्च की एक लिमिट बनाई है. कैंडिडेट्स चुनाव प्रचार में असीमित पैसा नहीं खर्च कर सकते हैं. हालांकि साल 2022 में खर्च की सीमा को बढ़ाया गया है.

बड़े राज्यों में विधानसभा चुनाव में खर्च की सीमा 28 लाख से बढ़ाकर 40 लाख कर दी गई है. वहीं छोटे राज्यों में 28 लाख तक खर्च कर सकते हैं. पहले ये सीमा 20 लाख रूपए तक थी.

उम्मीदवारों के खर्च का हिसाब कौन रखता है और ये गुणागणित को जोड़ा कैसे जाता है?

चुनाव के दौरान उम्मीदवारों को अपने और अपने कार्यकर्तायों के जरिये होने वाले हर खर्च का हिसाब उम्मीदवार को खुद रखना होता है. रिजल्ट आने के 30 दिन के अंदर उम्मीदवारों को खर्च का हिसाब इलेक्शन कमिशन को देना होता है.

नॉमिनेशन के दिन से चुनाव परिणाम के आने तक के खर्च का पूरा हिसाब जिला इलेक्शन कमिश्नर यानि DEO के पास जमा होता है. खर्च का सही रसीद होना जरुरी है.

चुनावी खर्च का हिसाब नहीं देने या गलत देने से क्या होता है?

अगर कोई भी उम्मीदवार चुनाव के खर्च की सही जानकारी निर्वाचन अधिकारी को नहीं देता है, तो 3 साल तक चुनाव नहीं लड़ने से रोक लगाई जा सकती है.

रिप्रजेंटेशन ऑफ़ पीपुल्स एक्ट के सेक्शन 10A में इसका जिक्र है. अगर कोई भी नेता इलेक्शन कमीशन को दिए खर्च से अधिक खर्च करता है, तो उससे भष्ट माना जायेगा।

देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इसका बड़ा उदाहरण हैं। इतने बड़े पद पर होने के बावजूद इंदिरा की संसद सदस्यता रद्द कर दी गई थी। बात जून 1975 की है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में आयरन लेडी इंदिरा गांधी के निर्वाचन के खिलाफ एक याचिका दायर की गई।

इस याचिका में उन पर चुनाव के दौरान सरकारी तंत्र के गलत इस्तेमाल का आरोप लगा था। कोर्ट ने इंदिरा पर लगे आरोपों को सही पाकर उन्हें भ्रष्ट करार दिया। 12 जून को इंदिरा के निर्वाचन को समाप्त करने के साथ ही 6 साल के लिए उनके चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी गई थी.

अगर उम्मीदवार तय लिमिट से ज्यादा खर्च कर रहा है तो कहां अपील करें?

क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति सम्बंधित क्षेत्र का उमीदवार अगर तय खर्च से ज्यादा खर्च कर रहा है, तो आम नागरिक कोर्ट में याचिका दायर कर सकता है. ये याचिका चुनाव नतीजे आने के 45 दिन के भीतर दायर करनी होती है.

मंदिर, मस्जिद स्कूल में चुनावी प्रचार कर सकते हैं?

स्कूल, मंदिर और मस्जिद आदि में चुनाव प्रचार करने की मनाही होती है. इसके अलावा सार्वजनिक जगहों जैसे सिनेमा घर, मैरिज हॉल जी जगहों पर चुनाव प्रचार करने पर उम्मीदवारों के खिलाफ कार्यवाही हो सकती है.

कोई भी दल आचार सहिंता लगने के बाद पिक्चर-फिल्म के माध्यम से अपने दल का प्रचार नहीं कर सकता है. इसके आलावा चुनाव के दिन मतदान केंद्र के 100 मीटर तक किसी भी तरह की वोट देने की अपील नहीं कर सकता।

चुनाव प्रचार के दौरान प्रत्याशियों की वीडियोग्राफ़ी क्यों कराई जाती है?

स्थानीय इलेक्शन कमीशन के अधिकारी उम्मीदवारों पर नजर बनाये रखने के लिए एक वीडियोग्राफ़ी टीम तैयार करते हैं. अगर चुनाव के दरमियान उमीदवार कोई भी रैली या सभा करता है तो उसकी वीडियोग्राफ़ी होती है और ये रिकॉर्ड्स जमा होते हैं. जातीय, धर्म आदि के आधार पर नियम तोड़ने पर इसी वीडियो केआधार पर इलेक्शन कमीशन के अधिकारी कार्यवाही करते हैं.

प्रचार के लिए उम्मीदवार कितनी गाड़ियों का इस्तेमाल कर सकता है?

चुनाव प्रचार के लिए कितनी गाड़ियों का इस्तेमाल कर सकते है? इसकी कोई निर्धारित सीमा नहीं है. हां इसके लिए बाकायदा चुनाव आयोग से परमिशन लेनी होती है. वैलिड परमिट के बाद ही वाहन चुनाव प्रचार के लिए लगाई जा सकती हैं. बिना परमिट वाली गाड़ियों पर कानूनी कार्यवाही की जा सकती है.

वाहन में अलग से लाउडस्पीकर वगैरह लगवाने या मॉडिफिकेशन करवाना मोटर व्हीकल एक्ट के तहत आता है। सक्षम अधिकारी से अनुमति लेकर ऐसा किया जा सकता है।

चुनाव प्रचार के लिए जुलूस, जलसा बुलाने को लेकर क्या नियम हैं?

आचार संहिता लागू होने के बाद उम्मीदवार या दल को चुनाव प्रचार के लिए जुलूस, जलसा व सार्वजनिक आयोजनों के लिए अनुमति लेनी होती है। लाउडस्पीकर इस्तेमाल करने के लिए भी इजाजत लेना जरूरी है।

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