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What is Electoral Bond: इलेक्टोरल बांड क्या है? इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट और सरकार बीच क्या चल रहा!

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सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बॉन्ड स्किम मामले में गुरुवार 2 नवंबर को तीसरे दिन बहस चल रही थी. सुनवाई के दौरान CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सरकार को इसकी क्या जरुरत है? सरकार तो वैसे भी जानती है कि चंदा कौन दे रहा है. इलेक्टोरल बांड मिलते ही पार्टी को पता चल जाता है कि किसने कितना पैसा दिया है।

इस पर सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि किसने कितना पैसा दिया है, सरकार ये नहीं जानना चाहती है. यहां तक कि डोनेट करने वाला भी अपनी पहचान जाहिर नहीं करना चाहता है। चंदा देने वाला नहीं चाहता कि किसी दूसरी पार्टी को इसका पता चले. उन्होंने कहा अगर मैं कांग्रेस को पइसे डोनेट कर रहा हूँ तो मैं नहीं चाहुगा की भाजपा को इसका पता चले.

इलेक्टोरल बॉन्ड की वैलिडिटी के मामले की सुनवाई Chief Justice DY Chandrachud, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच कर रही है। इसे लेकर चार याचिकाएं दाखिल की गई हैं। याचिकाकर्ताओं में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR), कांग्रेस नेता जया ठाकुर और सीपीएम शामिल है।

केंद्र सरकार की ओर से Attorney General R Venkatraman और Solicitor General Tushar Mehta सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए हैं। सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने याचिकाकर्ताओं की तरफ से पैरवी की।

इलेक्टोरल बांड की शुरुआत कब से हुई?

केंद्र सरकार ने 2 जनवरी 2018 को बॉन्ड स्किम को नोटिफाई किया था. स्किम के प्रोविज़न अनुसार इलेक्टोरल बॉन्ड को कोई भी नागरिक अकेले या किसी के साथ मिलकर खरीद सकता है. योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई.

इलेक्टोरल बांड है क्या?

What is Electoral Bond in hindi: वर्ष 2017 के बजट में उस समय के Finance Minister Arun Jaitley ने चुनावी या इलेक्टोरल बांड स्किम को पेश किया था. 29 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है. जिसे बैंक नोट भी कहते हैं. इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है.

अगर आप इसे खरीदना चाहते हैं तो आपको ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच से मिल जाएगा। इसे खरीदने वाला अपनी पसंदीदा पार्टी को इसे डोनेट कर सकता है. बस वो पार्टी इसके लिए एलिजिबल होनी चाहिए।

अब ये कैसे पता चलेगा की पार्टी एलिजिबल है कि नहीं?

बॉन्ड खरीदने वाला एक हजार से लेकर एक करोड़ तक का बॉन्ड खरीद सकता है. खरीदने वाले को बैंक में अपनी पूरी KYC डिटेल देनी होती हैं. अब खरीदने वाला जिस भी पार्टी को डोनेट करना चाहता है. उससे पिछले विधानसभा या लोकसभा में कम से कम एक परसेंट वोट मिला होना चाहिए। डोनर को बॉन्ड डोनेट करने के लिए 15 दिन के अंदर इसे उस पार्टी को चुनाव आयोग से वैरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवाना होता है।

चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी…

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