थ्री लैंग्वेज पॉलिसी क्या है: तमिलनाडु के बीजेपी अध्यक्ष अन्नामलाई और DMK के मंत्री PTR के बीच भसड़ हो गई. वजह? वही हिंदी को लेकर DMK की नफरत।
What Is Three Language Policy: तमिलनाडु (Tamilnadu) में थ्री लैंग्वेज पॉलिसी को लेकर भाजपा और DMK नेताओं के बीच बवाल हो गया. तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष अन्नामलाई और सत्ताधारी पार्टी के मंत्री पलानिवेल त्यागराज यानी PTR के बीच जुबानी जंग छिड़ गई. दरअसल केंद्र सरकार तमिलनाडु में तीसरी भाषा निति को लागू करने में लगी हुई है और वो तीसरी भाषा है हिंदी। इसी लिए DMK थ्री लैंग्वेज पॉलिसी का पुरजोर विरोध कर रही है. DMK को लगता है कि केंद्र सरकार दक्षिण भारत राज्यों में हिंदी थोप रही है. हालांकि उन्हें इंग्लिश से कोई दिक्क्त नहीं है. DMK को हिंदी से क्या तकलीफ है अपन इसपर भी बात करेंगे लेकिन पहले जानेंगे कि थ्री लैंग्वेज पॉलिसी है क्या?
थ्री लैंग्वेज पॉलिसी एक्सप्लेंड
थ्री लैंग्वज पॉलिसी में तीन भाषाएं हैं हिंदी, अंग्रेजी और राज्यों की अपनी भाषा। पूरे देश में हिंदी की पढाई एक पुरानी शिक्षा व्यवस्था का ही हिस्सा रही है. 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा निति में इसे आधिकारिक रूप में शामिल किया गया था. त्रि भाषा सूत्र की चर्चा आज़ादी के कुछ वक़्त बाद ही शुरू यूनिवर्सिटीज में शिक्षा से जुड़े सुझावों को लेकर बनाए गए राधाकृष्णन आयोग 1948-49 की रिपोर्ट से ही शुरू हो गई थी. इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि राज्यों में प्रादेशिक के अलावा हिंदी और इंग्लिश की भी शिक्षा दी जाए. इसके बाद 1955 में डॉ लक्ष्मी स्वामी मुदलियार के निर्देशन पर माध्यमिक शिक्षा आयोग का गठन हुआ जिसमे द्विभाषी यानी प्रादेशिक के साथ हिंदी पढ़ाने और इंग्लिश को वैकल्पिक भाषा बनाने का प्रस्ताव दिया, फिर कोठरी आयोग बना, उसकी शिफारिश पर 1968 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने थ्री लैंग्वेज पॉलिसी को स्वीकार कर लिया। देशभर के ज़्यादातर राज्यों में इसका इम्प्लीमेंटेशन हुआ सिवाय दक्षिणी राज्यों के.
2019 में जब राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा पेश हुआ तब दक्षिण भारतीय राज्यों ने अपनी स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को पढ़ाने का विरोध शुरू कर दिया। 2020 में नई शिक्षा नीति आई जिसमे थ्री लैंग्वेज पॉलिसी का प्रस्ताव था लेकिन इसे भी तमिलनाडु समेत दक्षिण भारतीय राज्यों ने ख़ारिज कर दिया।
हिंदी से क्या दिक्क्त?
अब सवाल है कि हिंदी से दिक्क्त क्या है? क्योंकि इन्हे विदेशी भाषा इंग्लिश से कोई दिक्क्त नहीं है. और ये विरोध कोई आज का नहीं है बल्कि 1937 में चक्रवर्ती राजगोपालचारी ने मद्रास प्रेसिडेंसी की कमान संभालते ही हिंदी को बढ़ावा देने की बात कही थी, 100 से ज्यादा स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य कर दिया था लेकिन तमिलभाषिओं ने इतना विरोध किया कि यह जनांदोलन बन गया और सरकार को इस्तीफा देना पड़ गया. फिर ब्रिटिश सरकार ने हिंदी की अनिवार्यता खत्म कर दी. आंदोलन खत्म हुआ लेकिन हिंदी के प्रति घृणा बढ़ती गई.
1967 में हिंदी विरोधी आंदोलन से उभरी DMK ने सरकार बना ली. 1968 के बाद तमिलनाडु में तमिल और इंग्लिश को अपनाया गया और हिंदी को धुत्कार दिया गया. DMK की विचारधारा है कि सरकार दक्षिण भारतीय राज्यों में हिंदी थोप रही है उनकी शिक्षा का संस्कृतिकरण कर रही है. जबकि सरकार का कहना है कि वह ऐसा करके हिंदी व गैर-हिंदी भाषी राज्यों में भाषा के अंतर को ख़त्म करना चाहती है.