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SCO अर्थात शंघाई सहयोग संगठन क्या है, भारत के लिए यह क्यों महत्वपूर्ण है

21वीं सदी के वैश्विक परिदृश्य में, जब पश्चिमी देशों की ओर झुके हुए बहुपक्षीय संगठन दुनिया के शक्ति संतुलन को प्रभावित कर रहे थे। तब एशिया के देशों ने अपने हितों और सुरक्षा के लिए एक वैकल्पिक मंच खड़ा किया, शंघाई सहयोग संगठन (Shanghai Cooperation Organization – SCO)। यह संगठन आज एशिया की भौगोलिक, रणनीतिक और आर्थिक आकांक्षाओं का प्रतिनिधि बन चुका है।

कब हुई SCO की स्थापना

शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की स्थापना 15 जून 2001 को शंघाई (चीन) में की गई थी। जिसकी स्थापना 1996 में चीन, रूस, कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान और ताजिकिस्तान ने सीमा विवादों के समाधान और विश्वास-निर्माण के लिए की थी। 2001 में उज़्बेकिस्तान के शामिल होने के बाद यह “शंघाई सहयोग संगठन” बना। 2017 में भारत और पाकिस्तान की सदस्यता से यह और अधिक व्यापक बना। 2023 में ईरान को भी पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल किया गया, जिससे यह संगठन अब 9 देशों का समूह बन गया है।

पर्यवेक्षक और संवाद साझेदार देश

अफ़ग़ानिस्तान, बेलारूस और मंगोलिया इसके पर्यवेक्षक देश हैं। जबकि तुर्की, श्रीलंका, नेपाल, अज़रबैजान, कंबोडिया, कतर, सऊदी अरब, मिस्र आदि देश SCO के संवाद साझेदार हैं।

SCO का मुख्य उद्देश्य क्या है

SCO का मुख्य उद्देश्य क्षेत्रीय शांति, सुरक्षा और स्थिरता को सुनिश्चित करना है। इसके अलावा यह संगठन कई क्षेत्रों में भी सक्रिय भूमिका निभाता है-

भारत और SCO

भारत की SCO में भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। भारत 2005 में इसका पर्यवेक्षक देश बना और 2017 में पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हुआ। भारत इस मंच का उपयोग सीमापार आतंकवाद, ऊर्जा सुरक्षा, व्यापार, और अफगानिस्तान नीति में साझेदारी हेतु करता है। वर्ष 2023 में भारत ने SCO की अध्यक्षता की, जिसके दौरान उसने डिजिटल सहयोग, आतंकवाद विरोध, और स्टार्टअप इनोवेशन जैसे विषयों को प्राथमिकता दी।

भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है SCO

शंघाई सहयोग संगठन एक ऐसा बहुपक्षीय मंच है, जो एशिया में स्थायित्व और विकास के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भारत जैसे देश के लिए यह न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा को मजबूत करने का अवसर देता है, बल्कि एशिया की बहुध्रुवीय राजनीति में एक सशक्त आवाज बनने का माध्यम भी है।

SCO की चुनौतियां

हालांकि SCO एक संभावनाशील मंच है, लेकिन इसकी कार्यप्रणाली पर कुछ सवाल उठते हैं। सदस्य देशों के आपसी मतभेद, विशेषकर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव है। कई सदस्य देशों जैसे- भारत और चीन के मध्य के बीच विश्वास की कमी। संगठन की निर्णय लेने की प्रक्रिया अभी धीमी है। इस संगठन में चीन और रूस जैसे बड़े देशों का वर्चस्व है, इसीलिए इस संगठन में छोटे देशों की सीमित भूमिका है। आर्थिक सहयोग की योजनाएँ अभी तक ठोस रूप में सामने नहीं आ पाईं हैं।

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