The mystery of the four gates of Puri Jagannath Temple: ओडिसा में भाजपा की सरकार बनते ही पूरी जगन्नाथ मंदिर के तीनों द्वार खोल दिए गए हैं। तीनों द्वारों को खोलने के लिए भाजपा ने विधानसभा चुनाव में अपने घोषणा पत्र में वादा किया था। जीत के साथ ही तीनों द्वारों को खोल दिया गया है। अभी तक सिर्फ एक ही दरवाजे से भक्तों को एंट्री मिलती थी। लेकिन अब चारों द्वार खुल गए हैं। आइए जानते हैं कि आखिर स्वामी जगन्नाथ मंदिर के इन तीनों द्वारों की कहानी क्या है। साथ ही इन दरवाजों को खोले जाने से क्या बदलाव होंगे।
कुल चार द्वार हैं मंदिर परिसर में
The mystery of the four gates of Puri Jagannath Temple: स्वामी जगन्नाथ मंदिर में कुल चार द्वार हैं। जिनके नाम व्याघ्र द्वार, सिंह द्वार, हस्ति द्वार और अश्व द्वार हैं। बता दें कि जगन्नाथ मंदिर के चारों पहले नहीं बन थे। इन्हें कुछ सालों पहले ही बंद किया गया था। भक्तों की एंट्री और एग्जिट के लिए अभी तक एक ही द्वार खुलता था। जिसका नाम सिंह द्वार है। लेकिन अब सभी दरवाजों को खोल दिया गया है।
क्यों बंद किए गए थे तीनों द्वार?
साल 2019 में कोरोना महामारी की वजह से स्वामी जगन्नाथ मंदिर के तीन द्वारों को बंद कर दिया गया था। भीड़ को कंट्रोल करने और प्रत्येक व्यक्ति की जांच करने के बाद मंदिर में प्रवेश दिया जाता था। एक द्वार खुले होने की वजह से भक्तों की एंट्री और जांच में सहूलियत होती थी। तभी से तीनों दरवाजों को बंद रखा गया था। दरवाजों को खोलने की मांग कई बार की गई। श्रद्धालुओं का कहना है कि मंदिर में मात्र एक द्वार खुलने की वजह से दर्शन के लिए काफी इंतजार करना पड़ता था।
जानें चारों द्वारों की कहानी
अश्व द्वार- अश्व द्वार दक्षिण दिशा की ओर है। था घोड़े का प्रतीक माना जाता है। इसे विजय द्वार भी कहा जाता है। जीत की कामना के लिए योद्धा इसका इस्तेमाल करते थे।
सिंह द्वार- चारों द्वारों में सिंह द्वार पूर्व दिशा की ओर है। जो कि सिंह (शेर) का प्रतीक माना जाता है। भक्तों की एंट्री का था प्रमुख द्वार माना जाता है। इसे मोक्ष का द्वार भी कहा जाता है।
व्याघ्र द्वार- व्याघ्र द्वार, बाघ के नाम पर है। इसे आकांक्षा का प्रतीक माना जाता है। इस दरवाजे संत और कुछ खास भक्त ही एंट्री करते हैं।
हस्ति द्वार- यह द्वार दक्षिण दिशा में है। यह हाथी के नाम पर है। हाथी को माता लक्ष्मी का वाहन माना जाता है। इस द्वार के दोनों ओर हाथी की आकृति बनी हुई है। इन आकृतियों को मुगलकाल में क्षतिग्रस्त कर दिया गया था।