जब भारत, भारत नहीं था, जब हिमालय नहीं था उससे भी करोड़ों साल पहले से विंध्याचल पर्वत का अस्तित्व था
विंध्य पर्वत की कहानी: तकरीबन 4 करोड़ साल पहले, भारत देश एशिया महाद्वीप का हिस्सा नहीं था. तब यह विशाल भूभाग पृथ्वी के दक्षिण में एक महाद्वीप (Continent) के रूप में था जिसे ‘जम्बू द्वीप’ या ‘गोंडवाना’ लैंड के कहा जाता है. जम्बू द्वीप के चारों तरफ समंदर था, इन्ही समंदर की लहरों में धीमे-धीमे बहते हुए जम्बूद्वीप एशिया महाद्वीप से टकरा गया और इसी जोरदार टक्कर से इसका उत्तरी भूभाग विशाल हिमालय पर्वत के रूप में प्रकट हुआ. नेपाल से लेकर अफ़ग़ानिस्तान तक हजारों किलोमीटर तक हिमालय की दीवार खड़ी हो गई.
वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमालय का जन्म आज से 4 करोड़ साल पहले हुआ लेकिन भारत में हिमालय बनने के करोड़ों साल पहले से एक पर्वत श्रृंखला अस्तित्व में थी जिसे ‘विंध्याचल पर्वत’ कहा जाता है. विंध्य पृथ्वी की शुरुआती संरचना या फिर कहें कि पिछले 10 करोड़ साल से मौजूद है.
विंध्य पर्वत की कहानी
सनातनी ग्रंथों में हिमालय और विंध्य का जिक्र मिलता है. इंडियन माइथोलोजी में विंध्य और हिमालय की तकरार की कहानी सुनने को मिलती है. कहा जाता है कि एक बार विंध्य और हिमालय के बीच झगड़ा हो गया. दोनों के बीच शर्त लगी कि ‘देखते हैं कौन सा पर्वत कितना अधिक ऊंचा उठ सकता है’. इस शर्त के बाद दोनों पर्वत ऊपर उठते गए, एक समय ऐसा आ गया कि आधी धरती में सूर्य का प्रकाश पड़ना ही बंद हो गया. मनुष्यों में हड़कंप मच गया, इन दो पर्वतों को रोकने के लिए लोगों ने देवताओं से प्रार्थना करनी शुरू कर दी, मगर दोनों पर्वत का गुरुर एक दूसरे को झुकने नहीं दे रहा था.
अगस्त्य मुनि के कहने पर विंध्य झुक गया
विंध्य पर्वत, हिमालय से भी ऊंचा हो गया था, इसके आसपास रहने वाले लोग भयभीत हो उठे थे. जब विंध्य ने देवताओं का कहना भी नहीं माना तो जनता अगस्त्य मुनि की शरण में गई. उनसे विनती की गई, ‘विंध्य तो आपका शिष्य है, वो आपकी बात जरूर मानेगा’ तब अगस्त्य मुनि विन्द्य के पास गए. उन्हें देखते ही विंध्य पर्वत ने कहा ‘गुरुवर मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?’ तब अगस्त्य मुनि ने कहा ‘हे मेरे शिष्य मुझे दक्षिण प्रवास पर जाना है, लेकिन तुम्हारे इस विशालकाय आकार को मैं इस अवस्था में पार नहीं कर सकता’ ऐसे में विंध्य ने अपने गुरु के लिए गुरुर का त्याग किया और उन्हें रास्ता देने के लिए झुक गया. अगस्त्य मुनि ने विंध्य को पार करने के बाद कहा ‘जबतक मैं वापस ना लौटूं तुम इसी अवस्था में रहना’
विंध्य ने तो अपने गुरु के लिए गुरुर छोड़ दिया, लेकिन अगस्त्य मुनि दोबारा कभी नहीं लौटे. कहा जाता है कि कभी हिमालय से भी ऊंचा रहा विंध्य आज भी अगस्त्य मुनि के लौटने का इंतजार कर रहा है.
विंध्य का अर्थ क्या है
“विन्ध्य” शब्द संस्कृत के “वैन्ध” शब्द से उत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ “बाधा डालना“। एक कथा के अनुसार विन्ध्य कभी सूर्य का मार्ग रोकते थे, जिससे उनका नाम पड़ा। धरती को चीरते हुए पाताल से प्रकट हुआ विंध्य पर्वत भारत के मध्य में मौजूद है. जो देश को भगौलिक आधार पर उत्तर और दक्षिण भाग में बांटता है. इसी पर्वत में 51 शक्तिपीठों में से एक मां विंध्यवासिनी देवी का निवास है. मां विंध्यवासिनी ने विंध्याचल को ही अपना घर माना था. इस पर्वत के बारे में रामायण-महाभारत जैसे ग्रंथों में उल्लेख मिलता है.
इस कहानी के पीछे विज्ञान है?
सनातन धर्म के ग्रंथों में इस संसार की उत्पत्ति से लेकर विनाश के बारे में बताया गया है. लेकिन आम मन्युष्य इन बातों को समझ पाए इसी लिए इन महान घटनाओं को कहानियों का रूप दिया गया. हमनें भौगोलिक और खगोलीय घटनाओं को समझने के लिए उनका मानवीकरण कर दिया. दुर्भाय से लोग ऐसी कहानियों को लेकर आगे बढ़ गए और उसके पीछे छिपे विज्ञान को भूल गए.
इस बात से कोई दोराय नहीं है कि हिमालय का आकार हर साल बढ़ रहा है, हर साल हिमालय की ऊंचाई 5 मिलीमीटर बढ़ती है और ऐसा तभी से हो रहा है जब से हिमालय उत्पन्न हुआ. समंदर की लहरें भारत को उत्तर की तरफ धकेल रही हैं. ऐसे कभी विंध्य का भी आकार हिमालय से ऊंचा रहा होगा. इस कहानी के पीछे भी कोई भौगोलिक घटना रही होगी, कोई वैज्ञानिक कारण रहा होगा जिसे कहानियों ने छिपा दिया।
यहां सबसे ऊंचा है विंध्य
मध्य प्रदेश के अमरकंटक में विंध्य पर्वत की ऊंचाई सबसे ज्यादा है. यहां विंध्य पर्वत की समुद्र तल से उंचाई 3438 फ़ीट है. विंध्य पर्वत श्रृंखला गुजरात से होते हुए मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश से झारखंड और बिहार फैली हुई है.