Sapta Sindhu Region Of Ancient India: “सप्तसिंधु” या सप्तसैंधव शब्द संस्कृत से आया है, जिसका अर्थ है “सात नदियाँ” या सात नदियों का क्षेत्र। यह प्राचीन भारत का एक महत्वपूर्ण भौगोलिक और सांस्कृतिक क्षेत्र था, जिसका उल्लेख वैदिक साहित्य, खासकर ऋग्वेद में मिलता है। यह क्षेत्र उत्तर-पश्चिमी भारत और वर्तमान पाकिस्तान के हिस्सों में फैला था, जहाँ सात प्रमुख नदियाँ बहती थीं। सप्तसिंधु केवल नदियों का समूह ही नहीं, बल्कि प्राचीन भारतीय सभ्यता का एक जीवंत केंद्र था, जिसने धर्म, संस्कृति, और अर्थव्यवस्था को आकार दिया।
कौन सी हैं सप्तसिंधु की नदियाँ
सप्तसिंधु केवल नदियों का समूह ही नहीं, बल्कि प्राचीन भारतीय सभ्यता का एक जीवंत केंद्र था, जिसने धर्म, संस्कृति, और अर्थव्यवस्था को आकार दिया। सरस्वती नदी का रहस्य आज भी शोध का विषय है, और इस क्षेत्र की नदियाँ आज भी भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा बनी हुई हैं। ऋग्वेद में इन सात नदियों को पवित्र माना गया है-
- इंडस जिसे सिंधु कहा जाता है, जो हिमालय से निकलती है और अरब सागर में गिरती है। यह इस क्षेत्र की सबसे बड़ी, प्रमुख और केंद्रीय नदी थी, आर्यों से पहले हड़प्पन सभ्यता इसी नदी के क्षेत्रों के किनारों पर उपजी थी।
- वितस्ता जिसे अब झेलम कहा जाता है, यह कश्मीर में बहने वाली सिंधु की सहायक नदी है।
- असिक्नी अर्थात चेनाब पंजाब क्षेत्र में बहने वाली एक प्रमुख नदी।
- रावी जिसे प्राचीन समय में परुष्णी कहा जाता था। यह पंजाब की एक और महत्वपूर्ण नदी।
- विपाशा जिसे अब व्यास कहा जाता है, जो हिमाचल प्रदेश और पंजाब में प्रवाहित होती है।
- सतलुज नदी, जिसे प्राचीन समय में शुतुद्री कहा जाता था। यह सिंधु की सबसे प्रमुख और लंबी सहायक नदी है।
- और सबसे प्रमुख है सरस्वती नदी, जिसके महिमा वेदों में खूब कही गई है। यह नदी वैदिक काल में बहुत पवित्र थी, लेकिन अब इसका प्रवाह सूख चुका है। कुछ विद्वान इसे घग्गर-हाकरा नदी से जोड़ते हैं, जो राजस्थान और हरियाणा में बहती है।
सप्त सैंधव का ऐतिहासिक महत्व
सप्तसिंधु क्षेत्र आर्य सभ्यता का प्रारंभिक केंद्र था। ऋग्वेद में इस क्षेत्र को “सप्तसिंधु देश” या “आर्यावर्त” के रूप में वर्णित किया गया है। सिंधु घाटी सभ्यता जो लगभग 3300 से 1300 ईसा पूर्व पनपी, इसका भी इस क्षेत्र से गहरा संबंध था। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे प्रमुख पुरातात्विक स्थान सिंधु नदी के किनारे बने थे। ये नदियाँ उपजाऊ मैदान प्रदान करती थीं, जिससे प्राचीन काल में खेती और बस्तियाँ फली-फूलीं। नदियाँ व्यापार और परिवहन के मार्ग भी थीं। ऋग्वेद में सप्तसिंधु की नदियों को देवी के रूप में पूजा जाता था। खासकर सरस्वती को ज्ञान और बुद्धि की देवी माना गया। सरस्वती नदी का विशेष उल्लेख है, जिसे “नदियों की माता” कहा गया। यह वैदिक साहित्य में सबसे पवित्र नदियों में से एक थी। इन नदियों का जल धार्मिक अनुष्ठानों में इस्तेमाल होता था। ऋग्वेद में इन नदियों को “मातृ नदियाँ” कहा गया है।
आज का सप्त सिंधु क्षेत्र
इस सप्त सिंधु क्षेत्र को लेकर भी विद्वानों में बहुत ज्यादा मतभेद हैं। कुछ इसे केवल पंजाब तक सीमित मानते हैं, जबकि अन्य इसे गंगा के मैदान तक विस्तारित मानते हैं। आज सप्तसिंधु का क्षेत्र भारत और पाकिस्तान दो देशों में विभाजित हो गया है। जिसके कारण सप्तसिंधु की अधिकांश नदियाँ भारत और पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में बहती हैं, इनका प्राचीन वैभव भले ही अब कम हो गया है। लेकिन ऐतिहासिक महत्व अभी भी बना हुआ है।
अवेस्ता में भी सप्तसिंधु का उल्लेख
सप्तसिंधु का उल्लेख न केवल भारतीय संस्कृति के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में है, बल्कि प्राचीन पारसी ग्रंथ अवेस्ता में भी मिलता है, जहाँ इसे सप्त-सिंधु की जगह हप्त हिंदु कहा गया है। हिंदू शब्द की व्युतिपत्ती इसी सिंधु शब्द से हुई है। और इन्ही सप्त-सिंधु क्षेत्रों में रहने वाले लोग ही हिंदू कहलाए, इसीलिए यह क्षेत्र प्राचीन भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का प्रतीक था।