About vinod khanna in hindi| न्याज़िया बेगम: 1968 में कुछ फिल्मों में सहायक भूमिकाओं में एक चेहरा ऐसा नज़र आया जिसने कभी-कभी तो अपनी दमदार पर्सनैलिटी से हीरो को भी कांटे की टक्कर दी और लोग पूछने पे मजबूर हो गए कि ये कौन हैं। निर्माताओं ने उन्हें पसंद किया और इस तरह उन्हें फिल्म मिल गई 1971 की ‘मेरे अपने’, जिसमें उन्होंने एक गुस्सैल युवक की भूमिका निभाई।
नहीं याद आया आपको ये कौन थे? तो फिर 1971 की ही फिल्म ‘ मेरा गाँव मेरा देश’ के उस डाकू या मुख्य खलनायक, को याद कर लीजिए जिसने पूरी फिल्म में एक रोमांच पैदा कर दिया था बेशक आपको याद आ गए होंगे विनोद खन्ना जी जिन्होंने इस तरह के किरदारों में मानों महारत हासिल कर ली थी और 1973 में क्राइम ड्रामा फिल्म ‘अचानक’ में एक सैन्य अधिकारी या भगोड़े का किरदार निभा कर भी वो चहीते फिल्मी सितारे बन गए। बस फिर क्या था इसके अगले साल 1974 में आपको मिल गई फिल्म ‘हाथ की सफाई’ जिसके ज़रिए वो स्टारडम की ओर बढ़ गए और जीत लिया सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार।
इसके बाद उनके शानदार अभिनय से सजी फिल्में आईं, ‘अमर अकबर एंथनी’ और ‘मुकद्दर का सिकंदर’ जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्में जिनसे वो बतौर प्रमुख अभिनेता अपने एक्टिंग करियर के चरम पर पहुँच गए।
एक्टिंग का शौक़ जागा कैसे | Vinod Khanna’s acting
तो हुआ यूं कि बचपन से आपको क्रिकेट का बहुत शौक था और वो बुद्धि कुंदरन के साथ क्रिकेट खेला भी करते थे ऐसे ही बोर्डिंग स्कूल में पढ़ने के दौरान उन्होंने फिल्म देखने का मन बनाया और फिल्में देखी- ‘सोलवां साल’ और ‘मुगल-ए-आज़म’ फिल्में देखीं जिन्होंने उन्हें अदाकारी के सैलाब में डुबो दिया इसके बावजूद उन्होंने वाणिज्य से स्नातक किया।
एक अलग पहचान और रुतबा रहा, विनोद खन्ना जी का | vinod khanna most handsome actor
आज उनकी पहचान सिर्फ अभिनेता नहीं बल्कि फिल्म निर्माता और राजनीतिज्ञ के रूप में भी होती है, साथ ही अपने बेमिसाल अंदाज़ से वो स्टाइल, फैशन आइकन और सेक्स सिंबल भी बन गए, लेकिन इतना स्टारडम हासिल करने के बाद उन्होंने आध्यात्म की ओर रूख़ कर लिया था। ओशो की शरण ली और गृहस्थ जीवन से दूर हो गए थे लेकिन उनके चाहने वालों ने उन्हें मोह के बंधन में बांधकर खींच लिया उस वक़्त मीडिया ने उन्हें नाम दिया “सेक्सी संन्यासी” का, तब शायद उन्हें एहसास हुआ कि की दिलों को खुश रखना अपनी ज़िम्मेदारी निभाना मनुष्य का पहला कर्तव्य है और इससे दूर जाने से कोई शांति नहीं मिल सकती।
ख़ैर पांच साल तक फिल्मों से दूर रहने के बाद वो फिर लौट आए चका चौंध भरी दुनियां में और फिल्म जगत में दमदार वापसी की 1987 में आई फिल्म ‘ इंसाफ ‘ से और तब से लेकर उम्र आखिरी पड़ाव तक वो फिर नहीं रुके। एक से बढ़के एक सुपर हिट फिल्में देते रहे सलमान खान के साथ उन्होंने 2009 की वांटेड, 2010 की दबंग और 2012 की दबंग 2 जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों में उनके पिता का किरदार निभा के खूब तारीफें बटोरी।
पारिवारिक पृष्ठभूमि | vinod khanna family
6 अक्टूबर 1946 को पेशावर यानी पाकिस्तान में पंजाबी हिंदू परिवार में कमला और कृष्णचंद खन्ना के घर पैदा हुए विनोद जी के पिता कपड़े रंगने का कारोबार करते थे। विभाजन के बाद उनका परिवार मुंबई आया था, उनकी तीन बहनें और एक भाई, प्रमोद खन्ना हैं जिनकी सूरत विनोद जी से बहुत मिलती है, वो एक्टिंग नहीं करते थे पर 1974 में आई फिल्म फरेबी का निर्माण ज़रूर किया था। लेकिन 2019 में प्रदर्शित हुई फिल्म दबंग 3 में वो कुछ सीन्स में हमें नज़र आए क्योंकि विनोद जी फिल्म पूरी होने के पहले ही 27 अप्रैल 2017 को इस दुनिया से चले गए थे। वो अपने आख़री दिनों में कैंसर से जूझ रहे थे पर उन्होंने अंतिम समय तक असली हीरो की तरह हिम्मत नहीं हारी और बड़ी बहादुरी से मौत से लड़ते रहे।
सम्मान | Vinod Khanna received awards
1999 में मिला फ़िल्मफ़ेयर लाइफ़टाइम अचीवमेंट पुरस्कार और 2018 में, उन्हें 65वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सिनेमाई पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
एक नज़र उनके राजनीतिक जीवन पर | Vinod Khanna’s political life
विनोद जी ने 1998 से 2009 और 2014 से 2017 के बीच गुरदासपुर निर्वाचन क्षेत्र से संसद सदस्य के रूप में कार्य किया और भारत सरकार के मंत्री पदों को संभाला।