What Is Tulbul Project In Hindi: जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा जिले में वुलर झील पर प्रस्तावित तुलबुल नेविगेशन बैराज प्रोजेक्ट (Tulbul Navigation Project) एक बार फिर सुर्खियों में है। यह परियोजना, जिसे वुलर बैराज (Wular Barrage) के नाम से भी जाना जाता है, कश्मीर की अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे को नई दिशा देने का वादा करती है। लेकिन यह प्रोजेक्ट दशकों से विवादों के साये में है, जिसके कारण यह अधर में लटका हुआ है। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने हाल ही में इसे फिर से शुरू करने की मांग उठाई है, जिससे इसकी अहमियत और चुनौतियां एक बार फिर सामने आ गई हैं। तो आखिर क्या है यह तुलबुल प्रोजेक्ट, और क्यों है यह इतना खास?
तुलबुल प्रोजेक्ट का मकसद और उसकी खासियत
तुलबुल प्रोजेक्ट का मूल उद्देश्य झेलम नदी (Jhelum River) के जल प्रवाह को नियंत्रित करना है, ताकि वुलर झील और आसपास के इलाकों में साल भर नौवहन (Navigation), बिजली उत्पादन (Hydropower), और सिंचाई (Irrigation) की सुविधा मिल सके। यह बैराज वुलर झील पर बनाया जाना है, जो एशिया की सबसे बड़ी ताजे पानी की झीलों में से एक है। इस परियोजना के तहत 439 फीट लंबा और 40 फीट चौड़ा एक बैराज बनाया जाएगा, जिसमें एक नेविगेशन लॉक (Navigation Lock) होगा। यह लॉक झील और नदी के जल स्तर को संतुलित रखेगा, जिससे सर्दियों में जब पानी कम होता है, तब भी नौकाएं चल सकें।
इस प्रोजेक्ट से कश्मीर के कई इलाकों, जैसे अनंतनाग, श्रीनगर, और बारामुला, को जलमार्ग (Waterway) से जोड़ा जा सकेगा। इससे माल और लोगों का आवागमन आसान होगा, जिससे स्थानीय व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा, यह बैराज सर्दियों में झेलम नदी के कमजोर जल प्रवाह को नियंत्रित कर डाउनस्ट्रीम जलविद्युत संयंत्रों (Hydropower Plants) को अधिक बिजली उत्पादन में मदद करेगा। साथ ही, यह लगभग एक लाख एकड़ कृषि भूमि के लिए सिंचाई सुविधा देगा और बाढ़ (Flood Control) को रोकने में भी कारगर होगा। यानी, यह प्रोजेक्ट कश्मीर की आर्थिक और पर्यावरणीय जरूरतों को पूरा करने का एक बड़ा कदम हो सकता है।
प्रोजेक्ट का इतिहास: शुरुआत से रुकावट तक
तुलबुल प्रोजेक्ट की कहानी 1980 के दशक में शुरू हुई, जब भारत ने वुलर झील पर इस बैराज का निर्माण शुरू किया। उस समय इसका लक्ष्य था कश्मीर के जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन और क्षेत्रीय विकास को गति देना। 1984 में निर्माण शुरू हुआ, लेकिन यह परियोजना जल्द ही अंतरराष्ट्रीय विवाद का हिस्सा बन गई। 1987 में पड़ोसी देश पाकिस्तान ने इस पर आपत्ति जताई और इसे सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) का उल्लंघन बताया। इस संधि के तहत, भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों, जैसे झेलम, के पानी का बंटवारा तय किया गया है। पाकिस्तान का दावा था कि तुलबुल बैराज वुलर झील में पानी का भंडारण (Water Storage) करेगा, जो संधि के नियमों के खिलाफ है।
भारत ने तर्क दिया कि यह बैराज भंडारण के लिए नहीं, बल्कि जल प्रवाह को नियंत्रित करने (Flow Regulation) के लिए है, जो संधि के दायरे में आता है। लेकिन पाकिस्तान के दबाव और कूटनीतिक तनाव के कारण 1987 में निर्माण कार्य रोक दिया गया। तब से यह परियोजना अधूरी पड़ी है, और समय-समय पर इसे फिर से शुरू करने की बात उठती रही है।
विवाद की जड़: क्यों अटका है प्रोजेक्ट?
तुलबुल प्रोजेक्ट का विवाद सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि सामरिक और कूटनीतिक (Strategic and Diplomatic) भी है। पाकिस्तान का मानना है कि यह बैराज झेलम नदी के जल प्रवाह को कम कर सकता है, जिससे उसके कृषि और बिजली उत्पादन पर असर पड़ेगा। वुलर झील का पानी झेलम नदी के जरिए पाकिस्तान तक जाता है, और वहां इसे सिंचाई और अन्य जरूरतों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पाकिस्तान को डर है कि बैराज से भारत पानी पर नियंत्रण (Water Control) हासिल कर सकता है, जो दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है।
दूसरी ओर, भारत का कहना है कि यह बैराज केवल नौवहन और जल प्रबंधन (Water Management) के लिए है, न कि पानी रोकने के लिए। विशेषज्ञों के अनुसार, बैराज का डिजाइन ऐसा है कि यह झील में अतिरिक्त पानी जमा नहीं करेगा, बल्कि मौसमी बदलावों को संतुलित करेगा। इसके बावजूद, दोनों देशों के बीच बातचीत और विश्वास की कमी के कारण यह मुद्दा अनसुलझा रहा।
वर्तमान स्थिति और भविष्य
हाल ही में उमर अब्दुल्ला ने तुलबुल प्रोजेक्ट को फिर से शुरू करने की वकालत की है। उनका कहना है कि यह परियोजना कश्मीर के लोगों के लिए आर्थिक समृद्धि (Economic Prosperity) ला सकती है। खासकर तब, जब भारत-पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि को लेकर तनाव बढ़ा है। अब्दुल्ला का तर्क है कि अगर संधि पर सवाल उठ रहे हैं, तो भारत को अपने हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए और इस प्रोजेक्ट को पूरा करना चाहिए।
हालांकि, प्रोजेक्ट को फिर से शुरू करना आसान नहीं है। इसके लिए भारी वित्तीय निवेश (Financial Investment), तकनीकी विशेषज्ञता, और केंद्र-राज्य समन्वय की जरूरत होगी। साथ ही, क्षेत्र की सामरिक संवेदनशीलता (Strategic Sensitivity) को देखते हुए सुरक्षा व्यवस्था भी एक चुनौती होगी। फिर भी, अगर यह प्रोजेक्ट पूरा होता है, तो यह कश्मीर के लिए एक गेम-चेंजर (Game Changer) साबित हो सकता है।
क्या कहते हैं लोग?
स्थानीय लोग इस प्रोजेक्ट को लेकर उत्साहित हैं। श्रीनगर के एक व्यापारी मोहम्मद यूसुफ कहते हैं, “अगर जलमार्ग शुरू हो जाए, तो हमारा माल सस्ते में और तेजी से बाजार तक पहुंचेगा।” वहीं, किसान गुलाम अहमद का मानना है कि “सिंचाई की सुविधा बढ़ने से हमारी फसलें बेहतर होंगी।” लेकिन कुछ लोग चिंतित भी हैं कि प्रोजेक्ट के कारण क्षेत्र में तनाव बढ़ सकता है।
तुलबुल प्रोजेक्ट न सिर्फ एक इंजीनियरिंग परियोजना है, बल्कि कश्मीर के भविष्य की उम्मीद भी है। यह देखना बाकी है कि क्या सरकार इस रुके हुए सपने को हकीकत में बदल पाएगी। ताजा जानकारी के लिए सरकारी घोषणाओं पर नजर रखें।