International Family Day In Hindi | न्याज़िया बेगम: आज है अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस जो हर साल 15 मई को मनाया जाता है। इस दिवस की घोषणा संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 1993 में की गई थी और ये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा परिवारों को दिए जाने वाले महत्व को दर्शाता है। अंतर्राष्ट्रीय दिवस परिवारों से संबंधित मुद्दों के बारे में जागरूकता को बढ़ावा देने और परिवारों को प्रभावित करने वाली सामाजिक, आर्थिक और जनसांख्यिकीय प्रक्रियाओं के बारे में ज्ञान बढ़ाने का अवसर प्रदान करता है।
अकेले रहने की हमारी ख्वाहिशें
पर क्या आपको लगता है कि हम अपने परिवार को एकजुट रखने लिए उतने प्रयास करते हैं ? संयुक्त परिवार से निकल कर हम एकल परिवार तक पहुंच गए हैं लेकिन क्या उसमें भी उतने खुश हैं जितने होना चाहिए। जबकि अपना एकाकी परिवार बनाने के लिए भी हमने बड़ी बग़ावत की, घर वालों के खिलाफ जाकर अपना चूल्हा अलग किया पर किसलिए, क्या सही वजह याद है आपको? क्या ऐसी कोई कमी थी जो सबके साथ रहकर पूरी नहीं हो सकती थी? और अब वो कमी शायद नहीं है। लेकिन क्या दूसरी कोई कमी नहीं है, जो आपका संयुक्त परिवार ही पूरा कर सकता था?
परिवार एक छायादार वृक्ष की तरह
क्योंकि परिवार वो वृक्ष है जिसकी छाया में हमें ज़िंदगी की कड़ी धूप का एहसास नहीं होता, जिसकी जड़े संस्कार रूपी पानी हमारी शाख़ों तक पहुंचाती हैं और परिवार का हर सदस्य हराभरा हो जाता है। और ये पेड़, कलियों, फूलों और फलों से सज जाता है मुस्कुराता है।फिर क्यों इस घनी छांव से हम दूर चले आए? और यक़ीन मानिए हम केवल एक दूसरे पर दोष प्रत्यारोप ही करते रह जाएंगे अगर किसी ने पूछ लिया कि क्या आप चाहते थे। अपने माता पिता से दूर अपना एकाकी परिवार बनाना तब शायद आप ये भी कह दें, कि नहीं मै तो ऐसा नहीं चाहता या चाहती थी। या उनकी-उनकी आपस में नहीं बनी और उन्होंने कहां कि हमें अलग हो जाना चाहिए, पर क्या ये जवाब, ये हल सही है?
बुजुर्गों डांट देती है सीख
आपको नहीं लगता जहां चार लोग साथ रहते हैं, बड़े बुज़ुर्ग साथ रहते हैं, वहां थोड़ी खट पिट तो ही जाती है, जिसका भी अपना अलग मज़ा है, क्योंकि बड़ों की डांट भी क़िस्मत वालों को मिलती है। उसमें गुस्से से ज़्यादा प्यार छुपा होता है हमारे बड़े हमें सही रास्ता दिखाना चाहते हैं। इसलिए हमारी हर ग़लती से हमें कुछ सीखाना चाहते हैं, हमारा मार्ग दर्शन करना चाहते हैं।
आप खुद सोचिए ! जब हम ग़लती करते हैं और कोई हाथ पकड़ने वाला नहीं होता तो क्या हम अकेले नहीं पड़ते कमज़ोर नहीं पड़ते? और जब हमसे छोटा ग़लती करता है तो हम उसे ग़लती करने से उस तरह रोक पाते हैं जैसे हमारे मां बाप रोकते थे, नहीं न क्योंकि उनके पास अनुभव और ज्ञान का संसार होता है, जो हम अपने बड़ों से ज़्यादा नहीं प्राप्त कर पाएंगे उस उम्र से पहले, जिसके लिए समझौते करना ज़रूरी है सबको अपना मानना ज़रूरी है। क्योंकि अपना मानने भर से काफी जिले शिकवे तो ऐसे ही दूर हो जाते हैं, नहीं !
पहले का संयुक्त परिवार का समय
संसाधनों की कमी की बात करें, तो वो हमारे माता पिता ने भी जुटाए थे, और तब जब एक परिवार के अपने, एक दो नहीं बल्कि कई बच्चे हुआ करते थे। और उस पे भी चाची, चाचा, ताऊ, ताई सबके परिवार एक घर में रहते थे। तब कैसे गुज़ारा हो जाता था किसी को किसी के कुछ ज़्यादा ले लेने से कोई परेशानी नहीं होती थी। जो भी था वो सबके लिए था, कमज़ोर का कोई हांथ नहीं छोड़ता था, बल्कि उसे भी मज़बूत बनाने की कोशिश करता था। पूरा परिवार और शायद यही वो एकता थी जो एक एक परिवार को मज़बूत करते हुए, पूरे राष्ट्र को सशक्त बनाती थी। हर द्वार का दीपक दूसरे घर का भी अंधियारा मिटाने में सक्षम था। फिर कहां खो गया है वो सबकुछ जिसमें हमारे लिए हर कोई अपना था, परदेस में भी एक परिवार मिल जाता था हमको, अगल बगल सबके दुख तकलीफ ख़ुशी और ग़म की ख़बर होती थी, और उनमें हम साथ खड़े होते थे। कोई इंसान खुद को अकेला नहीं महसूस करता था। क्या है ? धीरे धीरे ये सब खो जाने की वजह, क्या हमने अपनी ख़्वाहिशों का दायरा इतना बड़ा कर लिया है, कि उसमें किसी के आ जाने से ख़लल पड़ती है? थोड़े में खुश होने की आदत नहीं रही हमारी? बड़ों का आशीर्वाद और छोटों के प्यार से भी बढ़के हमारे लिए कुछ है? अगर नहीं तो क्या फिर उस आंगन की तरफ लौटे जो रिश्तों की डोर से बंधा कुटुम्ब कहलाता था, जहां कोई अजनबी नहीं था।