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कार्तिक अमावस्या का क्या महत्व है?

kartik amavasya 2023 -

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कार्तिक अमावस्या के शुभ अवसर पर भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व है. इस पूजा को संपूर्ण विधि विधान से करने से सारे पापों से छुटकारा मिल जाता है. दिवाली पर महालक्ष्मी पूजन के अलावा स्नान-दान और पितरों की पूजा की भी परंपरा है.

पुराणों में अमावस्या को पर्व कहा गया है. इस दिन तीर्थ स्नान और दान से लक्ष्मी जी के साथ पितर भी खुश होते हैं.12 नवंबर को कार्तिक मास की अमावस्या तिथि है. इस पर्व में स्नान और दान करने का भी महत्व पुराणों में बताया गया है. धर्म ग्रंथों में इसे पर्व कहा गया है. इस तिथि में पितरों के उद्देश्य से की गई पूजा और दान अक्षय फलदायक देने वाली होती है. अमावस्या पर भगवान शिव और पार्वती जी की विशेष पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

स्नान-दान का पर्व

स्कन्द पुराण के मुताबिक कार्तिक महीने की अमावस्या पर किए गए तीर्थ स्नान और दान से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं. इस पर्व पर घर में ही पानी में गंगाजल मिलाकर नहाने से तीर्थ स्नान का फल मिल सकता है. साथ ही श्रद्धा अनुसार दान करने से हर तरह के रोग, शोक और दोष से छुटकारा मिलता है. इस दिन खासतौर से ऊनी कपड़ों का दान करना चाहिए। भविष्य, पद्म और मत्स्य पुराण के मुताबिक इस दिन दीपदान के साथ ही अन्न और वस्र दान भी करना चाहिए। कार्तिक मास की अमावस्या पर किया गया हर तरह का दान अक्षय फल देने वाला होता है.

पुराणों में अलग-अलग मत

ब्रह्म पुराण में बताया गया है कि अमावस्या पर लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं. पद्म पुराण का कहना है कि इस दिन दीपदान करने से अक्षय पुण्य मिलता है. स्कंदपुराण में कहा गया है कि कार्तिक महीने की अमावस्या को गीता पाठ और अन्न दान करना चाहिए। इसके साथ ही भगवान विष्णु को तुलसी भी चढ़ानी चाहिए। इससे हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं. अन्नदान करने से सुख बढ़ता है. ऐसा इंसान चिरंजीवी होता है.अन्नदान करने से हजारों गाय दान करने जितना फल मिलता है.

अमावस्या नाम कैसे पड़ा?

मत्स्य पुराण के 14वें अध्याय की कथा के अनुसार पितरों की एक मानस कन्या थी. उसने बहुत कठिन तपस्या की. उसे वरदान देने के लिए कृष्णपक्ष की पंचदशी तिथि पर सभी पितर आए. उनमें बहुत ही सुंदर अमावसु नाम के पितर को देखकर वो कन्या आकर्षित हो गई और उनसे विवाह करने की इच्छा जाहिर की. लेकिन अमावसु ने इसके लिए मना कर दिया। अमावसु के धैर्य के कारण उस दिन की तिथि पितरों के लिए बहुत ही प्रिय हुई. तभी से अमावसु के नाम से ये तिथि अमावस्या कहलाने लगी.

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