संसद में घुसपैठ के मामले में 4 आरोपियों को IPC की अलग-अलग धराओं के साथ, UAPA की धारा 16 और 18 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है. इनके तहत गंभीर सजा हो सकती है.
संसद में घुसपैठ के मामले में 4 आरोपियों पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की ट्रेसपासिंग की धारा 452, आपराधिक साजिश की धारा 120-B, 153, 186, 353 और UAPA की धाराओं 16 और 18 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है. इस मामले में सागर शर्मा, मनोरंजन डी, नीलम और अमोल शिंदे नाम के आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है. वे फ़िलहाल 7 दिनों की पुलिस की रिमांड पर हैं. सभी आरोपियों को इन धाराओं के तहत गंभीर सजा हो सकती है. लेकिन हम आपको बताएंगे कि UAPA क्या होता है……
UAPA: गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम क्या है
What is UAPA: आपको बता दें कि UAPA का फुल फॉर्म Unlawful Activities (Prevention) Act होता है. इसका मतलब है-गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम। इस कानून का मुख्य काम आतंकी गतिविधियों को रोकना होता है. इस कानून के तहत पुलिस ऐसे आतंकियों, अपराधियों या अन्य लोगों को चिन्हित करती है, जो आतंकी गतिविधियों में शामिल होते हैं, इसके लिए लोगों को तैयार करते हैं या फिर ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं.
इस मामले में एनआईए यानी राष्ट्रीय सुरक्षा जांच एजेंसी (NIA) को काफी शक्तियां होती है. यहां तक कि एनआईए महानिदेशक चाहे तो किसी मामले की जांच के दौरान वह संबंधित शख्स की संपत्ति की कुर्की-जब्ती भी करवा सकते हैं.
कब लागू हुआ UAPA
When did UAPA come into force: UAPA गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम साल 1967 में लाया गया था. इस कानून को संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत दी गई बुनियादी आजादी पर तर्कसंगत सीमाएं लगाने के लिए लाया गया था. पिछले कुछ सालों में आतंकी गतिविधियों से संबंधी POTA (Prevention of Terrorism Ordinance) यानी आतंकवाद निरोधक अध्यादेश और TADA (Terrorist and Disruptive Activities Act) यानी आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम जैसे कानून अब भी मौजूद हैं और पहले से ज्यादा मौजूद है.
अगस्त 2019 में ही इसका संशोधन बिल संसद में पास हुआ था, जिसके बाद इस कानून को ताकत मिल गई कि किसी व्यक्ति को भी जांच के आधार पर आतंकवादी घोषित किया जा सकता है. पहले यह शक्ति केवल किसी संगठन को लेकर थी. यानी कि इस एक्ट के तहत किसी संगठन को आतंकवादी संगठन घोषित किया जाता था. सदन में विपक्ष को आपत्ति पर गृहमंत्री अमित शाह का कहना था कि आतंकवाद को जड़ से मिटाना सरकार की प्राथमिकता है.
इसलिए यह संशोधन जरुरी है. इस कानून के तहत किसी व्यक्ति पर शक होने मात्र से ही उसे आतंकवादी घोषित किया जा सकता है. इसके लिए उस व्यक्ति का किसी आतंकी संगठन से संबंध दिखाना भी जरुरी नहीं होगा। आतंकवादी का टैग हटवाने के लिए उसे कोर्ट की बजाय सरकार की बनाई गई रिव्यू कमेटी के पास जाना होगा। हालांकि बाद में कोर्ट में अपील की जा सकती है.
कानून की धाराओं में कठोर प्रावधान
UAPA में धारा 18, 19, 20, 38 और 39 के तहत केस दर्ज होता है. धारा 38 तब लगती है जब आरोपी के आतंकी संगठन से जुड़े होने की बात पता चलती है. धारा 39 आतंकी संगठनों को मदद पहुंचाने पर लगाई जाती है. इस एक्ट के सेक्शन 43D(2) में किसी शख्स की पुलिस कस्टडी मिल सकती है. वहीं न्यायिक हिरासत 90 दिन की भी हो सकती है. बता दें कि अन्य कानूनों में न्यायिक हिरासत की अवधि अधिकतम 60 दिन ही होती है.
नहीं मिलती अग्रिम जमानत
कानून के जानकारों का कहना है कि किसी व्यक्ति पर UAPA के तहत केस दर्ज हुआ है, तो उसे अग्रिम जमानत नहीं मिल सकती है. यहां तक कि अगर पुलिस ने उसे छोड़ दिया हो तब भी उसे अग्रिम जमानत नहीं मिल सकती है. दरअसल, कानून के सेक्शन 43D (5) के मुताबिक, कोर्ट शख्स को जमानत नहीं दे सकता, अगर उसके खिलाफ प्रथम दृष्टया केस बनता है. गैरकानूनी संगठनों, आतंकवादी गैंग और संगठनों की सदस्यता को लेकर इसमें कड़ी सजा का प्रावधान है. सरकार द्वारा घोषित आतंकी संगठन का सदस्य पाए जाने पर आजीवन कारावास की सजा मिल सकती है. लेकिन कानून में सदस्यता की कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है.
संसद में घुसपैठ करने वालों पर लगने वाली धाराएं
UAPA की धारा 16 में आतंकी वारदात से किसी की जान जाने पर फांसी या उम्रकैद की सजा का प्रावधान है. वहीं धारा 18 आतंकी कृत्य को अंजाम देने की साजिश रचने के 5 साल से उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है.