राहुल गांधी को (Rahul Gandhi) ‘नेता विपक्ष’ बनाया गया है। 18वीं लोकसभा का पहला सत्र भी शुरू हो चुका है। ऐसे में कांग्रेस के कुछ नेताओं ने देश में Shadow Cabinet के गठन की मांग की है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में ऐसी जानकारी दी गई है। अगर ऐसा होता है तो राहुल गांधी इस कैबिनेट के ‘शैडो प्राइम मिनिस्टर’ कहलाएंगे। वैसे तो Shadow Cabinet की अवधारणा ब्रिटेन की है, लेकिन भारत में इसकी मांग नई नहीं है। साल 2022 में तेलंगाना कांग्रेस की ओर से राज्य में शैडो कैबिनेट बनाने की मांग की गई थी। इस लेख में हम इस मुद्दे पर विस्तार से बात करेंगे।
जैसा कि नाम से भी पता चलता है, Shadow Cabinet एक समानांतर कैबिनेट होती है जिसके पास कोई वास्तविक शक्ति नहीं होती। शैडो कैबिनेट का काम सरकार के कामकाज पर नजर रखना होता है। और जहां कहीं कोई कमी या अनियमितता हो, उसे उजागर करना, उसके लिए आवाज उठाना। लगभग विपक्ष जैसा ही काम लेकिन थोड़े संगठित रूप में। यानी सबकी जिम्मेदारी साफ। सरकार के किस विभाग की निगरानी कौन करेगा, इसकी जिम्मेदारियों का साफ बंटवारा। इस प्रणाली में एक ‘छाया रक्षा मंत्री’ हो सकता है जो रक्षा मंत्रालय के कामकाज को देखता है, एक ‘छाया वित्त मंत्री’ हो सकता है जो वित्त मंत्री के कामकाज पर नज़र रखता है।
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शैडो कैबिनेट की अवधारणा कहां से आई?
शैडो कैबिनेट (Shadow Cabinet) एक ऐसी व्यवस्था है जो ब्रिटेन से आई है। हमारी संसदीय व्यवस्था भी ब्रिटिश संसद की तर्ज पर काम करती है। ब्रिटिश संसद की आधिकारिक वेबसाइट पर शैडो कैबिनेट को परिभाषित किया गया है। इसके अनुसार,
“छाया मंत्रिमंडल (Shadow Cabinet) चयनित वरिष्ठ प्रवक्ताओं की एक टीम है। उनका चयन ‘विपक्ष के नेता’ द्वारा किया जाता है। छाया मंत्रिमंडल के प्रत्येक सदस्य को कुछ विशिष्ट नीतियाँ और संबंधित जिम्मेदारियाँ दी जाती हैं। उनका काम मंत्रिमंडल में अपने समकक्ष से सवाल पूछना और उन्हें चुनौती देना है। इस तरह आधिकारिक विपक्ष खुद को एक वैकल्पिक सरकार के रूप में पेश कर सकता है।”
पीआरएस इंडिया (PRS India) की एक रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन के अलावा कनाडा, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया में भी शैडो कैबिनेट सिस्टम है। कनाडा में मौजूदा शैडो कैबिनेट में कंजरवेटिव पार्टी के सदस्य शामिल हैं और पियरे पोलीवरे को शैडो पीएम चुना गया है। ऑस्ट्रेलिया के शैडो कैबिनेट में विपक्षी लिबरल पार्टी के सदस्य शामिल हैं। यहां पीटर डटन को विपक्ष का नेता चुना गया है। न्यूजीलैंड में लेबर पार्टी ने शैडो कैबिनेट का गठन किया है। PRS India एक गैर-लाभकारी संगठन है जो संसदीय प्रक्रियाओं से जुड़े विषयों पर शोध करता है।
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भारत में कब की गई मांग?
हालांकि भारत में शैडो कैबिनेट (Shadow Cabinet) के सफल परीक्षण की कोई बड़ी खबर नहीं है। लेकिन समय-समय पर ऐसे प्रयोग होते रहे हैं। जैसे 2014 में बीजेपी से हारने के बाद कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने भी कुछ ऐसा ही किया था। उन्होंने 7 शैडो कैबिनेट कमेटियां बनाई थीं। जिनका काम पीएम मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में प्रमुख मंत्रालयों के फैसलों और नीतियों पर नजर रखना था। तब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को रेलवे और लेबर कमेटी का चेयरमैन बनाया गया था। इसी तरह पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी को रक्षा संबंधी मुद्दों की निगरानी करने वाली समिति का अध्यक्ष बनाया गया था।
राज्यों में भी किए गए प्रयोग
डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2014 में मध्य प्रदेश में भी इसी तरह का प्रयोग किया गया था। तब राज्य में विपक्ष की भूमिका निभा रही कांग्रेस ने शैडो कैबिनेट (Shadow Cabinet) का गठन किया था। कहा गया था कि यह कैबिनेट सरकार के कामकाज पर कड़ी नजर रखेगी। तब मध्य प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता सत्यप्रकाश कटारे थे। उन्होंने ही इस कैबिनेट की घोषणा की थी। उन्होंने कहा था कि हाल के चुनावों में कांग्रेस लगातार हार रही है। इसलिए जब उन्हें विपक्ष का नेता बनाया गया तो उन्होंने शैडो कैबिनेट के बारे में सोचा। तब राज्य के 44 विधायकों को अलग-अलग विभागों की जिम्मेदारी दी गई थी। वर्ष 2022 में तेलंगाना में भी कांग्रेस द्वारा शैडो कैबिनेट बनाने की चर्चा थी।
भाजपा और आप ने भी किया प्रयास
कांग्रेस के अलावा भाजपा और आम आदमी पार्टी ने भी इस प्रयोग में हाथ आजमाया है। इससे पहले भाजपा महाराष्ट्र, गोवा, पंजाब और दिल्ली में ऐसा प्रयास कर चुकी है। जहां वे विपक्ष की भूमिका में थे। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद भाजपा नेता हर्षवर्धन ने भी छाया मंत्रिमंडल बनाने की घोषणा की थी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।