Bharat Ratna Lal Krishna Advani: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार (3 फरवरी) को भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े नेता और राम मंदिर के अगुआ लाल कृष्ण अडवाणी को भारत का सर्वोच्य सम्मान भारत रत्न देने की घोषणा की
Bharat Ratna To LK Advani: देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पार्टी के सबसे बड़े नेता और राम मंदिर आंदोलन के जनक कहे जाने वाले लाल कृष्ण अडवाणी को देश का सर्वोच्य सम्मान देने का एलान किया है. लाल कृष्ण अडवाणी भारतीय जनता पार्टी के वो नेता है जिन्होंने पार्टी फर्श से अर्श तक पहुंचाया है. 1984 के लोकसभा चुनाव में पार्टी मात्र दो सीटों पर सिमट गई थी यह उनका ही करिश्मा था की पार्टी को 1989 के चुनाव में 85 सीटें मिली थी. लाल कृष्ण आडवणी को अंततः भारत रत्न देकर PM Narendra Modi ने अपना गुरु ऋण उतार दिया है. लेकिन इसके कई राजनितिक मायने निकाले जा रहे हैं. मोदी सरकार के सामने हैट्रिक लगाने की चुनौती है और इस चुनौती से पर पाने की कवायद शुरू हो गई है. अभी कुछ दिन बिहार के जननायक कहे जाने वाले कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत भारत रत्न देने के पीछे भी राजनितिक पेच ही था वरना 10 दिन के अंदर दो-दो भारत रत्न देने के पीछे क्या मजबूरी आन पड़ी थी? बीजेपी समर्थन तो पिछले एक सालों से लाल कृष्ण अडवाणी को भारत रत्न देने की मांग कर रहे थे. फिर ऐसा क्या हुआ जब चुनाव में मात्र तीन महीने होने को बचें हैं तो उनको भारत रत्न दिया जा रहा. तो आइए पूरा माजरा समझते हैं.
क्या ये गुरु का सम्मान है?
Lal Krishna Advani ko Bharat Ratna kyu mila: वर्ष 1991 में जब Lal Krishna Advani ने राम रथ यात्रा (Advani Ram Rath Yatra) की शुरुआत गुजरात के सोमनाथ से शुरू हुई थी तब गुजरात में यात्रा की पूरी जिम्मेदारी नरेंद्र मोदी को दी थी. इतना ही नहीं राजनितिक पंडितों के अनुसार नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाने में अडवाणी का ही हाथ था, और जिस तरह से Narendra Modi हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के एजेंडे को आगे बड़ा रहे हैं. उसकी शुरुआत लाल कृष्ण अडवाणी ने ही किया था. कुछ लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि लाल कृष्ण अडवाणी को सर्वोच्य सम्मान देकर मोदी अपना आभार व्यक्त किया है.
दूसरी वजह ये भी हो सकती है कि हाल ही में 22 जनवरी को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम था. दुनिया भर की बड़ी हस्तियों को बुलाया था. लेकिन राम मंदिर आंदोलन के सूत्रधार रहे मुरली मनोहर जोशी और लाल कृष्ण अडवाणी को नहीं बुलाया गया था. तब खूब किरकिरी हुई हुई थी जितनी मुँह उतनी तरह की बाते हो रही थी. कोई कह रहा था राम मंदिर के लिए किए गए अडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के संघर्षों को भारतीय जनता पार्टी नजरअंदाज कर रही है. हालांकि ऐसा नहीं था कि इन दो नेताओं को राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा प्रोग्राम में इन्हे निमंत्रण नहीं भेजा गया था. बल्कि राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने कहा था कि अडवाणी जी होना अनिवार्य है लेकिन हम यह कहेंगे की आप न आए आप आयु अधिक है और अपने अभी घुटने भी बदलवाए हैं.
ट्रस्ट ने बार-बार उनके खराब स्वास्थ्य का हवाला दिया, लेकिन यह बात कई मायनो में नागवार गुजरती है, क्योंकि, “लोगों को इनवाइट किया जाता है, लेकिन आडवाणी जी को अनइनवाइट किया गया और ये सारे देश ने देखा. चंपत राय ने कहा कि आप मत आओ. जब आप उन्हीं की उम्र के दलाई लामा को बुला सकते हैं, तो आडवाणी को क्यों नहीं? इससे बीजेपी को शर्मिंदगी हुई, उसको कहीं न कहीं डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश की गई है. BJP दस साल से सत्ता में हैं, अगर चाहती तो पहले भी दिया जा सकता था, लेकिन राम मंदिर कार्यक्रम शायद वह मौका है जिसने भारत रत्न का रास्ता साफ किया.”