What is religion: जब कभी भी “धर्म” (Dharma) की चर्चा होती है तो लोग इसे मज़हब से जोड़ते हैं। लेकिन क्या धर्म (Dharma) की परिभाषा मज़हब है? जवाब है नहीं धर्म (Dharma) एक धारणा है। जो मात्र रीति–रिवाजों तक सीमित नहीं है। धर्म की परिभाषा बहुत बड़ी है। लेकिन आज के समय में धर्म मात्र मजहब जैसे– हिंदू (Hindu),मुस्लिम (Muslim), सिक्ख (Sikkha), क्रिस्चियन (Christian) तक ही सिमट कर रह गया है, इसका असली मतलब, असली उद्देश्य और असली महत्व के बारे में किसी को कुछ नहीं पता लेकिन इसी धर्म (Dharma) के नाम पर अधर्म करना सबको आता है। आइए आज हम जानते है, धर्म (Dharma) का असली अर्थ।
धर्म का अर्थ क्या है?
What is the meaning of religion?: धर्म (Dharma) कोई मज़हब, पूजा पाठ या फिर रीति रिवाज नहीं है। धर्म (Dharma) एक सही आचरण, दायित्व, धैर्य (धृति) क्षमा, आत्म-नियंत्रण, चोरी न करना, शुद्धता, इंद्रियों का नियंत्रण ज्ञान, सत्य, क्रोध न करना। ये सब धर्म (Dharma) है। शिक्षक का धर्म है ज्ञान देना, माता पिता का धर्म है बच्चों को संस्कार देना, पति पत्नी का धर्म है एक दूसरे के प्रति ईमानदार रहना।
भगवद्गीता के अनुसार “धर्म” की असली परिभाषा
The true definition of “Dharma” according to Bhagavad Gita: भगवद्गीता में श्री कृष्ण ने कहा है, की धर्म (Dharma) कर्तव्य, स्वभाव, और न्यायपूर्ण कर्म होता है। इनका पालन करने वाला व्यक्ति धर्म (Dharma) का पक्का है और न करने वाला अधर्मी। किसी की जाती,समाज या वर्ग धर्म (Dharma) को परिभाषित और धर्म (Dharma) का मतलब नहीं बताती है।
भगवद्गीता में धर्म का अर्थ समझने के लिए श्लोक हैं जैसे–
- स्वधर्मे निधनं श्रेयः, परधर्मो भयावहः।”
अर्थात् अपने स्वभाव और कर्तव्य के अनुसार कर्म करना ही धर्म है, भले उसमें मृत्यु क्यों न हो। - “यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।”
अर्थात् जो श्रेष्ठजन करते हैं, वही धर्म दूसरों के लिए मार्गदर्शक बनता है। - “धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।”
अर्थात् जब-जब अधर्म बढ़ता है, मैं धर्म की स्थापना के लिए जन्म लेता हूँ।