Buddhist Counsils | कौन सी हैं बौद्ध धर्म की चार महत्वपूर्ण संगीतियां

Buddhist Counsils History In Hindi: धर्म संगीति बौद्ध इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं। बौद्ध संगीति से तात्पर्य उस सम्मेलन या सभा से है, जिनमें बौद्ध भिक्षुओं और विद्वानों ने भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद एकत्र होकर उनकी शिक्षाओं और उपदेशों को संकलित और संरक्षित करने के प्रयास किए जाते थे। इतिहास में अब तक राजगृह, वैशाली, पाटिलीपुत्र तथा कश्मीर में हुईं कुल चार संगीतियों का जिक्र हुआ है।

प्रथम बौद्ध संगीति | First Buddhist Counsils

प्रथम बौद्ध संगीति 483 ईसा पूर्व मगध के राजगृह के सप्तपर्णी गुफा में आयोजित हुई थी। यह स्थान आधुनिक बिहार के राजगिरि जिले में स्थित है। प्रथम संगीति हर्यंक वंश के राजा मगधपति अजातशत्रु के संरक्षण में हुई थी। गौतम बुद्ध के परिनिर्वाण के तुरंत बाद ही इस संगीति का आयोजन किया गया था। इसमें कई सारे बौद्ध स्थविरों ने भाग लिया था, इसकी अध्यक्षता गौतम बुद्ध के प्रमुख शिष्य महाकश्यप ने की थी। चूंकि भगवान बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं का संकलन नहीं किया था, इसीलिए उनके तीन प्रमुख शिष्यों वयोवृद्ध उपालि, प्रिय शिष्य आनंद और और महाकश्यप ने उनकी शिक्षाओं का सांगायन किया था। और इसके बाद ये शिक्षाएँ गुरु-शिष्य परंपरा के तहत मौखिक रूप से चलती रहीं।

द्वितीय बौद्ध संगीति | Second Buddhist Counsils

द्वितीय बौद्ध संगीति, प्रथम बौद्ध संगीति के 100 वर्ष बाद 383 ईसापूर्व वैशाली के बालुकाराम में आयोजित की गई थी। वैशाली बिहार और नेपाल की तराई में स्थित है। द्वितीय बौद्ध संगीति का संरक्षक शिशुनाग वंश का राजा कालाशोक था। द्वितीय संगीति की अध्यक्षता बौद्ध भिक्षु सबाकामी ने की थी। इस संगीति का प्रमुख उद्देश्य बौद्ध भिक्षुओं के विनय संबंधी विवादों को सुलझाना था। इस संगीति के बाद पहली बार बौद्ध दो गुटों में विभाजित हुए। प्रथम थे स्थाविर जो संघों में और ज्यादा कठोरता चाहते थे, जब दूसरे थे महासांघिक जो ज्यादा उदार थे।

तृतीय बौद्ध संगीति | Third Buddhist Counsils

तृतीय बौद्ध संगीति 250 ईसापूर्व मगध साम्राज्य की राजधानी पाटिलीपुत्र में आयोजित की गई थी। पाटिलीपुत्र आज के बिहार की राजधानी पटना है। इस बौद्ध संगीति की अध्यक्षता मोगिलीपुत्त तिस्स ने की थी। जबकी इस बौद्ध संगीति के संरक्षक स्वयं सम्राट अशोक थे। अशोक स्वयं इस सम्मेलन में उपस्थित था। इस बौद्ध संगीति का प्रमुख उद्देश्य बौद्ध धर्म को शुद्ध करना था। दरसल बौद्ध धर्म को मिलने वाले राजकीय संरक्षण के कारण कई बौद्ध भिक्षु भ्रष्ट हो चले थे, इसके अलावा बहुत सारे बुद्ध को ना मानने वाले लोग भी शाही संरक्षण के लालच में संघ में शामिल हो रहे थे। कहते हैं इस संगीति के बाद लगभग 60 हजार भ्रष्ट और गैर धार्मिक लोगों को संघ से बाहर किया गया था। सम्राट ने उनसे स्वयं प्रश्न पूछे और आचार्य मोगिलीपुत्त तिस्स ने उनका अनुमोदन किया था। बौद्ध इतिहास यह संगीति अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है, इसके बाद ही अशोक धर्म प्रचार की शुरुआत की थी। कुछ विद्वान त्रिपिटक को इसी संगीति में पूर्ण होने का दावा करते हैं।

चतुर्थ बौद्ध संगीति | Fourth Buddhist Counsils

चतुर्थ बौद्ध संगीति 78 ईसा पूर्व कश्मीर के कुंडलवन विहार में आयोजित की गई थी। यह स्थान आज के कश्मीर के श्रीनगर के निकट स्थित है। इस चतुर्थ संगीति का संरक्षक कुषाणवंशीय सम्राट कनिष्क था। इस आयोजन की अध्यक्षता वसुमित्र ने की थी। जबकी अश्वघोष इस संगीति का उपाध्यक्ष था। अश्वघोष सम्राट कनिष्क का राजकवि था, उसने संस्कृत में बुद्धचरितम और सौन्दरानंद इत्यादि प्रमुख ग्रंथों की रचना की थी। इस आयोजन का मुख्य विषय बौद्ध धर्म में गहरे मतभेद थे। इसी संगीति के बाद महायान और हीनयान औपचारिक रूप से अलग हुए थे। महायान संप्रदाय के सिद्धांतों को अंतिम रूप यहीं दिया गया था। इस संगीति के सभी वाद-विवाद संस्कृत में हुए थे, इस संगीति में कई बौद्ध ग्रंथों का प्राकृत से संस्कृत में अनुवाद हुआ था।

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