Collegium System Explained In Hindi: कॉलेजियम सिस्टम क्या है?

What Is Collegium System Explained In Hindi: भारत में ‘जज’ का पद सबसे बड़ा माना गया है. एक सिविल जज के सामने IAS, IPS, मिनिस्टर सभी को सलामी ठोंकनी पड़ती है. जज ऐसा पद होता है जिसके खिलाफ तबतक कोई कार्रवाई नहीं हो सकती जबतक की सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया न चाहे। ये जग जाहिर है कि न्यायधीश बने बैठे जज पैसों के बदले अन्याय करते हैं. दिल्ली हाईकोर्ट का ही केस देख लीजिये, जस्टिस यशवंत वर्मा के घर में इफरात पैसा मिला (Cash Found In Delhi HC Judge Yashwant Verma House). लेकिन क्या एक्शन लिया गया. CJI Sanjiv Khanna ने तुरंत Collegium Emergency Meeting बुलाई और जज का ट्रांसफर अलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया गया. कैश कहां से आया, किसने दिया, किस केस में गोलमाल करने के बदले मिला, कितना मिला, कहां गया? ये सब से कोई मतलब नहीं। इस कांड का खुलासा होने के बाद अब लोग Collegium System के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं. ये ऐसा सिस्टम है जिसने अंधे कानून को पूरी तरह लकवाग्रस्त कर दिया है.

कॉलेजियम सिस्टम क्या है?

Collegium Meaning: कॉलेजियम का मतलब होता है समूह, न्याय की भाषा में जजों का समूह। ये वरिष्ठ जजों का समूह आपस में बैठकर यह तय करता है कि किस जज की नियुक्ति हाईकोर्ट में होनी चाहिए और किसी सुप्रीम कोर्ट में, किस जज का तबादला करना है, किसका प्रमोशन, किस वकील को सीधा जज बना देना है, किसका ट्रांसफर करना है सब कॉलेजियम तय करता है.

कॉलेजियम में कितने सदस्य होते हैं

How Many Members Are In Collegium: कॉलेजियम में भारत के मुख्य न्यायाधीश यानी CJI के साथ सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ जज होते हैं. जबकि हाईकोर्ट कॉलेजियम में उस हाईकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश और 2 वरिष्ठ जज होते हैं. यही लोग आपस में ही एक दूसरे की शिफारिश करते रहते हैं.

उदाहरण के लिए जैसे मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में किसी जज का पद खाली है, तो एमपी हाईकोर्ट का कॉलेजियम एक वकील का नाम सुझाता है. यह नाम सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम में जाता है, फिर केंद्र के पास फिर उसकी IB जांच करती है इसके बाद राष्ट्रपति उसकी नियुक्ति करते हैं. आपको सत्र न्यायलय का जज बनने के लिए पेपर पास करना पड़ता है लेकिन आप अगर हाईकोर्ट में वकील हैं और कॉलेजियम के लोग आप पर मेहरबान हैं तो आप क्या पता चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया बन जाएं।

कॉलेजियम सिस्टम में जजों की नियुक्ति जज ही करते हैं. इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि इसमें कोई सरकार का हस्तक्षेप नहीं होता। ये सही बात है कि न्यायपालिका में बैठे जजों पर सरकार का नियंत्रण नहीं होना चाहिए मगर होना तो यह भी नहीं चाहिए कि लोग अपने खास, रिश्तेदार, भतीजा, भांजा को जज बना दें.

कॉलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता नहीं होती, यह बंद कमरे में होता है. अपने लोगों को प्राथमिकता दी जाती है, साफ़-साफ़ कहें तो नेपोटिज्म।

अब जैसे दिल्ली हाईकोर्ट के जज साहब के घर में कैश मिला, यही कैश अगर सामान्य आदमी के घर में मिलता, या सरकारी अधिकारी, कर्मचारी या फिर किसी नेता के तो तुरंत ED, EOW, ITD, GST, ACB उसके घर में छापा मार देती, न मारती तो FIR तो होती ही. मगर यशवंत वर्मा के खिलाफ नहीं हुई. क्योंकी सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने ऐसा कुछ करने के लिए कहा ही नहीं।

क्या संविधान में कॉलेजियम का जिक्र है

Is Collegium Mentioned In Indian Constitution: नहीं, भारत के संविधान में कॉलेजियम सिस्टम को सीधे तौर पर नहीं लिखा गया है. यह सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बनाया गया कानून है.

कॉलेजियम सिस्टम कब आया

When Collegium System Implemented: 1993 में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए कॉलेजियम सिस्टम को लागु किया था कि जजों की नियुक्ति में जजों की राय सबसे ऊपर होगी न की सरकार की.

कॉलेजियम माने रिश्तेदारी

भारत के हाईकोर्ट में लगभग 50% और सुप्रीम कोर्ट में 33% जज ऐसे परिवारों से हैं जिनके परिवार के लोग न्यायपालिका में ऊंचे पदों में रह चुके हैं. 2015 में तो माहौल ऐसा था कि एक पिता जज थे और उनके 6 बेटे भी सुप्रीम कोर्ट के जज थे. ऐसी रिपोर्ट्स हैं जिनमे यह दावा किया गया है कि देश में 350 परिवारों में भारत की न्याय व्यवस्था घूम रही है।

भारत में कितने जजों की नियुक्ति कॉलेजियम से हुई है

How many judges in India have been appointed by the collegium: एक रिपोर्ट के अनुसार 1993 से 2025 तक 200 जजों की हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति हुई. इनमे से सभी कॉलेजियम के तहत भर्ती हुए, वो वकील थे. संविधान के अनुच्छेद 217 के तहत, 10 साल तक हाई कोर्ट में वकालत करने वाले वकील सीधे जज बन सकते हैं। इन्हें कॉलेजियम चुनता है, और इसमें कोई परीक्षा नहीं होती। जिन वकीलों की जजों से अच्छी पकड़ होती है वो जज बन जाते हैं. हाईकोर्ट के 60 से ज्यादा फीसदी जज कॉलेजियम से जज बने हैं जबकि जिला न्यायलय में जज बनने के लिए परीक्षा देनी पड़ती है. कुल मिलाकर 1,700-2,200 जज ऐसे हो सकते हैं जो कॉलेजियम सिस्टम के तहत बिना किसी औपचारिक परीक्षा के सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में नियुक्त हुए।

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