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Uttarakhand UCC: बिल पर मुस्लिम संगठन का विरोध शुरू

UTTARAKHAND UCC

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जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने इस बिल से आदिवासियों को छूट दिए जाने का हवाला देते हुए कहा कि यदि इस कानून से आदिवासी समुदाय को अलग रखा जा सकता है तो संविधान में मिले धार्मिक स्वतंत्रता के आधार पर अल्पसंख्यकों को भी इस कानून के दायरे से अलग रखा जाना चाहिए।

UCC Bill in Uttarakhand: उत्तराखंड विधानसभा में 7 फरवरी से यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल (UCC) पर बहस शुरू हो रही है. इसी बीच मुस्लिम संगठनों के इस बिल का विरोध करना शुरू कर दिया है. देहरादून में इस बिल के खिलाफ प्रदर्शन भी हुआ. जमीयत-ए-हिंद ने कहा है कि मुसलमान ऐसा कोई भी कानून नहीं मानेंगे जो शरियत के खिलाफ ही.

What did the Muslim organization say on UCC: जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने इस बिल से आदिवासियों को छूट दिए जाने का हवाला देते हुए कहा कि यदि इस कानून से आदिवासी समुदाय को अलग रखा जा सकता है तो संविधान में मिले धार्मिक स्वतंत्रता के आधार पर अल्पसंख्यकों को भी इस कानून के दायरे से अलग रखा जाना चाहिए।

Muslim Sangathano ne UCC Par Kya Kaha: जमीयत प्रमुख मौलाना अरशद मदनी (Arshad Madani) ने एक बयान में कहा कि हम ऐसे किसी भी कानून को स्वीकार नहीं कर सकते जो शरीयत के खिलाफ हो क्योंकि एक मुसलमान हर चीज से समझौता कर सकता है लेकिन शरीयत और मजहब पर कभी समझौता नहीं कर सकता है. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता विधेयक पेश किया गया है और अनुसूचित जनजातियों को इस प्रस्तावित कानून में छूट दी गई है.

Arshad Madani on UCC: मदनी ने सवाल उठाया कि अगर सविधान की एक धारा के तहत अनुसूचित जनजातियों को इस कानून के दायरे से बाहर रखा जा सकता है, तो नागरिकों के मौलिक अधिकारों को मान्यता देते हुए संविधान की धारा 25 और 26 के तहत मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता क्यों नहीं दी जा सकती है.

समान नागरिक संहिता मौलिक अधिकारों को निरस्त करती है: मदनी

Uniform Civil Code: मदनी ने दावा किया कि संविधान में धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी है. लेकिन समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) मौलिक अधिकारों को निरस्त करती है. उन्होंने पूछा कि अगर यह समान नागरिक संहिता है तो नागरिकों के बीच यह अंतर क्यों है? मदनी ने यह भी कहा कि हमारी क़ानूनी टीम विधेयक के क़ानूनी पहलुओं की समीक्षा करेगी जिसके बाद आगे की क़ानूनी कार्रवाई पर निर्णय निया जाएगा।

UCC पर सवाल करते हुए मदनी ने कहा कि सवाल मुसलमानों के पर्सनल लॉ (Muslim Personal Law) का नहीं बल्कि देश धर्मनिरपेक्ष संविधान को अक्षुण्ण रखने का है. उन्होंने सवाल किया कि जब पूरे देश में नागरिक कानून एक जैसा नहीं है तो वे पूरे देश में एक पारिवारिक कानून लागू करने पर क्यों जोर देते हैं.

लिव-इन-रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य

UCC Bill in Uttarakhand: बता दें की उत्तराखंड सरकार ने 6 फरवरी को विधानसभा में समान नागरिक संहिता विधेयक पेश किया है. ये बिल आजादी के बाद किसी भी राज्य में पहला ऐसा कदम है, जिसके बाद अन्य भाजपा शासित राज्यों में इसी तरह का कानून बनाया जा सकता है. इस बिल में पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के छोटे आदिवासी समुदाय को प्रस्तावित कानून से छूट दी गई है. इस बिल में लिव-इन-रिलेशनशिप का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य किया गया है.

बता दें कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आने वाला 192 पेज का समान नागरिक संहिता बिल भाजपा के वैचारिक एजेंडे का एक महत्वपूर्ण बिंदु है, जिसमें सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, भूमि, संपत्ति और उत्तराधिकार पर एक सामान कानून बनाने की बात प्रस्तावित है. चाहे वे किसी भी धर्म से संबंध रखते हों.

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