“गोत्र” (Gotra) एक ऐसी चीज है जिसके बारे में हर कोई कभी न कभी अवश्य पूछता है। ऐसा बोलते हैं की मनुष्य अपने काम के साथ साथ अपने गोत्र से भी समाज मे अपनी पहचान और पद निश्चित करता है। यूं तो सेकर की नजरों मे हर जाति के लोग एक समान होते हैं। लेकिन सामाजिक दृष्टि मे गोत्र”गोत्र” (Gotra) एक ऐसी चीज है जिसके बारे में हर कोई कभी न कभी अवश्य पूछता है। ऐसा बोलते हैं की मनुष्य अपने काम के साथ साथ अपने गोत्र से भी समाज मे अपनी पहचान और पद निश्चित करता है। यूं तो सेकर की नजरों मे हर जाति के लोग एक समान होते हैं। लेकिन सामाजिक दृष्टि मे गोत्र (Gotra )की सबसे अधिक अहमियत मानी जाती है। हर जाति के अपने अलग-अलग गोता होते हैं। भारत मे समाज को 4 वर्णों मे विभाजित किया गया है, जिसमे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र. आज हम वर्णों मे सबसे पहले वर्ण “ब्राह्मण” के गोत्रों के इतिहास, उत्पत्ति और ये भी जानेंगे की कौन है सबसे उच्च कोटी का ब्राह्मण?
ब्राह्मण गोत्रों का इतिहास
गोत्र (Gotra) प्रथा की शुरुआत वैदिक काल (लगभग 1500–1000 ईसा पूर्व) में हुई मानी जाती है। प्राचीन मान्यताओ के हिसाब से गोत्रों (Gotra) की उत्पत्ति 7 ब्राह्मण ऋषियों से ही हुई है, जिन्हे सप्त ऋषि के नाम से जाना जाता है। जो ऋषि वशिष्ट, ऋषि विश्वामित्र(कौशिक), ऋषि कश्यप, ऋषि भारद्वाज, ऋषि अत्रि, ऋषि अगस्त्य, ऋषि जमदग्नि के नाम से प्रचलित हैं। इन सात ऋषियों से ही गोत्र (Gotra) की स्थापना हुई थी. और जब इन सभी ऋषियों ने अपने शिष्यों को और अपने पुत्रों को शिक्षा दी तो वे सभी छात्र और पुत्रों ने इन सात ऋषियों में से जिस ऋषि से शिक्षा ली वे उनके ही नाम से जाने जाने लगें जिसे बाद मे गोत्र कहा गया। उदाहरण के तौर पर- जैसे ऋषि विश्वामित्र ने अपने पुत्र या अपने शिष्यों को शिक्षा दी और उन्ही की दी गई शिक्षा और ज्ञान को उनके शिष्यों द्वारा वंशानुगत रूप मे आगे बढ़ाई गई तो वे सभी ऋषि विश्वामित्र के वंशज या उनकी गोत्र (Gotra) के कहलाएंगे। उसके बाद फिर धीरे धीरे गोत्र एक पहचान बन गई जिसे आज तक अपनाया जाता है और आगे भी अपनाया जा सकता है।
कौन है सबसे उच्च कोटि का ब्राह्मण ?
हिन्दू धर्म में यूं तो हर ब्राह्मण पूज्यनीय होता है लेकिन इनमे भी उच्च कोटि के ब्राह्मणों की श्रेणी तय की गई है। भारत में करीब 49 प्रमुख गोत्र (Gotra) ब्राह्मणों में माने जाते हैं। प्रत्येक गोत्र में कई उप-गोत्र (उपशाखाएँ या प्रवर) होते हैं। लेकिन इनमें से सप्त ऋषियों के वंशज सबसे उच्च कोटि के ब्राह्मण कहलाये जाते हैं। ब्राह्मणों मे सांडिल्य गोत्र (Gotra) को सबसे सर्वश्रेष्ठ माना जाता है. इसके बाद अत्रि, भृगु, वशिष्ट, गौतम, भारद्वाज, शौनक और काश्यप गोत्र सबसे उच्च माने जाते हैं। इन तमाम गोटों के कई अलग अलग उपनाम भी निर्धारित किए गए हैं। जैसे- गर्ग गोत्र (उपनाम मिश्र), कौशिक गोत्र (उपनाम मिश्र, कौशिक), भरद्वाज गोत्र (उपनाम पांडे, मिश्र) आदि।