Amarnath Story In Hindi: अमरनाथ हिंदुओं के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। कहा जाता भगवान शिव ने देवी पार्वती को इस गुफा में अमर कथा सुनाई थी, लेकिन देवी पार्वती सो जाने के कारण यह कथा नही सुन पाईं थीं। लेकिन एक कबूतर जोड़े ने यह कथा सुनी और अमर हो गए, आज भी अमरनाथ गुफा में इनको देखे जाने के दावे किए जाते हैं।
देवी पार्वती ने भगवान शिव से अमर होने का रहस्य पूछा | Amarnath Story
एक बार देवी पार्वती ने भगवान शिव के गले में पड़े नरमुंडों की माला को देखा। और भगवान शिव से इसका रहस्य जानना चाहा। तब महादेव शिव ने कहा- देवी जितनी बार तुम्हारा जन्म हुआ है, उतने मुंड मेरी माला में हैं। तब देवी पार्वती ने कहा- भगवान ऐसा क्यों है मैं बार-बार जन्म लेती हूँ, लेकिन आप अमर हैं। इसका कारण बताएँ मैं भी जन्म-जन्मांतर के चक्र से मुक्त होकर अमर होना चाहती हूँ। तब भगवान ने कहा- देवी यह एक गूढ़ तत्वज्ञान है, जिसे अमरकथा कहते हैं, उसी को जानने के कारण मैं अमर हूँ।
देवी पार्वती ने अमरकथा सुनने की हठ की | Amarnath Story
भगवान शिव से अमरतत्व की कथा के रहस्य की बात जानने के बाद, देवी ने भगवान शिव से इस कथा को सुनाने का आग्रह किया। कहते हैं भगवान शिव कई वर्षों तक यह बात टालते रहे। लेकिन एक बार देवी जिद पर आ गईं और बार-बार भगवान शिव से इस कथा को सुनने की जिद करने लगीं। देवी पार्वती के हठ के आगे भगवान शिव को झुकना पड़ा और वह देवी को कथा सुनाने को तैयार हो गए। लेकिन इस कथा के तत्व का रहस्य बहुत गूढ़ था, और कोई दूसरा इसे सुन ने, इसीलिए भगवान शिव पार्वती के साथ, हिमालय पर्वत के दुर्गम्य स्थान की ओर चले।
रास्ते अपने सभी गणों को छोड़ा | Amarnath Story
हिमालय की दुर्गम गुफा की तरफ बढ़ते हुए भगवान शिव ने सर्वप्रथम अपने सवारी नंदी बैल को छोड़ा। जहाँ उन्होंने बैल को छोड़ा था, वह स्थान अभी पहलगाम के नाम से विख्यात है। उसके बाद उन्होंने अपने जटाओं से चंद्रमा को मुक्त किया, जहाँ उन्होंने चंद्रमा को छोड़ा वह स्थान चंदनवाड़ी कहलाता था। जहाँ ओर उन्होंने अपने गले के नाग को छोड़ा था, वह स्थान अनंतनाग कहलाता है। जबकि शेषनाग नाम के झील के पास उन्होंने अपने बाकि सर्पों को छोड़ा था। अपने पुत्र गणेश और बाकि गणों को महागुनस पर्वत पर छोड़ा था। आगे बढ़ते हुए उन्होंने अपने पंचतत्वों को भी त्याग दिया, यह स्थान अभी भी पंचतरिणी कहलाता है। पंचतत्वों के त्याग के बाद भगवान शिव, माता पार्वती के साथ ज्योति स्वरूप में गुफा के अंदर प्रविष्ट हुए।
कथा सुनते हुए सो गईं देवी पार्वती | Amarnath Story
भगवान शिव और माता पार्वती ने, हिमालय की दुर्गम चोटी के एक गुफा में ज्योतिस्वरूप में प्रवेश किया। भगवान शिव माता पार्वती को अमर तत्व का गूढ़ रहस्य बताने लगे और उसकी कथा सुनाने लगे। लेकिन कथा सुनते-सुनते कुछ ही देर में माता पार्वती सो गईं। अमरकथा के गूढ़ तत्वज्ञान को बताने में लगे भगवान शिव ने इस बात का ध्यान ही नहीं दिया कि देवी पार्वती सो गईं हैं। इधर एक कबूतर का जोड़ा पहले से ही गुफा में मौजूद था, माता पार्वती के सो जाने के बाद वे कबूतर गूँ-गूँ की आवाज कर रहे थे। वह कबूतरों के गूँ-गूँ को देवी पार्वती की हूँ-हूँ समझ रहे थे।
जब दो कबूतरों ने सुनी अमरकथा | Amarnath Story
इधर भगवान शिव ने जब पूरी अमरकथा सुना दी, तब उनका ध्यान देवी पार्वती पर गया, जो सो रहीं थीं। तभी उन्होंने गुफा में बैठे हुए दो कबूतर देखे। भगवान समझ वह इनकी गूँ-गूँ को ही, देवी पार्वती की हूँ-हूँ समझ रहे थे। तब इतना गूढ़ रहस्य सुन लेने के कारण भगवान शिव उन दोनों कबूतरों पर अत्यंत क्रोधित हुए, और उन्हें मारना चाहा। लेकिन कबूतर भागकर देवी के पास चले गए, तब देवी पार्वती ने उन दोनों कबूतरों को अभय दिया। और भगवान शिव को याद दिलाया यह अमरकथा सुनने वाला अमर हो जाता है। यदि आप इन्हें मार देंगे तो आपकी ही सुनाई अमरकथा झूठी साबित हो जाएगी।
भगवान शिव ने दिया कबूतर जोड़े को वरदान | Amarnath Story
देवी पार्वती के वचन सुनकर भगवान शिव ने, उन दोनों कबूतरों को अभय दिया। और उन्हें वरदान देते हुए कहा- तुम दोनों अब अमर हो, तुम लोग इस स्थान पर सदैव शिव और पार्वती के प्रतीक चिन्ह के तौर पर उपस्थित रहोगे, और तुम्हारे दर्शन बहुत पवित्र और दुर्लभ माने जाएंगे। यह कहकर भगवान शिव माता पार्वती के साथ कैलाश चले गए। अभी भी यहाँ यात्रा करने वाले लोग इस कबूतर जोड़े को देखने का दावा करते रहते हैं।
प्रत्येक वर्ष होता है, बर्फ के शिवलिंग का निर्माण | Amarnath Story
चूंकि इस गुफा में भगवान शिव ने अमरकथा सुनाई थी। जहाँ भगवान ज्योतिरूप में विराजे थे, वहाँ एक प्राकृतिक हिम के शिवलिंग का निर्माण होता है। इसीलिए भगवान शिव अमरनाथ के नाम से जाने जाते हैं, और यह गुफा अमरनाथ गुफा के नाम से जानी जाती है। यहाँ प्राकृतिक शिवलिंग का निर्माण प्रत्येक वर्ष होता है, इसके साथ ही यहाँ देवी पार्वती और श्री गणेश की भी प्राकृतिक प्रतिमा का निर्माण होता है।