Rawalpindi History Hindi Mein: कश्मीर में हुए आतंकवादी हमलों के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच में तनाव जारी है, इसी बीच भारत ने पाकिस्तान के ड्रोन हमलों की जवाबी कार्यवाई करते हुए, पाकिस्तान के कई सैन्य ठिकानों को अपना निशाना बनाया है। इनमें से एक शहर रावलपिंडी भी है, जो पाकिस्तान का चौथा बड़ा शहर है, इसके साथ ही यह पाकिस्तान का सैनिक मुख्यालय है, पाकिस्तान के सैन्य शासन के दौर में यह पाकिस्तान की अस्थाई राजधानी भी था। माना जाता है रावलपिंडी शहर का नाम भारतीय इतिहास के योद्धा बप्पा रावल के नाम पर पड़ा है, जिन्होंने अरबों से युद्ध के दौरान यहाँ अपनी सैन्य चौकी स्थापित की थी।
कौन थे बप्पा रावल | Who was Bappa Rawal
बप्पा रावल 8 वीं शताब्दी के एक राजपूत राजा थे, जो मेवाड़ में गुहिल राज्य के संस्थापक माने जाते हैं। गुहिल चूंकि सिसौदिया राजपूतों के पूर्वज हैं, इस हिसाब से वह राणा सांगा और महाराणा प्रताप के पूर्वज थे। इसके साथ ही माना जाता है, वह चित्तौड़ के आखिरी मौर्य शासक राजा मान मोरी के भांजे थे। राजस्थान के सुप्रसिद्ध इतिहास गौरीशंकर हीराचंद ओझा के अनुसार उनका मूल नाम कालाभोज था, बप्पा एक उपाधि थी और रावल एक सामंतसूचक शब्द था। बहुत संभव है वह प्रतिहारों के सामंत रहें होंगे।
प्रतिहार जिन्होंने त्रिपक्षीय संघर्ष में अपने प्रतिद्वंदी दक्षिण के राष्ट्रकूटों और बंगाल के पालों को पराजित कर उत्तरभारत के सम्राट बने थे। लेकिन इसके साथ ही उन्हें अरबों से संघर्ष के लिए जाना जाता है, अरबी लेखकों और यात्रियों के ग्रंथ में भी प्रतिहारों को अरबों का सबसे घोर शत्रु बताया गया है। इसीलिए बप्पा रावल ने भी प्रतिहार शासकों के नेतृत्व में अरबों से घनघोर युद्ध किए।
बप्पा रावल के नाम पर बसा रावलपिंडी
सुप्रसिद्ध इतिहास सी. वी. वैद्य ने बप्पा रावल की तुलना फ़्रांस के सेनानायक चार्ल्स मार्टिल से की है, जिसने यूरोप की तरफ बढ़ रहे अरबों के बाढ़ को रोक दिया था। इसी तरह बप्पा रावल ने अरबों से घनघोर संघर्ष करके उन्हें राजपूताने, गुजरात और मालवा से खदेड़ कर सिंध के पार जाने को मजबूर कर दिया था। इसी क्रम में उन्होंने कई सैनिक चौकियों की स्थापना की थी जिसमें से एक चौकी पंजाब के पुराने तक्षशिला में बनाई जो, चूंकि पिंडी का अर्थ पंजाबी में गाँव होता है और बप्पा रावल द्वारा स्थापित की गई थी इसीलिए इस शहर को रावलपिंडी कहा जाने लगा।
क्या है रावलपिंडी का इतिहास | What is the history of Rawalpindi
प्राचीन समय में रावलपिंडी का क्षेत्र गांधार महाजनपद में था। यहीं पास में सुप्रसिद्ध तक्षशिला विद्यापीठ भी था। बाद में मौर्य राजाओं के समय यह मगध साम्राज्य के अंतर्गत आ गया। उनके बाद कुषाण, शक और हूणों ने भी यहाँ शासन किया। 14 वीं शताब्दी में जब भारत में मंगोलों के आक्रमण हुए तब इसे फतेहपुर बावरी कहते थे। कहा जाता है मंगोलों के आक्रमणों से यह शहर ध्वस्त हो गया था। लेकिन बाद में एक स्थानीय गाखर मुस्लिम सरदार झंडे खान ने इसे फिर से आबाद किया। हालांकि कुछ विद्वानों के अनुसार रावल पुजारियों के कारण इस गाँव का नाम रावलपिंडी पड़ा।
ब्रिटिशकाल में बना सैन्य अड्डा
मध्यकाल में यह मुग़ल साम्राज्य के अधीन रहा और उनके पतन के बाद यह सिख साम्राज्य का हिस्सा बन गया। सिखों की पराजय के बाद यहाँ अंग्रेजों का अधिकार हो गया। पश्चिमोत्तर प्रांतों पर और अफगानों पर नियंत्रण के लिए, अंग्रेजों ने यहाँ एक सैन्य छावनी स्थापित की। आगे चलकर यह ब्रिटिश सेना के उत्तरी कमान का मुख्यालय बन गया।
पाकिस्तानी सेना का मुख्यालय
भारत की आजादी और देश के बंटवारे के बाद जब पाकिस्तान बना, पाकिस्तान ने अपनी राजधानी के तौर पर तब सबसे बड़े शहर कराची को चुना। लेकिन कराची समुद्र तटवर्ती क्षेत्र था, उसकी लोकेशन भी शेष पाकिस्तान से बहुत किनारे थी। इसीलिए पाकिस्तान के तब के सेना प्रमुख जनरल डगलस ग्रेसी ने उत्तरी कमान के मुख्यालय रावलपिंडी को ही सैन्य मुख्यालय के तौर पर बनाए रखा। इसके बाद पाकिस्तान में सेना का प्रभाव भी बढ़ता ही रहा, इसीलिए इस्लामाबाद को राजधानी के तौर पर चुनने के बाद भी पाकिस्तानी सेना ने रावलपिंडी को ही अपना मुख्यालय बनाए रखा।