वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 (Waqf Amendment Act 2025) को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में केंद्र सरकार ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण हलफनामा दाखिल किया। इस हलफनामे में सरकार ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता (Constitutional Validity) पर सवाल उठाने वाली याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है। सरकार का कहना है कि इस कानून को व्यापक विचार-विमर्श और जनता के सुझावों के आधार पर लागू किया गया है, और इसे लेकर गलत नरेटिव (Misleading Narrative) बनाया जा रहा है।
हलफनामे में सरकार का पक्ष
केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम को संसद की संयुक्त समिति (Joint Parliamentary Committee) की सिफारिशों और देशभर से प्राप्त लाखों सुझावों के आधार पर तैयार किया गया है। सरकार ने दावा किया कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन (Waqf Property Management) में पारदर्शिता (Transparency) और जवाबदेही (Accountability) सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है। इसके तहत गैर-मुस्लिम सदस्यों को वक्फ बोर्ड में शामिल करने (Non-Muslim Inclusion) और वक्फ-बाय-यूजर (Waqf-by-User) की अवधारणा को हटाने जैसे प्रावधान शामिल हैं। सरकार ने इन प्रावधानों को समावेशी (Inclusive) और सुधारवादी (Reformative) बताया है।
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना (CJI Sanjeev Khanna) की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ कर रही है। कोर्ट ने पहले की सुनवाई में केंद्र सरकार को याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने के लिए सात दिन का समय दिया था। 17 अप्रैल 2025 को हुई सुनवाई में कोर्ट ने कुछ प्रावधानों पर चिंता जताई थी, जिसमें गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति (Non-Muslim Appointments) और वक्फ-बाय-यूजर संपत्तियों की स्थिति (Waqf-by-User Properties) शामिल थी। कोर्ट ने सरकार से आश्वासन लिया था कि 5 मई 2025 तक की अगली सुनवाई तक केंद्रीय वक्फ परिषद (Central Waqf Council) या राज्य वक्फ बोर्ड (State Waqf Boards) में कोई नई नियुक्ति नहीं की जाएगी, और न ही वक्फ संपत्तियों को डी-नोटिफाई (Denotification) किया जाएगा।
अधिनियम के विवादास्पद प्रावधान
वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 में कई बदलाव किए गए हैं, जो विवाद का केंद्र बने हैं:
- गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति: केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान। सरकार का कहना है कि यह प्रशासनिक कार्यों (Administrative Functions) में पारदर्शिता बढ़ाएगा, लेकिन याचिकाकर्ताओं का दावा है कि यह धार्मिक स्वायत्तता (Religious Autonomy) का उल्लंघन करता है।
- वक्फ-बाय-यूजर का अंत: इस अवधारणा को हटाने से उन संपत्तियों की स्थिति पर सवाल उठ रहे हैं, जो लंबे समय से वक्फ के रूप में उपयोग हो रही थीं। कोर्ट ने इस पर गंभीर चिंता जताई है।
- कलेक्टर को अधिकार: विवादित वक्फ संपत्तियों (Disputed Waqf Properties) की स्थिति तय करने का अधिकार जिला कलेक्टर को दिया गया है, जिसे याचिकाकर्ता मनमाना (Arbitrary) मानते हैं।
- केंद्रीकृत पोर्टल: वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण और प्रबंधन अब केंद्र सरकार के एक डिजिटल पोर्टल (Centralized Portal) के माध्यम से होगा, जिसे कुछ याचिकाकर्ता राज्य की स्वायत्तता (State Autonomy) पर हमला मानते हैं।
याचिकाकर्ताओं का तर्क
AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi), कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद (Mohammad Jawed), और अन्य याचिकाकर्ताओं ने इस अधिनियम को असंवैधानिक (Unconstitutional) करार दिया है। उनका कहना है कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता (Freedom of Religion) और संविधान के अनुच्छेद 26 (Article 26) का उल्लंघन करता है, जो धार्मिक समुदायों को अपनी संपत्तियों के प्रबंधन का अधिकार देता है। याचिकाकर्ताओं का यह भी तर्क है कि यह अधिनियम अल्पसंख्यक समुदाय (Minority Community) के अधिकारों पर हमला है और इसे राजनीतिक उद्देश्यों (Political Motives) के लिए लाया गया है।
सरकार का जवाब
केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि अधिनियम का उद्देश्य वक्फ बोर्ड की मनमानी (Arbitrary Practices) को रोकना और संपत्तियों का दुरुपयोग (Misuse of Properties) बंद करना है। सरकार ने दावा किया कि इस कानून से विभिन्न मुस्लिम समुदायों (Muslim Sects) को बेहतर प्रतिनिधित्व मिलेगा और वक्फ प्रणाली में सुधार (Waqf System Reforms) होगा। सरकार ने यह भी कहा कि कुछ लोग और संगठन इस कानून के खिलाफ गलत सूचना (Misinformation) फैला रहे हैं।
अगली सुनवाई का महत्व
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई 5 मई 2025 (Next Hearing Date) को निर्धारित की है। इस सुनवाई में कोर्ट यह तय करेगा कि अधिनियम के कुछ प्रावधानों पर अंतरिम रोक (Interim Stay) लगाई जाए या नहीं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले का फैसला भारत की धर्मनिरपेक्षता (Secularism) और अल्पसंख्यक अधिकारों (Minority Rights) के लिए दूरगामी परिणाम ला सकता है।
जनता और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
वक्फ (संशोधन) अधिनियम को लेकर देशभर में अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। दावूदी बोहरा समुदाय (Dawoodi Bohra Community) ने इस कानून का समर्थन करते हुए इसे अपनी लंबे समय की मांग बताया है। वहीं, विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस (Congress) और तृणमूल कांग्रेस (TMC), ने इसे अल्पसंख्यक विरोधी (Anti-Minority) करार दिया है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने इसे देश को बांटने वाला कानून बताया है। दूसरी ओर, छह भाजपा शासित राज्य (BJP-Ruled States)—हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, और असम—ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस कानून का समर्थन किया है।