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विनम्रता की तुलना पानी से क्यों की है हमारे संतों ने !

Flowing water symbolizing humility as described in Indian saint teachings

Humility compared to water in Indian saint philosophy

Aatm Manthan : बड़े बड़े संतों ने हमें पानी रखने की सलाह दी है पर क्या आप जानते हैं हमारे अंदर पानी को संचित करने से तात्पर्य क्या है रहीम दास जी क्यों कहते हैं- रहिमन पानी राखिये, बिनु पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून॥

रहीमदास जी ने पानी को इतना महत्व क्यों दिया है :-

इस सवाल का जवाब जानने के लिए चलिए बचपन से पढ़ते आ रहे इस दोहे को गंभीरता से समझने की कोशिश करते हैं। दरअसल रहीमदास जी ने पानी को इसलिए इतना महत्व दिया है क्योंकि यहाँ पानी का अर्थ विनम्रता से है और इस बात को समझाने के लिए उन्होंने कहा है कि पानी के बिना सब सूना इसलिए है क्योंकि इसके बिना किसी बहुमूल्य चीज़ का निर्माण संभव नहीं है और इसके लिए उन्होंने तीन उदाहरण भी दिए हैं।

पानी का मनुष्य के लिए तात्पर्य :-

जिसमें पानी का पहला तात्पर्य मनुष्य की ‘विनम्रता’ से है। जो अगर हमारे अंदर है तो हमारे सभी काम आसानी से हो जाएंगे न हम किसी को परेशान करेंगे और न जल्दी कोई हमें परेशान करेगा। विनम्रता की तुलना पानी से इसलिए भी की गई है क्योंकि इसकी प्रकृति शीतल होती है और मन में शीतलता का अर्थ है द्वेष से दूर होकर मन में अच्छे भाव रखना ,संतुष्ट रहना। पानी की शीतलता की तरह औरों को भी अपनी बातों से ठंडक या राहत देना और किसी बात की गाँठ बाँधे बिना निश्छल भाव से आगे बढ़ते जाना।

पानी की मोती के लिए आवश्यकता :-

वहीं पानी की यानी विनम्रता की दूसरी आवश्यकता उस बहुमूल्य मोती के लिए भी बताई गई है जिसकीआभा, तेज या चमक के सब दीवाने होते हैं। जिसका भी सौंदर्य तब बनता है जब उसमें पानी का प्रवेश होता है। विनम्रता के द्रव्य में जब वो घुलता है तब वो मोती बनता है और मूलयवान हो जाता है। तो जिस तरह पानी के बिना मोती में चमक नहीं आती उसका कोई मूल्य नहीं होता उसी तरह विनम्रता के बिना कोई व्यक्ति श्रेष्ठता को नहीं पाता। किसी व्यक्ति का भी कोई मोल नहीं होता या उसका कोई सम्मान नहीं कर पाता।

पत्थर के लिए पानी क्या है :-

तीसरे अर्थ में पानी की महत्ता उस चूने के लिए बताई गई है जो पानी यानी नम्रता के बिना सिर्फ पत्थर ही होता है लेकिन पानी के साथ मिलकर मुलायम होकर पत्थर जैसा चूना भी खाने लायक बन जाता है यानी थोड़ा नर्म होने से ही या विनम्रता से ही कोई किसी को सुख दे सकता है फिर चाहे वो पत्थर ही क्यों न हो। इसलिए मनुष्य को अपने व्यवहार में हमेशा विनम्रता रखनी चाहिए।

यही बात कबीरदास जी ने कुछ यूँ कही है – 

ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय। औरन को शीतल करे आपहुं शीतल होय “॥ जिसमें वाणी की मधुरता से आप किसी का भी प्रेम पा सकते हैं दूसरों को भी सुख दे सकते हैं और स्वयं भी आनंद में जीवन व्यतीत कर सकते हैं। तो विनम्रता पर ध्यान अवश्य दीजियेगा क्योंकि जिस तरह ये आगे बढ़ने का रास्ता बना ही लेता है ,उसी तरह विनम्रता से भी बड़ी से बड़ी मुश्किल हल हो जाती है। फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।

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