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चुनाव में मध्यप्रदेश की महाजीत के पीछे क्या!

Lok Sabha Election MP Result 2024:

Lok Sabha Election MP Result 2024:

Lok Sabha Election MP Result 2024: मध्यप्रदेश की भारतीय जनता पार्टी ने इतिहास रच दिया। पड़ोसी उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र में जहां एक-एक सीट के लिए संघर्ष मचा रहा वहीं मध्यप्रदेश में मतदाताओं ने भाजपा के पक्ष में छप्पर फाड़ वोटिंग की।

Author: जयराम शुक्ल | पच्चीस लोकसभा सीटों में से भाजपा एक लाख से ग्यारह लाख तक के बड़े मार्जिन से जीती। पांच लाख से ज्यादा मतों से जीतने वाली सीटों की संख्या पांच से ज्यादा है। एक तरह से यहां भाजपा की सुनामी की तीव्रता विधानसभा से भी तेज रही। 1980 के बाद हुए 12 चुनावों में यह पहला अवसर है, जब भाजपा ने सभी 29 सीटें जीत लीं। 1984 में कांग्रेस ने यह करिश्मा तब दिखाया था जब वह इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर पर सवार होकर चुनाव मैदान पर थी। भाजपा ने 1989 के बाद से जो शुरूआत की आगे बढ़ती गई। 2014 में नरेंद्र मोदी के भावी प्रधानमंत्री के चेहरे को सामने रखकर लड़े गए चुनाव में भाजपा ने 29 में से 27 सीटों पर विजय दर्ज की थी। 2019 में कांग्रेस के गुना के गढ़ को ध्वंस करके चौंकाया तब भी कमलनाथ छिंदवाड़ा में कांग्रेस के बीज को सहेजे रखने में सफल रहे। इस बार वह गढ़ भी एक नौजवान भाजपा के बंटी साहू ने ढ़हा दिया। इंदौर ने एक साथ तीन रिकॉर्ड रचे। सबसे ज्यादा अंतर की जीत का, भाजपा के किसी प्रत्याशी को सबसे ज्यादा मिले वोट का और निरंतर बढ़ते हुए वोट प्रतिशत का। हालांकि इस रिकॉर्ड में एक धब्बा यह भी लगा रहेगा कि विपक्ष में कोई प्रत्याशी नहीं था और नोटा को 2लाख से ज्यादा वोट मिले।

अब जो सब जानना चाहते हैं वो यह कि मध्यप्रदेश की भाजपा ने यह करिश्मा कैसे किया? देश की राजनीति में मध्यप्रदेश की क्या भूमिका होगी? सरकार और संगठन को पारितोषिक के तौर पर क्या मिलेगा?
पहला सवाल – यह करिश्मा कैसे संभव हुआ? विधानसभा चुनाव के पूर्व अनुमान में ज्यादातर प्रेक्षक कांग्रेस की सरकार की भविष्यवाणी कर रहे थे। लेकिन जब चुनाव परिणाम में भाजपा के पक्ष में जिस तरह प्रचंड जनादेश निकला उससे कांग्रेस की चूलें हिल गईं। उसके कार्यकर्ताओं का मनोबल रसातल में चला गया। विधानसभा चुनाव के तत्काल बाद ही प्रदेश संगठन ने लोकसभा चुनाव के लिए कमर कस ली। मुख्यमंत्री बनने की बाजी से चूके शिवराज सिंह चौहान छिंदवाड़ा जाकर लोकसभा के विजय माल में 29 कमल के फूल की बात कह आए। यह मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के लिए एक चुनौती भी थी। हारे और थके हुए कांग्रेस नेताओं को तोड़कर भाजपा में लाने का अभियान शुरू हुआ। सुरेश पचौरी जैसे दिग्गज समर्थकों के साथ भाजपा में आ मिले। लेकिन कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा घटनाक्रम था कमलनाथ और नकुल नाथ के भाजपा जाने की खबर। दोनों दिल्ली में रहकर अपने समर्थकों व कांग्रेस कार्यकर्ताओं को तीन दिन तक भ्रम में रखा। बंगले में भगवा झंडे के फहराएं और उतारे जाने से कुहासा और गहरा हुआ। तीन दिन बाद कमलनाथ ने स्थिति स्पष्ट की तबतक जो संदेश जाना था चला गया।

कांग्रेस कार्यकर्ताओं में गहरे से यह धारणा बैठ गई कि हमारा कप्तान ही भरोसे का नहीं। इसके बाद जो भगदड़ मची उसका क्लाइमेक्स इंदौर के कांग्रेस प्रत्याशी अक्षय कांति बम का भाजपा में शामिल होना रहा। इन सबसे ऐसा वातावरण बना कि कार्यकर्ताओं और कांग्रेस के प्रतिबद्ध वोटर छिटकते गए।

दूसरी बात जिन युवा बड़बोले जीतू पटवारी को कांग्रेस की कमान सौंपी गई उनका उनके क्षेत्र में ही कोई इकबाल करने वाला नहीं रहा। वे राऊ से बुरी तरह पराजित हो चुके थे। पूर्व अध्यक्षों की भांति प्रदेश में उनकी कोई साख नहीं थी। कांग्रेस के बड़े बुजुर्ग और अनुभवी नेताओं ने इसे अपने अपमान के तौर पर लिया, वे या तो पार्टी छोड़कर चले गए या चुपचाप घर बैठ गए। नेता प्रतिपक्ष बनाए गए उमंग सिंघार विधानसभा चुनाव से दो महीने पहले भूमिगत से बाहर निकले। उनपर गंभीर अपराधिक आरोप थे। नेता प्रतिपक्ष की काबिलियत रखने वाले उनसे की श्रेष्ठ विधायक थे लेकिन वे हाथ मलते रह गए यह भी एक कारण था। कांग्रेस की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ जब प्रेस कांफ्रेंस करके नेता यह घोषित करे कि उसे चुनाव नहीं लड़ना। कुल मिलाकर कांग्रेस स्वयं अपनी दुर्गति के लिए जिम्मेदार बनी।

भाजपा का प्रचार अभियान समय के साथ आक्रामक होता गया। नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, जेपी नड्डा, राजनाथ सिंह की ताबड़तोड़ रैली सभाएं हुईं। उसके मुकाबले राहुल, प्रियंका और खरगे ने कुछ चुनिंदा सभाएं लीं। चुनाव अभियान में भाजपा के मुकाबले कांग्रेस कहीं भी नहीं टिकी। एक तरह से कहें कि युद्ध घोष के साथ ही कांग्रेस ने हथियार डाल दिए तो ग़लत नहीं होगा।

अब आगे की बात। मध्यप्रदेश में भाजपा की प्रचंड विजय का श्रेय संगठन अध्यक्ष वीडी शर्मा और मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव को मिलेगा, मिलना ही चाहिए। एनडीए की सरकार बनती है तो श्री शर्मा कैबिनेट के स्वाभाविक हकदार होंगे। डा.यादव को चुनाव तक के लिए मुख्यमंत्री बनाए रखने की जो फुसफुसाहट थी उसपर स्थायी विराम लग जाएगा। मध्यप्रदेश का परिणाम एक तरह से उनकी काबिलियत का सर्टिफिकेट बनेगा और जो ‘पर्ची’ मुख्यमंत्री कहा करते थे उनकी जुबां पर हमेशा के लिए ताला लग जाएगा। नतीजों के पश्चात देश में भाजपा नीत एनडीए गठबंधन बेहद नाज़ुक स्थित में माना जा रहा है वजह नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू। सो ऐसी भी स्थिति संभाव्य जैसे कि अटल जी के समय जयललिता और ममता बनर्जी की रही। ऐसी स्थिति में भाजपा को ठोस आधार देने वाले मध्यप्रदेश की भूमिका पर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की भी नजर बनी रहेगी। सांख्यिकी पर विश्वास करें तो सरकार भाजपा नीत एनडीए की होगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।

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