Vat Savitri Vrat 2025 | आज वटसावित्री और सोमवती अमावस्या का दिन धार्मिक दृष्टिकोण से बेहद पुण्य तिथि है। आज के ही दिन सती सावित्री ने एक वटवृक्ष के नीचे तपस्या कर अपने मृत पति के प्राण यमराज से वापस लौटा लिए थे।
धर्म शास्त्रों और संतो के अनुसार तभी से वट सावित्री व्रत का शुभारंभ हुआ और तब से अब तक सुहागिन महिलाओं अपने पति की दीर्घायु की कामना कर इस वृक्ष की पूजा-अर्चना कर मां सती-सावित्री और वट वृक्ष से निर्जला उपवास रखती है।
हम सभी जानते हैं कि पौराणिक तीति-त्योहार व रीति-रिवाज ख़ासकर जिसमें प्रकृति को मूलाधार बनाया गया हो वह निश्चित ही तत्कालीन समय से वर्तमान पर्यावरण को ध्यान में रखकर बनाया गया था क्योंकि तब खासकर महिलाओं व बच्चों को बड़े बुजुर्ग, अशिक्षा के चलते परिवार, समाज व पर्यावरण की जिम्मेदारी का निर्वहन करने किसी न किसी बहाने या माध्यम का सहारा लिया करते थे।
कहना ग़लत नहीं होगा की वट सावित्री व्रत में वटवृक्ष के महत्व को समझाने न सिर्फ इस व्रत को सती सावित्री व सत्यवान की कहानी से जोड़ा बल्कि वर्तमान पर्यावरण की परिस्थितियों को भांप कर पुरखों ने इस अनूठे त्योहार की परंपरा को मानव समाज को सौंपा होगा।
अतिप्राचीन समय में जब पर्यावरण शुद्ध व प्रकृति के अनुकूल हुआ करता था यदि धर्म परंपराओं के साथ उसमें छिपे इस सकारात्मक संदेश को भी अपनाया गया होता तो निश्चित ही आज वट वृक्षों का टोटा नहीं होता। भले ही वर्तमान में मध्य प्रदेश में बरगद यानी वटवृक्ष के पेड़ों की सटीक संख्या का कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध न हो लेकिन रीवा जिले में जहां कोसों बाद ही एक्का-दुक्का वटवृक्ष के दर्शन हो पाते हैं।
हालांकि,वन विभाग व सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा हर विशेष अवसरों पर अधिक ऑक्सीजन छोड़ने वाले हाल ही में नए पौधारोपण कार्यक्रमों में बरगद और पीपल के पौधे लगाने की पहल शुरू की है, जिसमें प्रति हेक्टेयर कम से कम एक या दो बरगद के पेड़ जैसे, बरगद, पीपल,नीम व अन्य पौधे तो लगाएं जाते हैं लेकिन जंगलों की लगातार कटाई, रिहायशी इलाकों में बढ़ती फ्रेक्ट्रीज व शहरों का कॉक्रीटी करण कहीं न कहीं इस बात के लिए जिम्मेदार है कि खासकर बरगद के वृक्षों की कटाई के वक्त भी इस बात को तवज्जो नहीं दी जाती कि हमारे लंबे व स्वस्थ-समृद्ध जीवन हेतु घर की माताएं बहनें इसकी पूजा करती है जिसे हम अपने स्वार्थ वश जड़ से ही काट कर उसकी प्रजाति पर ही हमला कर रहे हैं जबकि हम सबको पर्यावरण को सुरक्षित करने कम से कम आज तो वट सावित्री व्रत के महत्व को सार्थक करना ही चाहिए। यह सार्थक कैसे होगा इस पर हम बात करें उससे पहले जानें बरगद के वृक्ष की संरचना व मानवीय जीवन में उपयोग।
बरगद का पेड़ एक विशाल और लंबी उम्र वाला वृक्ष है , जो पर्यावरण के लिए अत्यंत उपयोगी होता है। हालांकि किसी एक पेड़ की ऑक्सीजन उत्पादन और CO₂ अवशोषण क्षमता विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है जैसे उसकी उम्र, आकार, पत्तों की संख्या, मौसम और स्थान लेकिन फिर भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसके लगभग अनुमानों के आधार पर कुछ सामान्य आंकड़े कुछ इस तरह उपलब्ध हैं।
बरगद के पेड़ द्वारा प्रतिदिन ऑक्सीजन उत्पादन
एक बड़ा,परिपक्व बरगद का पेड़ औसतन 120 किलोग्राम जो लगभग 264 पाउंड , तक ऑक्सीजन प्रति वर्ष छोड़ सकता है। यानी प्रतिदिन लगभग 330 ग्राम या लगभग 0.33 किलोग्राम ऑक्सीजन छोड़ता है। यह मात्रा लगभग 7 से 10 वयस्क मनुष्यों की एक दिन की ऑक्सीजन आवश्यकता के बराबर होती है। वहीं बरगद के पेड़ द्वारा अवशोषित कार्बन डाइऑक्साइड के अनुमानित आंकड़ों में परिपक्व पेड़ साल भर में लगभग 20 से 25 किलोग्राम CO₂ को अवशोषित कर सकता है।
यानी प्रतिदिन लगभग 55 से 70 ग्राम CO₂ अवशोषित करता है। हालांकि ये आंकड़े अनुमानित औसत पर आधारित हैं। क्योंकि मानसून या गर्मी के मौसम में जब प्रकाश संश्लेषण तेज़ होता है, तब ये मात्रा कुछ अधिक हो सकती है। यहां हम अंदाजा लगा सकते हैं कि बरगद के पेड़ न सिर्फ मानव समाज बल्कि पर्यावरण के लिए कितने अनुकूल या आवश्यक है।
यहां यह बात स्पष्ट हो जाती है कि वट सावित्री व्रत में छुपा सकारात्मक संदेश आज पर्यावरण के लिए कितना महत्वपूर्ण है बल्कि सती सावित्री के तप और सत्यवान के पुनर्जन्म पर आधारित कथा के माध्यम से यदि हम चाहे तो न सिर्फ़ इस तिथि की कहानी से दिए गए संदेश को महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत कर अपने जीवन साथी से तो रिश्ते को तो मज़बूत करतीं ही हैं साथ ही इत दिन अपने पति की दीर्घायु की कामना कर न सिर्फ बरगद के वृक्ष की पूजा-अर्चना करें बल्कि एक नया…