धनतेरस। धनतेरस के शुभ-मुहूर्त को लेकर बाजार तैयार हो गया है। सोना चांदी का बाजार, बर्तन बाजार, इलेक्ट्रिनिक सामानों का बाजार तथा वाहन बाजार सभी जगह तैयारी की गई है, तो लोग इस शुभ-मुहूर्त में खरीदारी करने की भी तैयारी कर लिए है। आखिर इस दिन ऐसा क्या हुआ की इसके लिए बाजार तैयार हो गया और खरीदार भी बाजार में उतरने के लिए तैयार है। इसके पीछे जो धार्मिक कहानी है, वह भगवान धन्वंतरि और धन की देवी माता लक्ष्मी से जुड़ी हुई हैं। इससे तो यह निश्चित है कि इस दिन धनवर्षा हुई। बर्तन खरीदने की परंपरा का कारण भगवान धन्वंतरि का अमृत कलश लेकर प्रकट होना है। भगवान धन्वंतरि के नाम के कारण इस दिन को धनतेरस कहा जाता है।
कलश लेकर निकले थें भगवान धन्वंतरि
धनतेरस की कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी है, जब कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इसे धनत्रयोदशी भी कहते हैं। इस दिन मां लक्ष्मी का भी जन्म हुआ था, इसलिए यह दीपावली के त्योहार की शुरुआत का प्रतीक है। एक अन्य कथा के अनुसार, एक गरीब किसान ने लक्ष्मी की कृपा से १२ साल तक सुख भोगा, और लक्ष्मी जी ने किसान को त्रयोदशी को अपनी पूजा करने और दीपक जलाने के लिए कहा था, जिससे किसान के घर में समृद्धि बनी रही।
ऐसी है समुद्र मंथन की कथा
देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, जिसमें भगवान विष्णु ने कच्छप अवतार धारण किया था। इस मंथन से १४ रत्न निकले, जिनमें भगवान धन्वंतरि और मां लक्ष्मी भी थीं। भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए, जिन्हें आयुर्वेद और चिकित्सा का देवता माना जाता है। मां लक्ष्मी का भी जन्म हुआ, जो धन और समृद्धि की देवी हैं। इसी दिन से दीपावली का पर्व शुरू होता है, और लोग बर्तन खरीदकर भगवान धन्वंतरि और मां लक्ष्मी का पूजन करते हैं, जो स्वास्थ्य और समृद्धि लाते हैं।
किसान और लक्ष्मी जी की कथा
एक बार, लक्ष्मी जी ने एक किसान के घर में रहते हुए उसे 12 वर्षों तक धन-धान्य से पूर्ण रखा। लक्ष्मी जी ने किसान से त्रयोदशी के दिन उनकी पूजा करने और दीपक जलाने के लिए कहा ताकि उनके घर में हमेशा समृद्धि बनी रहे। यह कथा दर्शाती है कि धनतेरस पर लक्ष्मी जी की पूजा करने से समृद्धि आती है। धनतेरस पर मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का भी विधान है, ताकि परिवार के सदस्यों की मृत्यु से रक्षा हो सके।

